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विदेश में रहकर देश की आज़ादी के लिए लड़ते रहे "रास बिहारी बोस"

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प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी बोस की 25 मई को 132वीं जयंती है.‘‘एशिया एशियावासियों का है’’ का नारा बुलन्द करने वाले रास बिहारी बोस उन गिने-चुने क्रांतिकारियों में हैं, जिन्होंने न केवल देश में बल्कि विदेश में भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया तथा सोए हुए भारतीय राष्ट्रवाद को जगाया था.दिल्ली में तत्कालीन वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनाने, गदर की साजिश रचने और बाद में जापान जाकर इंडियन इंडिपेंडेस लीग और आजाद हिंद फौज की स्थापना करने में रासबिहारी बोस की महत्वपूर्ण भूमिका रही.
उनका जन्म 25 मई 1886 को बंगाल में बर्धमान जिले के सुबालदह गाँव में हुआ था. इनकी आरम्भिक शिक्षा चन्दननगर में हुई, जहाँ उनके पिता विनोद बिहारी बोस नियुक्त थे रासबिहारी बोस बचपन से ही देश की आजादी के सपने देखा करते थे और क्रान्तिकारी गतिविधियों में उनकी गहरी दिलचस्पी थी.जानें उनके जिंदगी से जुड़े ये रोचक किस्से

गवर्नर जनरल की हत्या योजना बनाई

रास बिहारी बोस की छवि और लोगों से बेहद अलग थी. उन्होंने अपने समय का सबसे दुस्साहस भरा काम किया, अगर बाकी क्रांतिकारियों की घटनाओं से तुलना करेंगे तो आप पाएंगे ये शायद सबसे हिम्मत का काम था. गवर्नर जनरल की हैसियत उस वक्त वही होती थी जो आज प्रधानमंत्री की है. बता दें, रास बिहार ने उस वक्त के गवर्नर जनरल की हत्या की ही योजना बना ली थी, उस लॉर्ड हार्डिंग की जो देश की राजधानी कोलकाता से दिल्ली लाया था. उस समय रास बिहारी बोस देहरादून की फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में काम कर रहे थे.

जब बम बनाना भी सीखा

रास बिहारी का केमिकल्स के प्रति लगाव इतना लगाव था कि उन्होंने क्रूड बम बनाना सीख लिया था. पश्चिम बंगाल में अलीपुर बम कांड में उनका नाम आने के बाद वो देहरादून शिफ्ट हो चुके थे, लेकिन देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा अभी कम नहीं हुआ था.

रास बिहारी लॉर्ड हॉर्डिंग की हत्या बम से करना चाहते थे

रासबिहारी बोस ने पंजाब के क्रांतिकारियों का नेतृत्व बखूबी संभाला. बंगाल के विभाजन से युवकों का खून अभी खौल रहा था.दिसम्बर 1911 मे दिल्ली दरबार की तैयारी जोरों पर थी. यह तय हुआ कि विभाजन के विरोध में वाइसराय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंका जाए. बसंत कुमार विश्वास को रास बिहारी बोस ने इस काम के लिए तैयार किया और 23 दिसम्बर 1942 को जब लार्ड हार्डिंग एक बड़े जुलूस में हाथी पर सवार चांदनी चौक से गुजर रहे थे, उन पर बम फेंका गया. वह मरे तो नहीं, मगर गोरे शासक दहल उठे. सीआईडी दौड़ पड़ी और पुलिस में तहलका मच गया. फिर भी रास बिहारी बोस लाख कोशिश करने पर भी गोरों की पकड़ में नहीं आएं. तीन-चार अन्य लोगों को फांसी पर लटका दिया गया. रास बिहारी बोस की गिरफ्तारी के लिए पुरस्कार की घोषणा भी की गई.

वापस लौटे ऑफिस

लॉर्ड हॉर्डिंग की हत्या में असफलता के बाद वह उन्होंने फौरन रात की ट्रेन देहरादून के लिए ली और सुबह अपना ऑफिस भी ज्वॉइन कर लिया. कई महीनों तक अंग्रेज पुलिस पता नहीं कर पाई कि जिसने बम फेंका आखिर वह मास्टर माइंड कौन था. शायद ही कोई अंदाजा लगा सकता कि बम फेंकने वाला कोई और नहीं बल्कि खुद उनका मुलाजिम एक जूनियर क्लर्क है. बता दें इतिहास के इस को ‘दिल्ली कांस्पिरेसी’ के नाम से जाना जाता है.

जब मंडराने लगा गिरफ्तारी का डर

रास बिहारी बोस छिपे-छिपे क्रांतिकारियों का नेतृत्व करते रहे. पुलिस उनके पीछे पड़ी थी, लेकिन लाख कोशिश करने पर भी पुलिस उन्हे पकड़ नहीं पायी. सन् 1914 में विदेशों से गदर पार्टी के बहुत से लोग पंजाब आ चुके थे, जिनका उद्देश्य भारत में सशस्त्र क्रांति करना था. उनके नेतृत्व के लिए रास बिहारी बोस ने पिंगले को भेजा और बाद में खुद भी अमृतसर गये. साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में क्रांतिकारी तैयार किये गये, ताकि वे नियत समय पर क्रांति को सफल बनाने में सहयोग दे सकें. सेना में भी विद्रोह के बीज बोएं गये, परन्तु भेद खुल गया और कई क्रांतिकारी पकड़ कर फांसी पर लटका दिये गये. रास बिहारी बोस को खतरा दिखा, जिसके बाद वह प्रथम विश्व युद्ध छिड़ जाने के बाद एक फर्जी नाम का पासपोर्ट बनवाकर 1915 में जापान चले गये.

अंग्रेज सरकार बुरी तरह रास बिहारी के पीछे

रास बिहारी को जापान में कहां सुकून मिलने वाला था. अंग्रेज सरकार ने पता लगा लिया था कि वह जापान के टोक्यो में हैं. ब्रिटिश सरकार ने जापान की सरकार से कहा कि वह रास बिहारी बोस को पकड़कर उसे सौंप दे, लेकिन एक ताकतवर जापानी लीडर ने उन्हें अपने घर में छुपाया. लेकिन अंग्रेज पुलिस कहाँ रास बिहारी का पीछा छोड़ने वाली थी. उस दौरान उन्हें कुल 17 ठिकाने जापान में बदलने पड़े थे.

बाहरी दुनिया से बनाया रिश्ता

दूसरे देश में रास बिहारी की मदद जापानियों ने की. उन्हें बेकरी मालिक के घर में छुपने की जगह मिली. वो महीनों तक वहां छुपे रहे. उनका बाहर निकलना मुमकिन नहीं था, ना बाहरी दुनिया से कोई रिश्ता था. ऐसे में वो बेकरी के लोगों और बेकरी मालिक के परिवार के साथ घुलमिल गए, बेकरी में काम करने लगे. जहां वह बेकरी के लोगों को भारतीय खाना बनाना सिखाने लगे.

रास बिहारी की प्रेम कथा

किस्मत अच्छी थी. जापान में एक ब्रिटिश शिप में आग लग गई, जिसमें रास बिहारी से जुड़े कागजात भी जलकर खाक हो गए. जापान सरकार ने भी डिपोर्टेशन का ऑर्डर वापस ले लिया, अब रास बिहारी जापान में आजादी से घूम सकते थे. अब उन्होंने तय कर लिया था कि वह बेकरी छोड़ देंगे, लेकिन बेकरी के मालिक ने उनसे अपनी बेटी से शादी करने का आग्रह किया. जो कई सालों से रास बिहारी के लिए खाना लाती थी. रास बिहार और उस जापानी लड़की में एक अनजाना सा रिश्ता बन गया था. अगले कुछ सालों तक रास बिहारी घर गृहस्थी में मशगूल हो गए, दो बच्चे हुए. अचानक 1925 में उनकी पत्नी की न्यूमोनिया से मौत हो गई.वे जापानी लड़की तोशिका के शव के पास बैठकर उनकी आत्मा की शांति के लिए संस्कृत के श्लोक पढ़ते पढ़ते मोह माया के भंवर से निकल गए. जिसके बाद उन्होंने फिर सोच लिया देश को आजाद कराने के बारे में.

आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना

स्वतंत्रता आंदोलन को शक्तिशाली बनाने के लिए रास बिहारी बोस ने 21 जून 1942 को बैंकाक में सम्मेलन बुलाया. उनका विश्वास था कि सुसंगठित सशस्त्र क्रांति से ही देश को आजाद किया जा सकता है. उनका यह भी विश्वास था कि इस क्रांति को सफल बनाने में ब्रिटिश विरोधी विदेशी राज्यों की सहायता आवश्यक है. दिसम्बर 1941 में रास बिहारी बोस ने जापान में आजाद हिन्द फौज की स्थापना की और कैप्टेन मोहन सिंह को उसका प्रधान नियुक्त किया. इस फौज का उद्देश्य भारत से अंग्रेजों को मार भगाना था. लेकिन बाद में मोहन सिंह और रास बिहारी बोस के बीच मतभेद हो गये. 4 जुलाई 1943 को रास बिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज की बागडोर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के हाथ सौंप दी, क्योंकि वे स्वयं वृद्ध अवस्था  में पहुंच गये थे. उन्होंने इण्डियन इण्डीपेण्डेण्ट्स लीग के सभापति पद से इस्तीफा दे कर सुभाषचन्द्र बोस को इस पद पर नियुक्त किया.
इस महान और साहसी क्रांतिकारी ने 21 जनवरी 1945 को टोक्यो, जापान में आखिरी सांस ली. नेताजी ने कहा था कि रास बिहारी बोस पूर्व एशिया में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जन्मदाता थे. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.

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