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गांधी हत्या केस में गोरखपुर मठ के इस महंत का क्या रोल था ?

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वर्ष 1934 में जब दिग्विजयनाथ, नाथ संप्रदाय के महंत बने, तो मंदिर कट्टर हिंदुत्व की राजनीति केन्द्र बन गया। 1894 में जन्‍मे दिग्विजयनाथ का पालन पोषण मठ में ही हुआ था, महंत बनने के तीन साल के बाद ही 1937 में वे हिंदू महासभा के प्रमुख चुन लिए गए थे। कहा जाता है कि महासभा के अन्य सदस्यों की ही तरह वे भी महात्मा गांधी के आलोचकों में से एक थे। उन्हें महात्मा गांधी की हत्या के षड्यंत्र के आरोप में भी गिरफ्तार किया गया था, उन पर आरोप था कि उन्होंने ही नाथूराम गोडसे को हथियार दिए थे।

राजेंद्र गोदारा जी लिखते हैं -:

नन्हे सिंह जिनका जन्म 1894 में उदयपुर में हुआ था, माता पिता बचपन में ही गुजर जाने के कारण इन्हें गोरखपीठ भेज दिया गया जहां तबके मठाधीश योगी बाबा ब्र्ह्मनाथन ने उन्हें दीक्षा दी और नाम दिया योगी दिग्विजय नाथ। 1935 में इन्हीं दिग्विजय नाथ ने गुरू के स्वर्गारोहण के बाद गद्दी धारण की और नाम मंहत दिग्विजय नाथ धारण किया, 27 जनवरी 1948 को मंहत दिग्विजय नाथ ने खुलेआम दिये अपने तथाकथित उपदेश में गांधीजी की हत्या को देश के लिए जरुरी बताया। उन्होंने 20 जनवरी को गांधी जी की हत्या के असफल प्रयास के असफल होने को देश का दुर्भाग्य बताया और आगे ये भी कहा की वे 1937 से हिंदू महासभा के तबसे पदाधिकारी हैं, जब सावरकर पहली बार इस के अध्यक्ष बने और हिंदू महासभा का अंत तक प्रयास रहेगा की आजाद भारत में महात्मा गांधी कम से कम सांस लें।

इन्हीं दिग्विजय नाथ ने 1943 में एक पिस्टल खरीदी जिसका बाकायदा अंग्रेजी सरकार से लाइसेंस लिया गया और ये पिस्टल 1944 में चोरी हो गई जिसकी रिपोर्ट बाकायदा थाने में लिखाई गई, कहा जाता है की उस जमाने में कानून व्यवस्था ऐसी थी की अगर किसी के जूते भी खो जायें तो 24 घण्टे के अंदर पुलिसकर्मी ढूंढ लेते थे, पर वो पिस्तौल साढे तीन साल बाद तब मिली, जब नाथूराम गोडसे नामक दंरिदे ने उसी पिस्तौल से गांधीजी की हत्या की।

गांधीजी पर हमले पिस्टल से 1944 से ही शुरू हो गए थे, अब पता नहीं वे हमले इसी दिग्विजय नाथ की नामी पिस्तौल के गुम हो जाने के साथ ही कैसे शुरू हुए ? 30 जनवरी 1948 को बापू की हत्या के बाद मंहत दिग्विजय नाथ को भी अन्य षडयंत्रकारीयों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और 9 महिने तक चले शुरूआती मुकदमे के फैसले तक वे जेल में रहे और सावरकर व गोलवलकर की तरह ही साक्ष्य में कमी के कारण बरी हुये।

न्यायालय ने तब भी कहा था की वे ये नहीं कहते की सावरकर गोलवलकर व दिग्विजय नाथ इसलिये बरी हो रहे है की वे निरपराध है बल्कि इसलिये बरी हो रहे है क्यों की इन के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं पेश किये गए, ध्यान दिजियेगा न्यायधीश महोदय ने ये नहीं कहा की इन के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं हैं। बल्कि कहा की पुख्ता सबूत पेश नहीं किये गए, गांधीजी की हत्या के बाद जस्टिस जीवन लाल कपूर ने भी कहा की सावरकर गोलवलकर व दिग्विजय नाथ की भूमिका बेहद संदिग्ध है और जस्टिस कपूर ने ये भी कहा की एक मठ के मठाधीश का इस में अहम रोल होना ही ये सिद्ध करने के लिए काफी है की इस हत्या से देश में हिंदू मुस्लिम दंगा भङकाने की एक बहुत बङी योजना थी, जिसे सरकार की तुरंत कारवाई ने नाकाम कर दिया।

जस्टिस कपूर ने इस पर और जांच खास तौर से मंहत दिग्विजय नाथ की भूमिका और उस की सावरकर और गोलवलकर की जुगलबंदी की गम्भीरता से और जांच करवाने की आवश्यकता जताई।

इन्ही मंहत दिग्विजय नाथ ने 1952 के चुनाव में कहा था की अगर हिंदू महासभा की सरकार बनती है और विनायक सावरकर प्रधानमंत्री बनते है तो मुसलमानों से वोट डालने का हक दस साल के लिए छीन लिया जायेगा और दस साल के बाद भी उस की समीक्षा उसी तरह की जायेगी जैसे की आरक्षण की जायेगी और अगर आरक्षण आगे कायम रहा तो मुसलमानों को भी वोट डालने पर प्रतिबंध आगे भी जारी रहेगा पर हिंदू महासभा का तो खाता ही नहीं खेखुला और मंहत के सपने धरे रह गये।

 

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