- 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि को पंडित नेहरू ने दिया था ऐतिहासिक भाषण
- भाषण को ट्रिस्ट विद डेस्टिनी (‘Tryst with destiny’) के नाम से जाना जाता है
- ट्रिस्ट विद डेस्टिनी का अर्थ होता है नियति से साक्षात्कार
यह भाषण इस शाम पढना और विचार करना घर पर तिरंगा फहराने से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक तारीख है, देश के विकास का खाका था।
हमने नियति को मिलने का एक वचन दिया था, और अब समय आ गया है कि हम अपने वचन को निभाएं, पूरी तरह ना सही, लेकिन बहुत हद्द तक। आज रात बारह बजे, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नई सुबह के साथ उठेगा। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में बहुत ही कम आता है, जब हम पुराने को छोड़ नए की तरफ जाते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब वर्षों से शोषित एक देश की आत्मा, अपनी बात कह सकती है। यह एक संयोग है कि इस पवित्र मौके पर हम समर्पण के साथ खुद को भारत और उसकी जनता की सेवा, और उससे भी बढ़कर सारी मानवता की सेवा करने के लिए प्रतिज्ञा ले रहे हैं।
इतिहास के आरम्भ के साथ ही भारत ने अपनी अंतहीन खोज प्रारंभ की, और ना जाने कितनी ही सदियां इसकी भव्य सफलताओं और असफलताओं से भरी हुई हैं। चाहे अच्छा वक़्त हो या बुरा, भारत ने कभी इस खोज से अपनी नजर नहीं हटाई और कभी भी अपने उन आदर्शों को नहीं भूला जिसने इसे शक्ति दी। आज हम दुर्भाग्य के एक युग का अंत कर रहे हैं और भारत पुनः खुद को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो महज एक कदम है, नए अवसरों के खुलने का, इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। क्या हममें इतनी शक्ति और बुद्धिमत्ता है कि हम इस अवसर को समझें और भविष्य की चुनौतियों को स्वीकार करें?
भविष्य में हमें विश्राम करना या चैन से नहीं बैठना है बल्कि निरंतर प्रयास करना है ताकि हम जो वचन बार-बार दोहराते रहे हैं और जिसे हम आज भी दोहराएंगे उसे पूरा कर सकें। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ित लोगों की सेवा करना। इसका मतलब है गरीबी और अज्ञानता को मिटाना, बिमारियों और अवसर की असमानता को मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही महत्वाकांक्षा रही है कि हर एक आंख से आंसू मिट जाएं। शायद ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं और वे पीड़ित हैं तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा।
75 years ago, this day, at the stroke of midnight, India made a tryst with destiny.
A pact where all forces kneeled down before the valour of our forefathers, and gave us the freedom we enjoy today.#IndiaAt75 pic.twitter.com/pGCnJzwIg8
— Congress (@INCIndia) August 14, 2022
और इसलिए हमें परिश्रम करना होगा, और कठिन परिश्रम करना होगा ताकि हम अपने सपनों को साकार कर सकें। वो सपने भारत के लिए हैं, पर साथ ही वे पूरे विश्व के लिए भी हैं, आज कोई खुद को बिलकुल अलग नहीं सोच सकता क्योंकि सभी राष्ट्र और लोग एक दुसरे से बड़ी समीपता से जुड़े हुए हैं। शांति को अविभाज्य कहा गया है, इसी तरह से स्वतंत्रता भी अविभाज्य है, समृद्धि भी और विनाश भी, अब इस दुनिया को छोटे-छोटे हिस्सों में नहीं बांटा जा सकता है। हमें स्वतंत्र भारत का महान निर्माण करना है जहां उसके सारे बच्चे रह सकें।
आज नियत समय आ गया है, एक ऐसा दिन जिसे नियति ने तय किया था – और एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र खड़ा है। कुछ हद्द तक अभी भी हमारा भूत हमसे चिपका हुआ है, और हम अक्सर जो वचन लेते रहे हैं उसे निभाने से पहले बहुत कुछ करना है। पर फिर भी निर्णायक बिंदु अतीत हो चुका है, और हमारे लिए एक नया इतिहास आरम्भ हो चुका है, एक ऐसा इतिहास जिसे हम गढ़ेंगे और जिसके बारे में और लोग लिखेंगे।
ये हमारे लिए एक सौभाग्य का क्षण है, एक नए तारे का उदय हुआ है, पूरब में स्वतंत्रता का सितारा। एक नयी आशा का जन्म हुआ है, एक दूरदृष्टिता अस्तित्व में आई है। काश ये तारा कभी अस्त न हो और ये आशा कभी धूमिल न हो।! हम सदा इस स्वतंत्रता में आनंदित रहें।
भविष्य हमें बुला रहा है। हमें किधर जाना चाहिए और हमारे क्या प्रयास होने चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानो और कामगारों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें, हम गरीबी, अज्ञानता और बिमारियों से लड़ सकें, हम एक समृद्ध, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील देश का निर्माण कर सकें, और हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना कर सकें जो हर एक आदमी-औरत के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सकें?
हमे कठिन परिश्रम करना होगा। हम में से से कोई भी तब तक चैन से नहीं बैठ सकता है जब तक हम अपने वचन को पूरी तरह निभा नहीं देते, जब तक हम भारत के सभी लोगों को उस गंतव्य तक नहीं पहुंचा देते जहां भाग्य उन्हें पहुंचाना चाहता है।
हम सभी एक महान देश के नागरिक हैं, जो तीव्र विकास की कगार पे है, और हमें उस उच्च स्तर को पाना होगा। हम सभी चाहे जिस धर्म के हों, समानरूप से भारत मां की संतान हैं, और हम सभी के बराबर अधिकार और दायित्व हैं। हम और संकीर्ण सोच को बढ़ावा नहीं दे सकते, क्योंकि कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।
विश्व के देशों और लोगों को शुभकामनाएं भेजिए और उनके साथ मिलकर शांति, स्वतंत्रता और लोकतंत्र को बढ़ावा देने की प्रतिज्ञा लीजिए। और हम अपनी प्यारी मात्रभूमि, प्राचीन, शाश्वत और निरंतर नवीन भारत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और एकजुट होकर नए सिरे से इसकी सेवा करते हैं।’