आख़िर क्या है ये ‘हर्ड इम्युनिटी’ ?

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कोरोना से निपटने के लिए अलग अलग देश अपने संसाधनों की क्षमता के अनुसार अलग अलग तरीक़े से लड़ रहें हैं। सबसे आम और अब तक सफल है – ‘वुहान शहर का लॉक डाउन मॉडल’। मतलब सब लोग घरों में बंद और सबकी ज़िम्मेदारी सरकार की। सबको यह मॉडल ठीक लग रहा है, लेकिन स्वीडन इसे नहीं मान रहा। अमेरिका के चेताने के बाद भी कि क्या तुम हमसे और इटली से कुछ नहीं सीख रहे? तो स्वीडन का जवाब था कि “हम हमारे तरीके से लड़ेंगे। आप हमारी फिक्र न करें।” और उनका तरीका क्या है दोस्तों? जी हाँ, ‘हर्ड इम्युनिटी’। इसका मतलब हुआ समूह की रोगप्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने का मॉडल।

‘हर्ड इम्युनिटी’ एक ऐसी इम्युनिटी है जो समूहों में होती है। इसका एक तरीका तो यह है कि बड़े पैमाने पर वैक्सीन लगाया जाए जैसे कि पल्स पोलियो अभियान। आज पूरे विश्व के लोगों में उसके प्रति इम्युनिटी है। या फिर लोगों को वह इंफेक्शन हो और उनका शरीर उसके खिलाफ इम्युनिटी डेवलप कर लें। जैसे कि अगर हमें एक बार मिज़ल्स (खसरा) हो जाता है, तो फिर जीवन में दोबारा नहीं होता। हम खसरे के मरीज़ को छू सकते हैं, उसकी सेवा कर सकते हैं, उसकी त्वचा के रेशेस पर अपनी हथेलियों से कोई तेल मल सकते हैं लेकिन हमें वह नहीं होती। क्यों? क्योंकि, हमारे शरीर में उसके प्रति जीवनभर के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है। स्वीडन का भी यही मत है, कि वह इसी आधार पर लड़ेगा कोरोना से।

फोटो – विकिपीडिया 

उसका कहना है कि जिन रोगियों को ज़रूरत होगी उन्हें हम भर्ती करेंगे और इलाज करेंगे लेकिन पूरा देश या शहर के शहर बंद नहीं करेंगे। फिलहाल दुनिया भर में वुहान के मॉडल को सफल माना जा रहा है, क्योंकि चीन ने वहां से कोरोना को खत्म करके दिखाया है। अब देखना है कि स्वीडन का मॉडल क्या परिणाम देता है।

कोरोना के मामले में विशेषज्ञों द्वारा यह कहा जा रहा है कि इससे लांग टर्म इम्युनिटी हो जाती है। क्योंकि इसका सहोदर कहे जाने वाले सार्स से शरीर में 8 से 10 साल के लिए इम्युनिटी हो जाती है। ऐसा टेक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया है। कोरोना में भी फ़िलहाल एक आध केस को छोड़कर किसी ठीक हुए रोगी में वायरस का पुनः संक्रमण नहीं हुआ। हमें इस महत्वपूर्ण बात को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए। इस पर गहन शोध हो। जब सब लोग घरों में कैद ही है तो कोरोना से ठीक हुए मरीज़ों को स्वेच्छा से दुनिया को बचाने के लिए रिसर्च में या बचाव अभियान में साथ देना चाहिए। एफडीए भी इसकी अनुशंसा कर चुका है।

एफडीए ने ठीक हुए रोगियों के सीरम से भी कोरोना के क्रिटिकल मरीज़ों के उपचार करने की इजाज़त दी हैं। कोरोना को हराने वालों को लोगों का हौसला बढ़ाने में या पीड़ितों की सेवा करने में अपनी सेवा देना चाहिए। उनका इस डर के माहौल में कोरोना को हराना एक पुनर्जन्म ही तो है। तो क्यों ना वे अपने इस नए जीवन को मानवता को बचाने के लिए काम में लाए। मानवता को फिलहाल इन विजेताओं की सख्त ज़रूरत है।

~ डॉ अबरार मुल्तानी, लेखक और चिकित्सक