राजीव गांधी की सरकार ने 1987 में 500 व वाजपेयी सरकार ने 1998 में 1000 के नोटों को दोबारा किया था जारी. सन 1998 के मई में वाजपेयी सरकार को केंद्र में सत्ता संभालते ही सरकार के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को नए करेंसी नोटों की बढ़ती मांग का सामना करना पड़ा था. 1000, 5000 और 10,000 के नोटों को करीब दो दशक पहले ही बंद कर दिया गया था. उसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास हुए और उसी को देखते हुए सरकार बड़े नोट लाना चाह रही थी. सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से इस पर राय मांगी. आरबीआई के बोर्ड में शामिल कुछ शीर्ष उद्योगपति शामिल थे उन्होंने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था.
उसके बाद वाजपेयी सरकार ने मोरारजी देसाई सरकार के 1978 के फैसले को पलटते हुए 1000 के नये नोट बैंक में जारी किए. वित्त मंत्री सिन्हा ने नौ दिसंबर 1998 को लोक सभा में कहा कि वो मानते हैं कि अधिकतर सांसद इस बात पर उनसे सहमत होंगे कि अवैध लेनदेन की जड़ बड़े नोट नहीं हैं बल्कि कहीं और हैं. लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि अवैध लेनदेन की वो जड़ कहां है.
यहाँ ये भी ध्यान लेने लायक बात है कि तत्कालीन वित्त मंत्री ने अपने फैसले के बचाव में यह तर्क दिया था कि 1978 में बड़े नोटों को बंद करने के बाद रुपये की क्रय शक्ति काफी गिर गई है. 1982 को आधार वर्ष मानकर तुलनात्मक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अनुसार 1998 में 1000 का मूल्य सिर्फ 160 रुपये रह गया था. इसका सीधा मतलब ये था कि सामान्य उपभोक्ता को साधारण लेन-देन के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे थे. इसी वजह से वाजपेयी सरकार ने 1000 के नोट दोबारा जारी करने का फैसला लिया था. (ये भी ध्यान रखें कि उस समय भुगतान के दूसरे आधुनिक तरीके प्रचलन में नहीं आए थे)
जब विपक्षी दलों ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया था तो सिन्हा ने जवाब में कई रुचिकर आंकड़े पेश किए थे. सिन्हा के अनुसार 1998 में नए नोटों की मांग सालाना 15-20 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी. इस वजह से सरकार को नोटों की संख्या बढ़ानी पड़ रही थी. सरकार द्वारा नासिक और देवास स्थित अपने छापेखानो को आधुनिक बनाया गया था. आरबीआई को भी मैसूर और शालबनी स्थित अपने छापेखानों में नए मशीनें लगानी पड़ीं थी. 100 के नोटों पर दबाव घटाने के लिए 500 के नोटों का मुद्रण पहले से बढ़ा दिया गया था. सरकार ने कुल एक लाख करोड़ रुपये मूल्य के 360 करोड़ नोट (100 रुपये के 200 करोड़ नोट, 500 के 160 करोड़ नोट) उस समय आयात किए.
इसके बावजूद सिन्हा ने बताया कि नए नोट की मांग 2004-05 तक 1268 करोड़ नोटों तक पहुंच जाएगी. इसलिए सरकार को 1000 के नोट मुद्रित करने के लिए बाध्य होना पड़ा है.
ऐसा भी नहीं है कि इस मुद्दे पर पहले विचार नहीं किया गया था. सन 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पास वित्त मंत्रालय का प्रभार भी था. राजीव गाँधी की सरकार ने 1978 में बंद किए गए 500 के नोटों को दोबारा जारी किया था. हालांकि जब पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री थे तो वित्त मंत्रालय के मुद्रा विभाग के संयुक्त सचिव ने बड़े नोट जारी करने की सलाह दी थी जिसे सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया था.