पहला नोबल प्राइज़ जीतने वाला भारतीय,जिसने मुस्लिम देश का राष्ट्रीय गीत लिखा

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भारत का इतिहास की गिनती दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण इतिहास में होती है। “सोने की चिड़िया” के नाम से मशहूर भारत में ऐसे महान लोगों का भी जन्म हुआ है जिन्होंने दुनिया भर में भारत का नाम रोशन किया है ।

आज ऐसे ही एक अद्भुत, असाधरण और महान शख्सियत के बारे में मैं लिखने जा रहा हूँ। लेकिन मैं इस शख्सियत का नाम आपको नहीं बताऊंगा,क्योंकि आप खुद ही जान जायेंगें।

इस शख्स ने 1905 में हुए बंगाल विभाजन के खिलाफ चल रहे आंदोलन के समय एक गीत लिखा था। उसका नाम था “आमार सोनार बांग्ला” इस गीत को बंगाल समेत देश भर में लोगों ने गाया और ये गीत 1972 में बांगलादेश का राष्ट्रीय गीत बन गया।

पहचाने आप? चलिये दूसरा मौका,स्कूल में जन गण मन तो गाया ही होगा,वो भी इन्होंने ही लिखा था,अब तो पहचान ही गए होंगे,यहां बात हो रही है,”गुरुदेव” रविंद्र नाथ टैगोर की,आज उनकी बरसी है।

7 मई 1861 को तब के कलकत्ता में हुआ था जन्म

रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म उस वक़्त के कलकत्ता (अब कोलकाता) में 7 मई 1861 को हुआ था। बचपन ही से परिवार के माहौल के कारण उन्होंने अपने भविष्य को “लिखना” शुरू कर दिया था। सिर्फ 6 साल की उम्र में इन्होंने लिखना शुरू कर दिया था।

लेखक,कवि,विचारक ,उपन्यासकार और स्वतंत्रता सेनानी रविन्द्र नाथ टैगोर को उनके पिता “एडवोकेट” बनाना चाहते थे,इसलिए पढ़ाई के लिए उन्हें ब्रिटेन भेजने का फैसला लिया गया,लेकिन बिना डिग्री लिए वो वापस आ गए, किंग जॉर्ज पंचम ने उन्हें “नाइटहुड” की उपाधि प्रदान की थी।

जब एक भारतीय को मिला था “नोबल प्राइज़”

रविन्द्रनाथ टैगोर वो पहले भारतीय शख्स थे जिन्हें ये पुरुस्कार दिया गया था। रविन्द्र नाथ टैगोर की ये अद्भुत रचना 1910 में पब्लिश हुई थी इसमें उनकी कुल 157 कविताओं संग्रहित हैं।

‘गीतांजलि’ को दुनिया की कई भाषाओं में प्रकाशित किया गया। 1913 में इस कालजयी रचना ‘गीतांजलि’ के लिये उन्हें लिटरेचर/साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार के खिलाफ ज़बरदस्त आवाज़ उठाई

1919 में जनरल डायर ने जब निहत्थे भारतीयों पर गोलियां चलाकर हज़ारों मासूम भारतीयों को गोलियों से क्रूर नरसंहार किया था । उस वक़्त पुरा देश सदमे में था,तब बिना किसी सज़ा या कानून की परवाह किये बिना 58 वर्षीय नोबेल प्राइज़ विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने नाईटहुड की उपाधि वापस करते हुए अपना पुरजोर विरोध दर्ज कराया था।

यही वो समय था जब देश को सबसे ज़्यादा क़ाबिल लोगों की ज़रूरत थी,रविन्द्र नाथ टैगोर ने बिना किसी की परवाह किये बिना और भविष्य के बारे में एक पल भी सोचे बिना देश के लिए, और उसकी स्वतंत्रता के लिए आवाज़ उठाने वाली आवाज़ों के खिलाफ हुए ज़ुल्म के खिलाफ बोल कर दिखाया था।

टैगोर जिन्हें हमेशा याद किया जायेगा

रविन्द्रनाथ टैगोर ने हमेशा देश की स्वतंत्रता के लिए और मानव समूह के लिए लिखा और आवाज़ उठाई है। चाहें वो 1905 का बंग भंग आंदोलन हो। या फिर 1919 में जलियांवाला नरसंहार,एक ज़िम्मेदार आवाज़ की तरह वो हमेशा मज़लूम के ही साथ खड़े रहे हैं।

मौका कोई भी हुआ हो उन्होंने हमेशा इंसानियत को तरज़ीह दी है। एक बार तो उन्होंने ये तक लिखा था कि “मैं कभी भी राष्ट्रवाद को इंसानियत पर हावी नहीं होने दूंगा” ये शब्द लिखने की महानता सिर्फ गुरु रविन्द्र नाथ ही में थी। लेकिन तब भी महात्मा गांधी को “महात्मा” नाम देते हुए इन्होंने फख्र महसूस किया।

कहाँ मिलते हैं अब ऐसे लोग? खरे लोग,सच्चे लोग और ईमानदार लोग जिनके पास सब कुछ है,लेकिन घमंड नही है। सच मे ये लोग सिर्फ किताबों ही में बाकी रह गए हैं,लेकिन फिर सवाल है कि कब तक?…