नज़रिया – डूबना ही शहरों की त्रासदी है अब

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भारत की सिलकॉन सिटी कहा जाने वाला बेंगलौर बर्षात झेलने के लायक नहीं रहा। एक ही वर्षा में पूरा शहर ऐसा डूबा की लोग त्राहि-त्राहि कर उठे ,जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया और दुनिया की तमाम तकनीक धरी की धरी रह गयी। डूबने की ये त्रासदी हमने खुद आमंत्रित की है, और आप देखेंगे की आने वाले वर्षों में एक के बाद एक शहर आपको जला प्लावित होते नजर आएंगे।

जिस समय बेंगलौर (Bangluru) डूब रहा था,मै मुंबई में वर्षा का तांडव देख रहा था। मुझे तेज वर्षा में 32 किलोमीटर का सफर तय करना था ,लेकिन वर्षा ने जैसे समूची गति को रोक दिया। रास्ते में कहीं छिपने की जगह नहीं। पेड़-पौधे तो पहले ही काटे जा चुके हैं। ऐसे में लोग या तो भीग रहे थे या फिर फ्लाईओव्हरों के नीचे खड़े होने को मजबूर थे। पूरे शहर में बरसात के पानी की निकासी के तमाम इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे थे। सड़कों पर इतना पानी था कि दो पहिया वाहनों के साथ -साथ चार पहिया कारों तक के इंजिन में पानी भर गया।

शहरों के डूबने का खतरा केवल समुद्र किनारे के शहरों में नहीं बल्कि उन शहरों में भी हैं जिनके आसपास मीलों दूर कोई समुद्र नहीं है। मुंबई और चेन्नई जैसे तटीय शहरों में तूफानों की वजह से बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। क्योंकि शहर का सारा पानी समुद्र में जाता है, अगर समुद्र से पानी वापस आने लगे तो दिक्कत होने लगती है। क्योंकि ऐसे किसी भी शहर की स्टॉर्म ड्रेन क्षमता यानी बारिश के पानी को निकालने की क्षमता समुद्र की तरफ से आने वाले पानी से कम होता है। हिन्दुस्तान में ‘ मास्टर प्लान तो बनते हैं लेकिन उन पर कभी भी ढंग से अमल नहीं होता। बढ़ती आबादी के दबाब को झेलते अधिकांश बड़े और मझोले शहरों में कब,क्या समस्या सर उठाकर खड़ी हो जाये , कोई नहीं जानता।

पूरे हिन्दुस्तान के शहरों की समस्याओं को समझने के लिए बेंगलौर एक उदाहरण हो सकता है। आपको शायद पता हो कि इस शहर की आबादी 1901 में 1.6 लाख थी. आज के समय में एक करोड़ से ज्यादा लोग यहां पर रहते हैं. तेजी से बढ़ी आबादी की वजह से शहर में जमीन की जरुरत भी बढ़ा दी। इसकी वजह से शहर तेजी से फैलने लगा। लेकिन लोगों ने जमीन की बनावट को नहीं समझा। घाटियों और ऊंचाई वाले इलाकों में निर्माण होता चला गया। अब बेंगलौर की तरह किसी भी शहर के पास अब अब पुरानी टोपोग्राफी तो रही नहीं। पानी के छोटी-छोटी निकासी और नहरें बंद होती चली गईं। लापता ही हो गईं,स्थिति ये है कि लोगों ने शहर के पुराने नालों तक को निगल लिया है,उनके ऊपर भी मकान बन गए हैं।

दुर्भाग्य की बात ये है कि हमारे पास नगर नियोजन के लिए एक से बढ़कर एक दिमाग हैं, बजट है लेकिन जमीं पर कोई योजना कामयाब नहीं हो पा रही। देश का विकास उन हाथों में है जो नगर नियोजन के किसी भी प्रावधान को मानने के लिए राजी नहीं है। विकास नगर नियोजकों के लिए कोई जरूरी चीज नहीं है। जिसे जहां जैसा ठीक लग रहा है वैसा विकास हो रहा है। यही अनियोजित विकास तमाम समस्याओं की जड़ है।

दुनिया जानती है कि कोई भी ताकत जमीन का निर्माण और उत्पादन नहीं कर सकती,यानी जमीन जितनी है उतनी ही रहने वाली है। लेकिन हमारा लालच और जरूरत हमें समुद्र तक को पाटने की ताकत दे रहा है। हम कूड़े-कचड़े के ढेर पर भी रहने की कोशिशें कर चुके हैं ,ऐसे में हमारी बसाहटों को डूबना ही है। फिर चाहे वे अत्याधुनिक सिलिकॉन वैली हों या और कोई बसाहटें ।

भारत में कम से कम 04 हजार शहर तो हैं ही लेकिन आज भी सबसे बड़ी आबादी गांव में रहती है। हमारे गांव भी शहरों कि तरह अब अनियोजित विकास के शिकार बनते जा रहे हैं। हमने उपलब्ध सुविधाओं में से ज्यादातर शहरों में केंद्रित कर रखीं है,बावजूद इसके न शहर सुरक्षित हैं और न गांव। बाढ़ की विभिषकाएं अब स्थायी बन चुकी हैं। जल भराव से अर्थव्यवस्था को अकूत नुक्सान तो होता ही है साथ ही राहत और बचाव की नयी समस्या खड़ी हो जाती है।

मौजूदा सरकार ने देश के सैकड़ों शहरों को विकसित करने के लिए ‘ स्मार्ट सिटी जैसी एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई। इस योजना से शहर स्मार्ट होने के बजाय और समस्याग्रस्त हो गए ,क्योंकि इस योजना का अमल भी आँखें बंद कर किया गया। स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का अधिकाँश पैसा भ्र्ष्टाचार की भेंट चढ़ गया। नेताओं और अफसरों ने इस योजना कि ऐसी बंदरबांट की कि देखकर शर्म आ जाये। डूबता बेंगलौर तो एक उदाहरण है ही। सरकार एक तरफ विकास का गीत गाती है दूसरी तरफ विकास की दुश्मन भी खुद ही बन जाती है। देश के शहरों और गांवों को प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए अब शहरी विकास के लिए नए ढंग से सोचना होगा ,अन्यथा विकसित होते शहर डूबने के लिए अभिशप्त बने रहेंगे।

अनियोजित विकास की ये समस्या सुरसा मुख की तरह बढ़ती ही जाने वाली है वर्ल्डोमीटर के अनुसार भारत की जनसंख्या 2021 में 139 करोड हो चुकी है आखरी बार भारत की जनसंख्या की जनगणना 2011 में की गई थी जिसके अनुसार भारत की जनसंख्या 18.1 करोड से बढ़कर 1.21 अरब हो गई थी जिसमें आबादी 17.64 फीसदी रही थी। भारत में जनसंख्या घनत्व 464 प्रति वर्ग किलोमीटर है औऱ भारत की कुल आबादी का लगभग 35 फीसदी हिस्सा शहरो में रहते है। अब ये आपको तय करना है कि हम डूबते रहें या इससे बचाव के स्थायी इंतजाम करें।

@राकेश अचल