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आखिर कब सबक लेंगे भारत के मुस्लिम सियासतदां

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स्पेन का इतिहास पढ़ा होगा, वहां भी मुसलमानो ने सैंकड़ों वर्ष तक राज किया अपने मज़हब और संस्कृति की छाप छोड़ी। लेकिन धीरे, धीरे सत्ता के नशे और अय्याशियों में डूब गए और सत्ता से बेदखल कर दिए गए। पहले भाषा को ख़त्म किया फिर इस्लामी रहन, सहन ,खान, पान पर रोक लगायी। शासन, प्रशासन से बेदखल किया और उनके खिलाफ झूठा प्रचार किया और उनके खिलाफ नफरत फैलाई। देश की जनता में उनकी दुश्मन की छवि गढ़ी गयी और मुसलमान खामोश रहे, सोते रहे। समय रहते इसका संभल नहीं पाये और फिर्काबंदी की बहसों में उलझे रहे। मुसलमानो में सत्ता के लालची मुनाफिकों की तादाद बढ़ गयी और जो सरकार व शासन में रहे ज़ुल्मो सितम और साज़िशों को खामोश तमाशाई बन कर देखते रहे। कभी आवाज़ नहीं उठाया। कुछ लिबरल और सेक्युलर हो गए तो कुछ नास्तिक। नतीजा ये हुआ की नस्ली सफाया अभियान शुरू हो गया और मुसलमानो का किस्तों में सफाया शुरू हो गया। उनके उलेमा और नेता खामोश रहे और सत्ता का मज़ा लेते रहे। बाद में नौबत ये आयी की एक पुरे मुल्क से उनका सफाया कर दिया गया। स्पेन का इतिहास पढ़िए , तो पता चलेगा , हज़ारो मारे गए , लूटे गए औरतो की इज़्ज़त लूटी गयी, कारोबार तबाह कर दिया गया। उनकी बनायीं गयी ऐतिहासिक इमारतें और उनसे जुड़ी पहचान नष्ट कर दी गयी। लाखो मुसलमान शरणार्थी बन गए और बहुतों को धोखे से समुन्दर में डुबो कर मार दिया गया। ठीक वैसे ही हालात अपने देश में बनाये जा रहे हैं। 800 साल तक यहाँ मुस्लिम शासकों का राज रहा। यहाँ की भाषा, संस्कृति को उन्होंने समृद्ध बनाया। एक नयी तहज़ीब को जनम दिया। शानदार इमारतें दी, लेकिन उन शासकों की अय्याशियों ने उनसे हुकूमत छीन ली और वे अंग्रेज़ो के हाथों सत्ता से बेदखल कर दिए गए और फिर आज़ादी हासिल होने पर सेकुलरिज्म के नाम पर ब्राह्मणवादी शासन की स्थापना हुई. और धीरे , धीरे मुस्लिमों का हर विभाग से सफाया होता रहा और मुस्लिमों के क़ौमी और सियासी रहबर खामोश तमाशा देखते रहे। एक बड़ी पार्टी कांग्रेस की मदद से संघ परिवार मज़बूत हो गया और उसका हिंदुत्तवा का एजेंडा कामियाब हुआ। अब मुस्लिमों के साथ ज़ुल्म होता है तो कोई आवाज़ उठाने वाला भी नहीं होता। मौलवियों को भी सत्ता का मज़ा मिल गया और वे भी सेक्युलर पार्टी में शामिल हो कर M.P ,M.L.A , Minister. बन अपनी पार्टी का बचाओ करते रहे। कुछ मौलाना हज़रात फिरका ,फिरका खेल रहे हैं। मुनाफकत का दौर है। आलिमो और मुस्लिम नेताओं को मोहरा बनाया जा रहा है। संघ ने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नाम से संघी मुसलमानो की फ़ौज तैयार कर दी है , जो हिंदुत्तवा के एजेंडे को कामयाब बना रहे हैं। उर्दू को लगभग ख़त्म कर दिया गया है। सरकारी नौकरियों में मुस्लिम नाम मात्र हैं। कारोबार छीने जा रहे हैं। गाय और मंदिर, मस्जिद विवाद के नाम पर हत्या हो रही है। जगह , जगह दंगे कराये जा रहे हैं। मारने, काटने की धमकियाँ दी जा रही हैं। दर्जनो हिन्दू भगवावादी संगठन मैदान में हैं, जो हथियारों का प्रशिक्षण ले रहे हैं। उनके हथियार बंद दस्ते तैयार हो रहे हैं. जिनके ज़रिये कभी भी बड़े पैमाने पर मुल्क भर में फसाद भड़काया जा सकता है, और फिर कत्लेआम हो सकता है। लेकिन हमारे प्रगतिशील और आधुनिक हैसियातदार और रसूख वाले नेता व बड़े लोग खामोश हैं। उन्हें ये नहीं पता की जब मुल्क के हालात खराब होंगे तो वो भी नहीं बचेंगे। अभी तो फ़िलहाल दादरी और अलवर जैसा काण्ड हो रहा है और उसकी सफलता का अंदाज़ा लगाया जा रहा है। गाय की राजनीती बहुत कारगर साबित हो रही है और तीन तलाक, मंदिर-मस्जिद विवाद के ज़रिये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी नफरत फैला रहा है। ज़ी न्यूज़ पर भगोड़े पाकी तारेक फ़तेह के ज़रिये माहौल बिगाड़ रहा है और मुस्लिम छुटभैया टीवी डिबेट के शौक़ीन मुल्ला भी संघी एजेंडे को कामयाब बना रहे हैं। मुस्लिम संगठनो और सियासी पार्टियों को
भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। और कोई मुसबत हिकमते अमली सामने नहीं आ रही है। सेक्युलर पार्टियां भी सॉफ्ट हिंदुत्तवा की राजनीती पर उतर आई हैं और अब किसी को मुस्लिमों की ज़रूरत नहीं रही।