धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र में बहुसंख्यकवाद के ख़तरे

Share

आख़िर वैध धर्मांतरण क्या है? दक्षिणपंथी संगठनों के तथाकथित नेताओं से लेकर न्यूज़ चैनल्स की स्क्रीन और अख़बार के पन्ने आए दिन मुसलमानों के ख़िलाफ होने वाले दुष्प्रचार से भरे मिलते हैं। इसी कड़ी में सोशल मीडिया पर भी आए दिन मुसलमानों और उनके धर्म के ख़िलाफ टिप्पणियां की जातीं हैं, इन्हीं संस्थाओं/संगठनों द्वारा मुसलमानों के धर्म को आतंकवाद से जोड़ा जाता है।

यह भी पढ़ें-धर्म प्रचारकों की गिरफ्तारी और सवाल

लेकिन ऐसी टिप्पणी करने वाले, दुष्प्रचार करने वालों पर कोई कार्रावाई नहीं होती। इस बीच अगर कोई मौलाना क़लीम सिद्दीक़ी इस दुष्प्रचार का जवाब देने के लिए सौहार्द का संदेश देते हुए अपने धर्म का प्रचार करता है तो वह अपराधी कैसे हो गया?

अगर उनके द्वारा दिए गए इस्लाम के वास्तविक संदेश से प्रभावित होकर किसी ने धर्मांतरण कर लिया तो इसमें किसका दोष है? मौलाना का? इस्लाम का? या धर्मांतरण करने वाले शख्स का? अव्वल तो यह अपराध नहीं है, क्योंकि भारतीय संविधान ने धर्म अपनाने से लेकर धर्म परिवर्तन और यहां तक की नास्तिक होने तक का अधिकार अपने नागरिकों को दिया हुआ है। इसके बावजूद भी अगर कोई शख्स अपनी मर्ज़ी से धर्म परिवर्तन करता है, और लाख कोशिशों के बावजूद वह ‘घर वापसी’ के लिये तैयार नहीं होता है तो फिर दोषी कौन हुआ?

अपने धर्म का प्रचार करने वाले धर्म गुरू या उस संदेश से प्रेरित होकर उस धर्म को अपनाने वाला धार्मिक? आखिर वैध धर्मांतरण क्या है? एक सामान्य ज्ञान रखने वाला शख्स़ भी बता देगा कि डराकर, धमकाकर, लालच देकर धर्मांतरण कराना न सिर्फ अधर्म है बल्कि क़ानून अपराध भी है। लेकिन स्वेच्छा से धर्मांतरण करना कबसे अपराध हो गया?

यह भी पढ़ें-ओवैसी के घर तोड़फोड़, कौन है हमलावर?

स्वेच्छा से धर्मांतरण करना वैध नहीं है तो फिर वैध धर्मांतरण की परिभाषा क्या है? इस देश में हिंदु हैं, मुस्लिम हैं, ईसाई हैं, सिक्ख हैं, यहूदी हैं, लिंगायत हैं, बौद्ध हैं, बाही हैं, पारसी हैं, जैन हैं, इसके अलावा एक बड़ी तादाद में नास्तिक भी हैं। मौजूदा सत्ताधारी लोग, और उनके मातहत करने वाला प्रशासनिक अमला अभी सिर्फ हिंदु से मुसलमान बने लोगों को ही अपराध मान रहा है। क्या मुसलमान से हिंदु बनना भी अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा।

उत्तर प्रदेश के शामली के कांधला मोहल्ला रायजादगान के मजरा डंगडूगरा में रह रहे बंजारा जाति के लोगों ने तक़रीबन 12 वर्ष पहले अलग रीत रिवाज़ को लेकर हुए विवाद से आज़िज़ आकर धर्मांतरण कर लिया था। पिछले महीने भाजपा और अनुषांगिक संगठनों के लोगों ने बंजारा समाज के तीन परिवारों के 19 लोगों का ‘शुद्धीकरण’ कराकर हिंदू धर्म में वापसी कराई है।

अब इसे क्या कहा जाएगा? यूपीएटीएस इसे अवैध धर्मांतरण की श्रेणी में रखेगी या इसे वैध धर्मांतरण माना जाएगा? ऐसा लगता है कि मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए इसे वैध धर्मांतरण माना जाएगा क्योंकि बंजारा जाति के लोगों ने ‘मज़हब’ छोड़कर ‘धर्म’ अपनाया है इसलिये किसी महंत के ख़िलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जाएगा, कोई बैंक डिटेल्स नहीं खंगाली जाएगी। लोगों का धर्मांतरण कराकर इस देश पर ‘अपना राज’ स्थापित करने की कहानी भी नहीं गढ़ी जाएगी।

यह भी पढ़ें-आयकर व ईडी के छापों और सरकार की आलोचना में क्या कोई अन्तर्सम्बन्ध है ?

अपना धर्म छोड़कर ‘दूसरा’ धर्म अपनाते हैं तो ऐसे भी बहुत लोग हैं जो किसी भी धर्म को मानने से इनकार करते हुए खुद को नास्तिक घोषित कर देते हैं। संविधान में न तो आस्तिक से नास्तिक बनना अपराध है और न ही धर्म बदलकर कोई दूसरा धर्म बदलना अपराध की श्रेणी में आता है।

लेकिन इसके बावजूद धर्मनिर्पेक्ष संविधान रखने वाले देश का आतंक विरोधी दस्ता धर्म ‘बचाने’ में लगा हुआ है। मनमाने तरीक़े से धर्मांतरण की वैध और अवैध कहानियां बनाने में जुटा है। यह आतंक निरोधी दस्ता खुले मंचों से ‘घर वापसी’ का आह्वान करने वाले दक्षिणपंथी संगठनों को संरक्षण देता है, लेकिन एक धर्म विशेष के बारे में फैलाई जा रहीं भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश करने वालों पर नकेल कसता है। ऐसे घटनाक्रमों को देखते हुए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए कि भारतीय राजनीतिक दल न तो सेक्यूलरिज़्म में आस्था रखते हैं, न लोकतंत्र में, यह पूरा तंत्र ही बहुसंख्यकवाद से ग्रस्त है।