वो इकलौता बागी “कांग्रेसी” जो इमरजेंसी में जेल गया था

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गंगा के किनारे बसा ऐतिहासिक शहर बलिया उन क्षेत्रों में से एक हैं जिन्होंने 1947 में सबसे पहले खुद को आज़ादी की घोषणा कर दी थी,शायद यही ही वजह थी कि ग़ुलामी की जंजीरों को तोड़ने का ज़िम्मा यहाँ पैदा होने वालों के खून में पाया जाता है,
यही वजह है कि इस जमीन ने एक समाजवादी “हीरे” चंद्रशेखर को जन्म दिया था।

बलिया के बाबू साहब के नाम से प्रसिद्ध चंद्र शेखर का जन्म आज ही के दिन 1 जुलाई 1927 को हुआ था,अपनी राजनीतिक शुरुआत प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से करने वाले “अध्यक्ष जी” उन नेताओं में से एक थे जो कभी भी किसी पद पर नहीं रहें,बार बार केंद्रीय मंत्री पद लेने से मना करते रहे,क्योंकि उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनना था।

चंद्रशेखर उन नेताओं में शुमार थे जो अपनी बहादूरी के लिए प्रसिद्ध थे, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर चुके इस “युवा तुर्क” का जलवा ये था कि एक बार इंदिरा गांधी के सामने ही उनसे कांग्रेस को तोड़ने की बात कह दी थी,गौर करने की बात ये है कि वो देश की प्रधानमंत्री थी और ये उनकी पार्टी के सिर्फ एक सांसद थे।

राजनीतिक सफर बहादुरी से भरा रहा

चन्द्रशेखर ने लगातार पार्टियां बदली,बनाई और जोड़ी थी, उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से अपना राजनीतिक करियर शुरू किया,1964 में कांग्रेस जॉइन की,जहां उन्होंने “युवा तुर्क” का तमगा हासिल किया, इसी बेबाकी की वजह से कांग्रेस में रहते हुए भी उन्हें आपातकाल में जेल जाना पड़ा था।

1977 में जेल से आने के जब तमाम राजनीतिक लोगों ने एक नई राजनीतिक पार्टी जनता दल बनाई तो उसका अध्यक्ष पद चंद्रशेखर ही को दिया गया था,और लगातार कई पार्टियों के अध्यक्ष रहने ही कि वजह से उनका नाम “अध्यक्ष” जी भी पड़ गया था,क्योंकि वो काफी लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर काबिज रहे थे ।

कुल 8 बार लोकसभा के सांसद रहें और 2 राज्यसभा सदस्य चन्द्र शेखर ने कभी भी “लाल बत्ती” नहीं ली और वो लगातार सांसद ही बने रहें,ये एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड है जो अब भी बरकरार है,ऐसा यक़ीन और जज़्बा की बनूंगा तो सिर्फ प्रधानमंत्री ही रखना आज के समय मे कम ही नेताओं के पास होता है।

कैसे बने देश के प्रधानमंत्री

1990 के दौरान मंडल कमीशन को लेकर बवाल मचा हुआ था. इस दौरान भाजपा ने वीपी सिंह की पार्टी से समर्थन खींच लिया।

इस समय जनता दल के भीतर अंदरूनी कलह मची हुई थी और राजीव गांधी ने चंद्रशेखर से हाथ मिला लिया था, और साल 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार को दिया समर्थन वापस ले लिया साथ ही लगभग 64 सांसद उस वक्त चंद्रशेखर के समर्थन में आ गए थे।

वीपी सिंह की सरकार गिरने का यही प्रमुख कारण बना। इसके बाद साल 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की पार्टी जनता दल का पतन हो गया,अब हालात ये बन चुके थे कि देश में तुरंत चुनाव कराए जाने या फिर वैकल्पिक सरकार बनाए जाने की जरूरत थी।

इस मौके को ध्यान में रखते हुए राजीव गांधी ने चंद्रशेखर से बात की और फिर वैकल्पिक राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस पार्टी के समर्थन से चंद्रशेखर को देश मे 8वां प्रधानमंत्री बनाया गया था।

क्यों याद करें चंद्रशेखर को?

आज के दौर में जहां 20 से 30 साल भी एक ही पार्टी में गुज़ार।लेने के बाद नेता अपनी पार्टी को छोड़ देते हैं,इधर से उधर यूँ ही चले जाते हैं उन्हें इस मज़बूत नेता से विचारधारा और उसूलों को जानना चाहिए।

ये उस पीढ़ी के नेता थे जो अपने उसूलों को सबसे ऊपर रखना जानते थे,और जब उसूलों पर आंच आ जाये तो ये नेता देश के प्रधानमंत्री का पद भी छोड़ने से गुरेज़ नहीं करते थे।

यही वजह है कि कांग्रेस के इस युवा तुर्क को याद किया जाना और इनके बारे में पढ़ना और लिखना बहुत ज़रूरी हैं,क्यूंकि इतिहास में इन नेताओं का नाम हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।

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