अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चीन और भारत के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है

Share

जब चीन का सरकारी मीडिया दावा करता है कि भारत में एक बार फिर से मोदी सरकार ही आएगी तो सारे मोदी समर्थक आगे बढ़ बढ़ कर यह खबर शेयर करते हैं लेकिन, जब वही चीन का सरकारी मीडिया कहता है कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर फेल नजर आ रही है तो मोदी समर्थक साफ कन्नी काट जाते हैं.
दो दिन पहले ही चीन के ग्लोबल टाइम्स में एक रिपोर्ट छपी है जिसमे कहा गया है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चीन और भारत के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है, साल 2014 में चीनी अर्थव्यवस्था का आकार 10.38 लाख करोड़ डॉलर का था, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 2.04 लाख करोड़ डॉलर का था, लेकिन साल 2018 आते आते चीनी अर्थव्यवस्था का आकार 13.6 लाख करोड़ डॉलर का हो गया, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था 2.8 लाख करोड़ डॉलर तक ही आ पाई.
यानी 2014 में दोनों देशों की अर्थव्यवस्था के आकार में जो अंतर 8.34 लाख करोड़ का था वो 2018 में बढ़कर 10.8 लाख करोड़ डॉलर का हो गया.
हम शुरुआत से ही कह रहे हैं कि भारत की जनता को झूठे आंकड़ों से भरमाया जा रहा है, ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि कहा जाता है कि मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में 2014 से 2018 के बीच भारत की औसत जीडीपी 6.7 फीसदी से ज्यादा हो गई है, लेकिन इन आंकड़ों पर कई सांख्यिकी वजहों से संदेह किया जा रहा है. मोदी सरकार ने जीडीपी की गणना के तरीके और बेस ईयर को ही बदल दिया है. इसलिए नए आंकड़ों को हमेशा ही संदेह की नजरों से देखा जा रहा है. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी इन आंकड़ों पर संदेह जताया है. यानी अगर मूल सांख्यिकीय तरीकों को अपनाया जाए तो मोदी सरकार के दौरान जीडीपी में ग्रोथ लगभग उतना ही रहा है, जितना कि पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार में था’.
ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि मोदी सरकार जब सत्ता में आई तो उसके सामने काफी अनुकूल माहौल था. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें काफी गिर गई थीं. इसकी वजह से महंगाई पर भी अंकुश रहा. इसकी वजह से मोदी सरकार को काफी फायदा हुआ. लेकिन नोटबंदी और जीएसटी जैसे सुधारों से कुछ भ्रम हुआ और शॉर्ट टर्म में इसका अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर हुआ हैं.
अखबार ने कहा, ‘मैन्युफैक्चरिंग के मामले में भी दोनों देशों के बीच खाई बढ़ रही है. पिछले पांच साल में भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कुछ खास प्रगति नहीं हुई है. और  बेरोजगारी दर भी लगातार ऊंची बनी हुई है’. जबकि मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी बड़ी बड़ी योजनाएं चलाने की बात 2014 की शुरुआत में ही कर दी गयी. हम जानते हैं कि अर्थव्यवस्था के मोर्च पर मोदी सरकार बुरी तरह से नाकाम रही है. लेकिन यह मुद्दा कोई चुनावी मुद्दा नहीं है जिस पर वोट पड़ते हो.

Exit mobile version