कल दोस्तों से बात हो रही थी और किसी ने कहा कि आज तक यूएन ने आतंकवाद की कोई एक और सुनिश्चित परिभाषा नहीं दी है। लेकिन 9/11 के बाद तो जैसे दुनिया भर की मीडिया ने अपनी परिभाषा तय कर ली है – हिंसा का सहारा लेने वाले मुसलमान आतंकवादी हैं जबकि दूसरे धर्म के ऐसे लोग संदेहास्पद, सरफिरे, रामभक्त, गोरक्षक, हमलावर वग़ैरह वग़ैरह हो सकते हैं।
और इस फिनोमिना ने असर दिखाया भी है। लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था – सारे मुस्लिम आतंकवादी नहीं हैं लेकिन सारे आतंकवादी मुसलमान हैं।
वे कितनी आसानी से भूल गए कि लंका में लिट्टे तमिल हिंदुओं का मूवमेंट था, बर्मा में हथियार बौद्धों के हाथ मे है, कू क्लक्स क्लेन हो या आयरलैंड श्वेत ईसाइयों के हाथ मे हथियार था, सिख आतंकवाद हमारी एक प्रधानमंत्री की जान ले चुका था और आतंकवादियों की जिस भीड़ ने बाबरी मस्जिद तबाह की, वह उसके पक्ष में खड़े थे। वह कौन सी परिभाषा है जिसके तहत अक्षरधाम मंदिर पर हमला करने के आरोपी आतंकवादी कहे जाते हैं लेकिन बाबरी के हमलावर रामभक्त! वह कौन सी परिभाषा है जिसके तहत दुनिया मे दो दो बार एटम बम गिराने वाला, अनेक देशों को तबाह कर देने वाला अमेरिका एक आतंकवादी देश नहीं है? ओबामा को मिला शांति का नोबल मज़ाक नहीं तो और क्या था?
मैं अंतरराष्ट्रीय राजनीति बहुत नहीं समझता। लेकिन इतना जानता हूँ कि तेल के खेल ने यह जो मुस्लिम हेटिंग का हटिंगटनी सिद्धान्त फैलाया है उसने पूरब और पश्चिम दोनों के नस्ली श्रेष्ठताबोध को सहलाकर वह माहौल बनाया है जिसमें हिंदुस्तान से लेकर न्यूज़ीलैंड तक मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं। नफ़रत की इन्तेहाई आग में जलता कोई धर्मांध ही न्यूज़ीलैंड जैसी खौफ़नाक घटना को अंजाम दे सकता है।
रिएक्शन, बदला, आई एस आई एस वग़ैरह वग़ैरह इसे रोक नहीं सकता। इसे रोकने के लिए इसके समानांतर एक आख्यान खड़ा करना होगा। ख़ैर सबसे पहले तो इस तरह की हर क्रूरता को दक्षिणपंथी आतंकवाद कहना सीखना होगा।
जी एक दक्षिणपंथी आतंकवादी ने हमला कर पचास से अधिक शांतिप्रिय जन को मार डाला। आइए नफ़रत की इस आग से अपने देश को बचा लें जहाँ ऐसे ही दक्षिणपंथी आतंकवादियों ने पिछले बरसों में कई बेगुनाहों को मार डाला।
कश्मीर के प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट सुहैल नक्शबंदी का यह रेखांकन इस विडम्बना की कितनी सटीक अभिव्यक्ति है…