देश में मंदी की मार और डांवाडोल अर्थव्यवस्था को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री और विश्व के जानेमाने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों पर गहरे सवाल खड़े किये हैं। उन्होंने मोदी सरकार की नस पर हाथ रखते हुए कहा कि मोदी सरकार ”Slowdown” शब्द को स्वीकार नहीं करती है। और, यही असली खतरा है। उन्होंने बताया कि अगर समस्याओं की पहचान नहीं की गई तो सुधारात्मक कार्रवाई के लिए विश्वसनीय हल का पता लगाए जाने की संभावना नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री बोले, “मुझे लगता है कि इन मुद्दों पर बहस होगी और इस पर चर्चा होनी चाहिए, क्योंकि आज ऐसी सरकार है जो मंदी जैसे किसी शब्द को स्वीकार नहीं करती है। मुझे लगता है कि यह हमारे देश के लिए अच्छा नहीं है।”
ठीक यही बात प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य आशिमा गोयल ने भी कुछ दिन पहले कही थी। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री द्वारा दिए गए करीब तीन घंटे लंबे बजट भाषण में एक बार भी ‘स्लोडाउन’ शब्द का प्रयोग नहीं किया जाना चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में सभी लोग आर्थिक सुस्ती को लेकर चिंतित हैं। विकास दर पांच परसेंट के निचले स्तर पर है। मगर बजट में आर्थिक सुस्ती से निपटने के उपायों पर कोई चर्चा नहीं की गई है। लगातार सरकारी सर्वेक्षण में ही यह तथ्य सामने आया है कि अर्थव्यवस्था में स्लो डाउन है, रोजगार वृद्धि में भारी गिरावट आई है। लेकिन सरकार अपनी पहली प्रतिक्रिया में ही इस रिपोर्ट को खारिज कर देती है।
देश की असली चिंता का विषय खस्ताहाल अर्थव्यवस्था है, लेकिन भाजपा हमेशा इस बात की कोशिश करती रहती है कि शाहीनबाग पर तो बहस हो लेकिन बिगड़ती अर्थव्यवस्था को लेकर कोई बहस न हो। क्योंकि एक बार इस मुद्दे पर लोग कहीं सड़कों पर उतर गए तो सरकार को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।
कल सुब्रमण्यम स्वामी ने बयान दिया है कि जीएसटी 21 शताब्दी का सबसे बड़ा पागलपन है। वह ऐसा इसलिए बोल रहे हैं, क्योंकि जीएसटी जैसे आर्थिक सुधार गलत समय पर लागू किये गए हैं। पिछले पांच-छह वर्षों में सुधारों की टाइमिंग बिगड़ गई है, सुधार करने वाली दवाएं बीमार कर रही हैं और बैसाखिया भी पैरों में फंसकर मुंह के बल गिराने लगी हैं।
वैट या वैल्यू एडेड टैक्स, आज के जीएसटी का पूर्वज था। उसे जब 2005 में लागू किया तब देश की अर्थव्यवस्था बढ़त पर थी। सुधार सफल रहा, खपत बढ़ी और राज्यों के खज़ाने भर गए। लेकिन 2017 में जीएसटी जब लागू किया गया, तब नोटबंदी की मारी अर्थव्यवस्था बुरी तरह घिसट रही थी, जीएसटी खुद भी डूबा और कारोबारों व बजट को ले डूबा। मंदी में टैक्स सुधार उलटे पड़ रहे हैं, लेकिन उसके बावजूद भी सरकार अपनी गलती को मानने को तैयार नही है।
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