हाल ही में मनोज बाजपेयी की “द फैमिली मैन-2” (The Family Man 2) को काफी पसंद किया जा रहा है। इस सीजन की पूरी कहानी श्रीलंका के अलगाववादी संगठन और उसके प्रमुख लीडर भासकरण पर आधारित है। यह बात भी हर कोई जानता है कि भासकरण का किरदार लिब्रेशन टाईगर ऑफ तमिल ईलम (Liberation Tigers of Tamil Eelam,LTTE ) के लीडर से काफी प्रभावित है। वेब सीरिज के भासकरण और वेलुपिल्लई प्रभाकरण के बीच कई समानताएँ हैं जो दोनों को एक दूसरे के नजदीक लाती है। पर वेलुपिल्लई प्रभारकरण वेब सीरिज के भासकरण से ज्यादा खतरनाक, चालक और बेहतरीन लीडर था। साथ ही यह बात भी सच है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ कई राजनीतिक लीडर्स की हत्या कर दी थी। इसमें श्रीलंका के पूर्व प्रेसिडेंट राणा सिंहों प्रेमदासा सहित कई नामी लीडर्स शामिल हैं।
वेलुपिल्लई प्रभाकरण श्रीलंकाई तमिल गुरिल्ला और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) का संस्थापक था। प्रभाकरण के नेतृत्व में लिट्टे ने तीन दशक तक तमिल ईलम के लिए युद्ध किया।
जन्म
प्रभाकरण का जन्म श्रीलंका के जाफना में एक समृद्ध परिवार में हुआ। उनके पिता के पास काफी सारी जमीन व कई मंदिरों का मालिकाना हक भी थी । श्रीलंका में तमिल को संस्कृति और साहित्य का दिल माना जाता है, आज़ादी के बाद श्रीलंका में कई ऐसी घटनाएं हुई, जिसने लिट्टे आस्तित्व में आया। दरअसल, प्रभाकरण ने 15 साल की उम्र में पढा़ई छोड़कर तमिल यूथ फ्रंट नाम का एक विद्रोही संगठन ज्वाइन कर लिया।
सिंहली और श्रीलंकाई तमिल अल्पसंख्यकों के बीच था तनाव
श्रीलंका में आजादी के बाद बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों के बीच ऐसे मतभेद पैदा हुए, जिसने इस देश को गृह युद्ध की आग में धकेल दिया। दरअसल, उत्तरी श्रीलंका में तमिल रहते थे। जनसंख्या के लिहाज से देश की दूसरी सबसे बड़ा समूह था साथ ही यह लोग सिंहलियों की तुलना में ज्यादा समृद्ध और अधिकतर लोग अपनी जमीन के माालिक थे। जब संविधान बनने के बाद कुछ ऐसे कानून बनाए गए, जिससे तमिल लोगों का वर्चस्व और उनकी समृद्धि पर हमला हुआ। ऐसे कानूनों में 1971 का कोटा कानून सबसे प्रमुख कानून है। कोटा कानून के तहत सिहंली समुदाय के लिए हर स्तर ( पढ़ाई, नौकरी यहां तक की संसद में ) पर ऐसे प्रावधान किये गए, कि तमिल लोगें का प्रतिनिधित्व शासन व प्रशासन में कम होता रहे। इसके बाद ही तमिल लोगों को समझ आ गया कि सरकार द्वारा उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है, तब कई लोग मौजूदा सरकार का विरोध करने लगे और लिट्टे जैसे संगठन की स्थापना हुई।
तमिल न्यू टाइगर्स बन गया लिट्टे
लिट्टे एकदम से आस्तित्व में नहीं आया, बल्कि लिट्टे से पहले प्रभाकरण ने 1972 मेंतमिल न्यू टाइगर्स नाम का एक संगठन स्थापित किया। इस संगठन में शुरूआत में ही कई सारे स्कूली व कॉलेज जाने वाले छात्र साथ जुड़ गए। इसी संगठन को बाद में 1976 में लिट्टे नाम से जाना गया।
दरअसल, पहले प्रभाकरण और उसके संगठन की मांग केवल तमिलों के प्रति न्याय और अधिकारों की स्थापना करना था। लेकिन बाद में लिट्टे तमिलों के लिए अलग देश तमिल ईलम की मांग करने लगा। लिट्टे ने सिंहली प्रभुत्व वाली सरकार और सिंहली नागरिकों द्वारा तमिलों पर भेदभाव करने का आरोप लगाया।
1983 में बोया गया भीषण नरसंहार का बीज
1983 में लिट्टे नें पहली बार सेना की एक टुकड़ी पर हमला किया। इस हमले में 13 सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस हमले के बाद श्रीलंका की सरकार और लिट्टे के बीच भीषण गृहयुद्ध की शुरूआत हो गई। तीन दशकों तक सम्पूर्ण गृहयुद्ध में करीब लाख लोगों की मौत हो गई।
लेकिन 1983 के बाद से दुनिया भर में रहने वाले तमिल लोगों ने लिट्टे को अर्थिक, राजनीतिक के स्तर पर समर्थन देना शुरू कर दिया। यहां तक कि लिट्टे को कई देशों में रहने वाले तमिलों ने हथियार तक मुहैया कराये। इसमें भारत के तमिल लोगों ने भी लिट्टे की खूब मदद की। सैनिकों की हत्या के बाद लिट्टे दिनों-दिन और मजबूत हो गई। अब प्रभाकरण उत्तरी श्रीलंका में बड़े हिस्से को नियंत्रित कर लिया।
लिट्टे का प्रभुत्व बड़ने के बाद सिर्फ सिंहली नेताओं और सिंहली नागरिकों को ही नहीं नहीं मारा, बल्कि जो भी लोग लिट्टे के खिलाफ बोलते, प्रभाकरण उन्हें मरवा देता, फिर चाहें वो तमिल नागरिक हो या उसके खुद के संगठन के लोग। प्रभाकरण श्रीलंकाई सेना के गले की हड्डी बन गया, जिसे न तो वो उगल पा रहे थे न ही निगल पा रहे थे।
राजीव ने प्रभाकरण को दी अपनी बुलेटप्रूफ जैकेट
एक समय ऐसा भी था, जब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण को अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट दे दी थी। दरअसल, जब विश्व का एक बड़ा हिस्सा तमिल ईलम को सपोर्ट करने लगा था। उसी दौरान भारत ने भी लिट्टे को अपना समर्थन बड़े पैमाने पर दिया। उस समय भारत की आर्मी से लेकर रॉ तक ने लिट्टे के लड़ाकाओं को ट्रेनिंग दी। लेकिन बाद में इस हिंसा को रोकने के लिए बातचीत का रास्ता भी अपनाया गया। जिसमें भारत ने काफी अहम भूमिका निभाई।
1987 जुलाई में एक शांति संधि पर अमल करने की बात की गई। इस संधि में कई ऐसी चीज थी जिससे हिंसा को रोका जा सकता था। इस संधि के श्रीलंकाई सरकार को अपने यहां समानता स्थापित करने की बात कही गई, साथ ही सभी विद्रोही संगठनों को हथियार डालकर सरकार के समक्ष अपना समर्पण करना था। पर प्रभाकरण इस बात के लिए राजी नहीं हुआ।
इसी बात को लेकर प्रभारकण दिल्ली आया था। तब राजीव गांधी से भारतीय सेनाओं और एजेंसियों ने कहा कि वह प्रभकरण को बंदी बना लें लेकिन तब राजीव ने कहा कि -नहीं, प्रभाकरण हमारा मेहमान है और हम अपने मेहमान के साथ ऐसा नहीं कर सकते। यही नहीं राजीव ने अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट भी प्रभाकरण को दे दी। बाद में इसी प्रभाकरण ने राजीव गांधी की हत्या करवा दी।
प्रभाकरण ने अपनी सेना में सिकल्ड लोगों को किया था भर्ती
प्रभाकरण पूरे विश्व में अपनी सेना के लिए काफी मशहूर था। लिट्टे एक अकेला ऐसा विद्रोही संगठन था जिसके पास अपनी नेवी और वायुसेना थी। उसके पास ट्रेंड फाइटर पायलट थे, प्रभाकरण के पास कुल 5 एयरक्राफ्ट थे। साथ अन्य विद्रोही संगठनों की तरह वो हर किसी को अपनी सेना में भर्ती नहीं करता था, 100 लोगों के बीच में से, ऐसे 10 लोगों को अपनी सेना में भर्ती करता था जो सबसे ज्यादा फिट हों, स्किल्ड हों , लिट्टे के प्रति समर्पित हो।
महेंद्रा राजपक्षे ने चलाया था मिशन ऑल – आउट
यह गृहयुद्ध 3 दशकों से ज्यादा चला। इसका आखिरी चरण 2005 से 2009 तक चला। 2005 में महेंद्रा राजपक्षे ने लिट्टे के लिए मिशन ऑल आउट चलाया, जिसमें प्रभाकरण मारा गया। 18 मई 2009 को प्रभाकरण के खिलाफ मिशन चलाया गया और अगले ही दिन श्रीलंकाई सेना ने प्रभाकरण को मार गिराया और श्रीलंका से लिट्टे का खात्मा हो गया। लेकिन आज भी श्रीलंकाई तमिल प्रभाकरण का शहीद के रूप में सम्मान करते हैं।