-किसानों ने किया आंदोलन वापस लेने का ऐलान, 11 दिसंबर को दिल्ली बॉर्डर (Delhi Border) से लौटेंगे किसान
-15 जनवरी को किसानों द्वारा की जाएगी एक समीक्षा बैठक
किसी भी देश में प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector) में काम करने वाले लोग और मुख्य रूप से किसान, उस देश की बुनियाद माने जाते हैं। इनके बिना किसी भी अर्थव्यवस्था (Economy) की कल्पना करना मुश्किल है। भारत में किसानों की संख्या अच्छी खासी है। यह देश की हर दिशा में और हर राज्य में अच्छी संख्या में मौजूद है। पिछले 1 वर्ष से भी ज्यादा समय से देश के अधिकांश किसान आंदोलन पर बैठे थे। यह एक महाआंदोलन था जो सरकार के द्वारा पारित किए गए तीन कृषि कानूनों खिलाफ शुरू किया गया था।
संसद में कृषि कानूनों को वापस लेने और सरकार द्वारा लिखित रूप से 5 मांगों पर सहमति जताए जाने के बाद 378 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन को खत्म करने का ऐलान किसानों ने 9 दिसंबर को किया था। आज 11 दिसंबर से किसान धरना स्थल से लौटना शुरू कर चुके हैं। किसानों ने यह भी ऐलान किया है कि 15 जनवरी को वह एक समीक्षा बैठक करेंगे।
कैसे शुरू हुआ था आंदोलन?
भारत सरकार ने 22 सितंबर 2020 को तीन कृषि कानूनों को पारित किया। इन कानूनों के विरोध में देश के कई राज्यों के किसान आंदोलन पर उतर गए। कई किसान यूनियनों ने 25 सितंबर को भारत बंद किया। मगर सरकार कानून वापस लेने को तैयार नहीं थी। फिर किसानों ने “दिल्ली चलो” का नारा दिया और 25 नवंबर से देश की राजधानी के सभी बॉर्डर पर एक साथ धरने पर बैठ गए। किसानों की यह मांग थी कि पारित कृषि कानूनों को वापस लिया जाए और श्रम कानूनों में संशोधन किए जाए।
आंदोलन की चिंगारी पंजाब (Punjab) से सुलगी थी। 5 जून 2020 को केंद्र सरकार ने कृषि सुधार बिल को संसद में रखा, जिसे 17 सितंबर को पारित कर दिया गया। इसके बाद पंजाब में इसका विरोध शुरू हो गया। बाद में कृषि कानूनों के आने से यह चिंगारी भड़क गई और इसने भयानक रूप लिया।
राकेश टिकैत के आंसू से मजबूत बना था आंदोलन
जारी किसान आंदोलन के बीच 26 जनवरी 2021 को किसानों ने दिल्ली में ट्रैक्टर रैली (Tractor March) निकाली थी। शांतिपूर्ण आंदोलन में भंग डालने के लिए कुछ प्रदर्शनकारियों ने लाल किले (Red Fort) की ओर कूच कर दी। साथ ही उन्होंने लाल किले पर गैरकानूनी तरीके से चढ़ाई की, इस घटना के बाद लोग किसानों पर आरोप लगाने लगे और आंदोलन फीका पड़ने लगा। आंदोलन का चेहरा माने जाने वाले राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) पर इस घटना का आरोप लगाया गया।
राकेश टिकैत ने मीडिया के सामने आंसू बहाते हुए अपना पक्ष इस पूरे घटनाक्रम पर रखा। इसके बाद आंदोलन का पूरा रूप बदल गया। पहले से भी अधिक लोग इस आंदोलन से जुड़ गए और आंदोलन बहुत मजबूत हो गया। यूपी (UP), हरियाणा (Haryana) और पंजाब के किसानों ने दिल्ली के सभी बॉर्डर को पूरी तरह से बाधित कर दिया।
आंदोलन पर लग चुके हैं कई आरोप
किसानों के इस एक साल से भी ज़्यादा समय तक चले आंदोलन पर कई संगीन आरोप भी लग चुके हैं। मगर इन आरोपों से आंदोलन में कोई फर्क नहीं पड़ा था। राकेश टिकैत बड़ी सफाई से सभी आरोपों से आंदोलन को बचाते आए।
आंदोलन शुरू होने के कुछ महीने बाद ही इस पर आरोप लगाया गया था कि इसकी फंडिंग (Funding) भारत के बाहर से हो रही थी। जब सरकार के साथ बात बनती नजर नहीं आ रही थी तो किसानों ने दिल्ली के सिंघु बॉर्डर (Singhu Border) और टिकरी बॉर्डर (Tikri Border) पर अपना डेरा – डंडा बसा दिया। साथ ही उनके तंबू में एसी, फ्रीज, टीवी, जैसी सारी सुविधाएं मौजूद देखी गई। इसको लेकर भी कई सवाल उठाए गए। दिल्ली से लोगों का आना – जाना भी काफी बाधित हुआ। लोगों को अपने काम पर जाने के लिए कई बार आंदोलन के कारण परेशानी हुई।
कई किसानों ने गंवाई अपनी जान
25 नवंबर 2020 से शुरू हुआ आंदोलन 11 दिसंबर 2021 को खत्म होने वाला है। इतने लंबे समय के दौरान कई किसानों ने अपनी जान गंवाई। किसानों को सभी मौसम की मार झेलनी पड़ी। कड़ाके की ठंड से कुछ किसानों की जान गई तो कुछ की भीषण गर्मी से। जितने किसानों ने अपनी जान गवाई, राकेश टिकैत ने उन्हें शहीद का दर्जा दिया है। उनके मुताबिक, वह सभी अपने हक की लड़ाई के लिए लड़ते हुए मरे।
आंदोलन की आड़ में राजनीति भी तेज
मुद्दा भले किसानों का था, मगर कई बार पक्ष – विपक्ष इस पर लड़ते दिखे। इसमें किसान के नेता भी चुप नहीं रहे। कई सारे तीखे बयान हर तरफ से सुनने को मिले। भाजपा (BJP) हर बार इस आंदोलन के विरोध में दिखी, तो दूसरी तरफ दिल्ली की केजरीवाल सरकार कई बार आंदोलन के लिए अपना योगदान देती दिखी। कांग्रेस (Congress), सपा (SP), तृणमूल (TMC), आदि सभी पार्टी इस आंदोलन के समर्थन में थे।
यूपी के लोनी (Loni) से विधायक नंदकिशोर गुर्जर (Nandkishor Gurjar) ने इस आंदोलन पर कहा था, “किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत इस आंदोलन की छांव में जाति और विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं। उन्होंने मुस्लिम समुदाय को साथ आने की अपील कर दी है, जबकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि मुस्लिम गुर्जर और जाट के खिलाफ रहते हैं।”
सितंबर महीने में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amrinder Singh) ने इस आंदोलन से संबंधित दिए बयान में कहा था कि, “किसानों को पंजाब को आंदोलन से अलग कर देना चाहिए। आंदोलन अगर दिल्ली और उसके आसपास होगा तो अधिक कारगर होगा।” इस पर हरियाणा बीजेपी के मंत्री अनिल विज (Anil Vij) ने कहा था कि, “सिंह का यह आग्रह करना साबित करता है कि इस आंदोलन के पीछे उनका ही हाथ है।” भाजपा ने हर बार कहा है कि “यह आंदोलन लोकतंत्र की हत्या है।”
जुलाई महीने में टिकैत ने सरकार को डराने के लिए रामपुर (Rampur) से एक बयान देते हुए कहा था कि, ” सरकार कानून वापस ले लें, वरना किसान संसद का भी रास्ता जानते है। 22 सितंबर से 200 लोग वहां जाएंगे। जब तक पार्लियामेंट चलेगा, तब तक रोज 200 लोग जाते रहेंगे। अब लाल किले के बाद संसद भवन की बारी है।”
लखीमपुर खीरी कांड
जारी महा आंदोलन के दौरान 3 अक्टूबर को ऐसी घटना घटी जिसने इस आंदोलन को एक बार और तेज कर दिया। यूपी के लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Khiri) जिले में किसान केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा (Ajay Mishra) का विरोध करते हुए काले झंडे दिखा रहे थे। तभी अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा (Ashish Mishra) ने अपनी थार (Thar) गाड़ी से 4 किसानों को तेज रफ्तार से कुचल डाला, जिससे उनकी मौत हो गई।
इससे भड़की किसानों की भीड़ ने उस गाड़ी को आग के हवाले कर दिया। साथ ही उन्होंने एक ड्राइवर और अन्य चार लोगों को पीट – पीटकर मार डाला था। इसमें एक स्थानीय पत्रकार भी मारा गया था। मामले के बाद अजय मिश्रा, आशीष मिश्रा समेत 15 लोगों पर हत्या और आपराधिक साजिश का आरोप लगा केस दर्ज किया गया था।
मोदी ने किया कानून रद्द करने का ऐलान
सभी समस्याओं, करीब 11 दौर की औपचारिक बैठक और एक वर्ष से अधिक समय से चल रहे आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने इस वर्ष प्रकाश पर्व के अवसर पर किसानों से माफी मांगते हुए तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने का ऐलान किया और संसद के शीतकालीन सत्र में इस कानून को वापस लेने की भी बात कही।
मोदी के इस ऐलान के बाद राकेश टिकैत ने आंदोलन खत्म करने की बात को नकारते हुए कहा था कि, “जब तक तीनों कृषि कानूनों को संसद में वापस नहीं लिया जाएगा, तब तक यह आंदोलन खत्म करने की कोई बात ही नहीं है।” साथ ही उन्होंने कहा था कि, ” यह तो एक बात थी, अभी इसके अलावा और भी बातें होनी है। कृषि कानून तो पुरानी मांग थी, अब हमारी सभी मांगे पूरी करनी होगी।”
सरकार ने लिखित में जताई सहमति
किसान नेताओं के पास कृषि सचिव संजय अग्रवाल (Sanjay Agarwal) ने एक लिखित चिट्ठी भेजी। इस चिट्ठी में किसानों की कई प्रमुख मांगे पूरी होने की बात कही गई। सहमति बनने के बाद किसानों ने आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया। सरकार ने जिन मांगों पर सहमति जताई है, वह हैं:
- एमएसपी (MSP) – केंद्र सरकार ने इसे लेकर सहमति जताते हुए एक किसान कमेटी बनाने की बात कही है। इस कमेटी में संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि भी शामिल किए जाएंगे। जिन फसलों पर अभी एमएसपी (MSP) मिलती है, वह उसी प्रकार मिलता रहेगा।
- किसान पर दर्ज केस वापस – हरियाणा, उत्तराखंड और यूपी सरकार किसानों पर दर्ज केस वापस लेने को सहमत हो गई है। दिल्ली समेत अन्य प्रदेश और रेलवे भी इन केसों को तत्काल वापस लेगी।
- मुआवजा – पंजाब की तर्ज पर यूपी और हरियाणा में भी किसानों को मुआवजा दिए जाने की बात पर भी सहमति बन गई है।
- बिजली बिल – किसान मोर्चा से चर्चा होने के बाद ही बिल संसद में पेश किया जाएगा।
- पराली – भारत सरकार द्वारा पारित कानून में से धारा 14 व 15 में क्रिमिनल लायबिलिटी (Criminal Liability) से किसानों को मुक्त किया जाएगा।
इन सभी बातों पर सहमति जताते हुए सरकार ने एक बार फिर किसानों से आंदोलन खत्म करने की अपील की। जिसके बाद किसानों ने आंदोलन को रद्द करने का ऐलान किया।
महाआंदोलन खत्म, घर लौटना शुरू कर चुके हैं किसान
इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे पंजाब के 32 किसान संगठनों ने आंदोलन खत्म करने के ऐलान के बाद अपना कार्यक्रम बना लिया। 11 दिसंबर को दिल्ली के आंदोलन स्थल से पंजाब के लिए सभी संगठन फतेह मार्च निकालेंगे। सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर से सभी किसान एक साथ पंजाब रवाना होंगे। 13 दिसंबर को सभी संगठन अमृतसर (Amritsar) के श्री दरबार साहिब जाएंगे। फिर 15 दिसंबर को पंजाब में लगे करीब 113 मोर्चे खत्म होंगे।
दूसरी तरफ हरियाणा के किसान भी कि 11 दिसंबर से बॉर्डर खाली करेंगे। यहां लोगों ने राजस्थान, यूपी और पंजाब लौटने वाले सभी किसानों के भव्य स्वागत की पूरी तैयारी कर रखी हैं। सूत्रों के अनुसार, कुछ किसानों ने हेलीकॉप्टर तक बुक करवाया है। इनकी मदद से किसानों पर फूल बरसाए जाएंगे।