विशेष – सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिलने के बाद भी क्यों हटाये गए आलोक वर्मा

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आज राजनीतिक गलियारों में पूछा जाने वाला सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि सुप्रीम कोर्ट से 2 दिन पहले क्लीन चिट मिलने के बाद आलोक वर्मा को क्यो मोदी सरकार ने अपने पद से हटा दिया?

  • सीवीसी उन पर लगाए गए चार आरोप सही बता रही है तो यह बात सुप्रीम कोर्ट को क्यो नही दिखी? जिसने उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायधीश एके पटनायक की अध्यक्षता में दोनों अधिकारियों के मामले की जांच करने को कहा था?
  • पटनायक ने अपनी रिपोर्ट में राकेश अस्थाना द्वारा दिए गए विभिन्न सबूतों की जांच की, जिसमें अस्थाना द्वारा वर्मा पर लगाए गए आरोपों में कुछ भी ठोस सामने नहीं आया ओर इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा की बहाली का आदेश पारित किया था.

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि 1979 बैच के आईपीएस के अधिकारी आलोक वर्मा को भ्रष्टाचार और काम में लापरवाही के कारण हटाया गया और यह इतिहास में पहली बार हुआ है तो उन्हें अग्निशमन सेवाएं, नागरिक सुरक्षा और गृह रक्षक (होम गार्ड) का महानिदेशक क्यो बनाया गया? क्या भ्रष्टाचार के आरोपी को किसी दूसरे महत्वपूर्ण पद पर बैठाया जा सकता है? ऐसा कौन से कानून में लिखा है.
आखिर आलोक वर्मा से किसे खतरा था? आलोक वर्मा वैसे भी सिर्फ 21 दिन इस पद पर रहने वाले थे और उसके बाद उनका रिटायरमेंट पक्का था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक जिस दिन रातोंरात उन्हें सीबीआई प्रमुख से हटाया गया तब उनके पास सात महत्वपूर्ण मामलों की फ़ाइलें थीं.

  1. राफेल सौदे की फाइल – आलोक वर्मा को चार अक्‍टूबर को भाजपा नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने 132 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी. सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा राफेल सौदे की फाइल मंगाने के लिए रक्षा सचिव संजय मित्रा को चिट्ठी लिख चुके थे. सरकार चाहती थी वर्मा यह चिट्ठी वापस ले लें. जब उन्होंने इनकार कर दिया तो आधी रात तानाबाना बुनकर उन्हें हटा दिया गया.
  2. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया केस – यह मामला राफेल से भी बड़ा साबित हो सकता था देश के न्यायतंत्र से जुड़े कई उच्‍च स्‍तरीय लोग इससे जुड़े ठेप इस भ्रष्‍टाचार में इन लोगों की भूमिका की जांच चल रही थी. इसमें उड़ीसा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आईएम कुद्दुसी का भी नाम शामिल है. कुद्दुसी के खिलाफ चार्जशीट तैयारी कर ली गई थी और उन पर अलोक वर्मा के दस्तख़त होने बाकी थे.
  3. न्यायाधीश एसएन शुक्ला केस – इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के न्यायाधीश शुक्ला जी को मेडिकल सीटों पर ऐडमिशन में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते छु​ट्टी पर भेज दिया गया था. इस मामले में प्राथमिक जांच पूरी कर ली गई थी और सिर्फ़ आलोक वर्मा के हस्ताक्षर की ज़रूरत थी.
  4. वित्त एवं राजस्व सचिव हंसमुख अधिया – एक और मामले में भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के सीबीआई को सौंपे वो दस्तावेज़ शामिल हैं जिनमें उन्होंने वित्त एवं राजस्व सचिव हंसमुख अधिया के ख़िलाफ़ शिकायत की है.
  5. कोयले की खदानों का आवंटन मामला- कोयले की खदानों के आवंटन मामले में प्रधानमंत्री के सचिव आईएएस अधिकारी भास्कर खुलबे की संदिग्ध भूमिका की सीबीआई जांच की जा रही थी। यह फाइल भी आलोक वर्मा के दफ्तर में थी.
  6. नौकरी में रिश्वत का मामला- नौकरी के लिए नेताओं और अधिकारियों को रिश्वत देने के संदेह में दिल्ली आ​धारित एक बिचौलिए के घर पर छापा मारा गया था। इस मामले की भी जांच चल रही है.
  7. संदेसरा और स्टर्लिंग बायोटेक मामला – इसमें सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की ​कथित भूमिका की जांच की जा रही थी. करीब एक साल से सीबीआइ निदेशक और विशेश निदेशक के बीच विवाद चल रहा है. ऐसे में यह फाइल महत्वपूर्ण थी.

प्रशांत भूषण ने उस समय साफ साफ कहा था कि ‘वर्मा के खिलाफ की गई कार्रवाई का एकमात्र मकसद राफेल घोटाले की जांच को रोकना है’

सुब्रमण्यम स्वामी ने कुछ दिन पहले यह बयान दिया था कि ‘आलोक वर्मा ईमानदार जबकि राकेश अस्थाना एक भ्रष्ट अधिकारी हैं’, स्वामी से जब यह पूछा गया कि यह आप कैसे कह सकते हैं, तो उन्होंने कहा था कि वह बिना सुबूतों के कोई बात नही कहते हैं. स्पष्ट है कि मोदी सरकार से आलोक वर्मा को 20 दिन भी झेलने की स्थिति में नही थी, क्योंकि उनकी सारी पोलपट्टी खुलने का उसे डर बना हुआ था. इसलिए आनन फानन में आलोक वर्मा को सीबीआई प्रमुख के पद से हटा दिया गया.

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