वैसे तो लिखना आजकल बन्द सा कर दिया है क्योंकि सिर भी खपाओ कीपैड भी घिसो फिर बातें भी सुनो इतना बड़ा कौन पढ़ता है, फिर भी लगातार कुछ महीनों से लड़कियों के डिप्रेशन और स्ट्रेस के इतने केस देखे कि कुछ बेसिक सजेशन देना बनता है.
शादी करने जा रही/जस्ट मैरिड लड़कियों के लिये ख़ासतौर से और सभी पत्नियों के लिये आमतौर से ‘मन की बात’
ये वाली ‘मन की बात’ इसलिये करना पड़ रही है कि पहले जो तू तू मैं मैं, जूतम पैजार, सिर फुटव्वल एक डेढ़ साल बाद होते थे, अब 4-5 महीने में हो रहे हैं. एडवांस्ड ज़माना है भई सब कुछ फास्ट है.
पतियों से बहुत प्रॉब्लम रहती है हमें, उनकी बात तो होती रहती है क्यों न एक बार अपनी बात कर लें हम?
- शादी हुई है, ठीक है, अक़्सर सबकी होती है. तो खुद को पृथ्वी और पति को सूर्य मानकर उसकी परिक्रमा मत करने लगो. न ये शक वहम पालो कि उसके सौर मण्डल में ‘अन्य ग्रह’ या चाँद टाइप कोई उपग्रह होगा ही होगा. मने दिन रात उसी के आसपास मंडराना, अपनी लाइफ उसी के आसपास इतनी फोकस कर लेना कि उसे भी उलझन होने लगे, ऐसा मत करो, गिव हिम अ ब्रेक (यहाँ स्पेस पढ़िये). अपने लिये भी एक कोना रिज़र्व रखना हमेशा.
- अपने अपनों को, दोस्त सखी सहेलियों को छोड़कर आने का दुःख क्या होता है तुमसे बेहतर कौन जानता है. तो उससे भी एकदम उसके पुराने दोस्तों और फैमिली मेम्बर्स से कटने को मत कहो. बदला क्यों लेना है आख़िर अपना घर छोड़ने का? “तुम तो मुझे टाइम ही नहीं देते” का मतलब “तुम बस मुझे टाइम दो” नहीं होता समझो. नहीं तो हमेशा बेचारगी और उपेक्षा भाव में जियोगी.
- जो काम हाउसहेल्प/घर के अन्य सदस्य कर रहे हों उन्हें ज़बर्दस्ती हाथ में लेना यह सोचकर कि इनसे परफैक्ट करके दिखाओगी, कतई समझदारी नहीं है. अगर सास का दिल जीतने टाइप कोई मसला न हो तो इनसे गुरेज़ करें क्योंकि पुरुष आमतौर पर इन मसलों में बौड़म होते हैं और आपको जब वे ताबड़तोड़ तारीफें न मिलें जो आपने एक्सपेक्ट कर रखी हैं तो डिप्रेशन होगा खामखाह थकान और वर्कलोड अलग बढ़ेगा.तो जितने से काम चल रहा हो उतने से ही चलाओ.
- लीस्ट एक्सपेक्टेशंस पालो. जितनी कम अपेक्षाएं उतना सुखी जीवन, अगर एज़ पर एक्सपेक्टेशन या बियॉन्ड एक्सपेक्टेशन कुछ मिल गया तो बोनस.
- न अपने खुश रहने का सारा ठेका पति परमेश्वर को दे दो न अपने दुःखी होने का ठीकरा उसके सिर फोड़ो. अपनी खुशियां ख़ुद ढूंढो. अपनी हॉबीज़ की बलि मत चढ़ाओ न अपनी प्रतिभा/सलाहियतों को ज़ंग लगाओ. बिज़ी रहोगी, खुश रहोगी तो वह भी खुश रहेगा. याद रखो तुम उसके ‘साथ’ खुश हो यह मैटर करेगा उसे. उसी की ‘वजह से’ खुश हो नहीं. मैं कैसी दिख रही हूँ, कैसा पका रही हूँ, सबकी अपेक्षाओं पर खरी उतर रही हूँ, कहीं इनका इंट्रेस्ट मुझमें कम तो नहीं हो रहा ये ऐसी चीज़ें हैं जिनसे कई औरतें मर खपकर ही बाहर निकल पाती हैं जबकि पतियों के पास और भी ग़म होते हैं ज़माने के.
- शक का इलाज हकीम लुकमान के पास तो नहीं था, उम्मीद है ऐसी सर्जरी जो ब्रेन के उस हिस्से को काट फेंके जो शक पैदा करता है, जल्दी फैशन में आ जाए. तब तक ओवर पज़ेसिव और इनसिक्योर होने से बचो. कहीं का टॉम क्रूज़ नहीं हो रखा वह जो सब औरतें पगलाती फिरें उसके पीछे. हो भी तो तुम्हारे खर्चे पूरा कर ले वही बहुत है. फिर फैमिली भी तो प्लान करना है. ऑलरेडी है तो बेचारे की संभावनाओं के कीड़े ऑलमोस्ट मर ही चुके समझो.
- लड़ाई झगड़े चिड़चिड़ाना कॉमन और इसेंशियल पार्ट हैं मैरिड लाइफ के. फिर बाद में वापिस सुलह हो जाना भी उतना ही कॉमन और इसेंशियल है. बस करना यह है कि जब अगला युद्ध हो तो पिछले के भोथरे हथियारों को काम में नहीं लाना है. पिछली बार भी तुमने यही किया/कहा था, तुम हमेशा यही करते हो, रिश्तों कड़वाहट घोलने में टॉप पर है. जो बीत गयी सो बात गयी.
- हम लोग परेशान होने पर एक दूसरे से शेयर करके हल्की हो लेती हैं जबकि पुरुषों को ज़्यादा सवाल जवाब नहीं पसन्द. कभी वह परेशान दिखे और पूछने पर न बताना चाहे तो ओवर केयरिंग मम्मा बनने की कोशिश मत करो. बताओ मुझे, क्या हुआ, क्यों परेशान हो, क्या बात है, मैं कुछ हेल्प करूँ, प्यार नहीं खीझ बढ़ाते हैं. बेहतर है उसे एक कप चाय थमाकर एक घण्टे को गायब हो जाओ। फोकस करेगा तो सॉल्यूशन भी ढूंढ लेगा. लगेगा तो बता भी देगा परेशानी की वजह. दोनों का मूड सही रहेगा फिर.
- कितनी भी कैसी भी लड़ाई हो, शारीरिक हिंसा का एकदम सख्ती और दृढ़ता से प्रतिरोध करो. याद रखो एक बार उठा हाथ फिर रुकेगा नहीं. पहली बार में ही मज़बूती से रोक दो. साथ ही बेइज़्जती सबके सामने, माफ़ी तलाफ़ी अकेले में, यह भी न हो. अपने सेल्फ रिस्पेक्ट को बरकरार रखो हमेशा हर हाल में. ईगो और सेल्फ रिस्पेक्ट के फर्क को समझते हुए.
- आदमी चेहरा और एक्सप्रेशन्स पढ़ने में औरतों की तरह माहिर नहीं होते. इसलिये मुँह सुजाकर घूमने, भूख हड़ताल आदि की बजाय साफ़ बताओ क्या दिक़्क़त है.
- किसी भी मतलब किसी भी पुरुष से स्पष्ट और सही उत्तर की अपेक्षा हो तो सवाल एकदम सीधा होना चाहिये जिसका हाँ या न में जवाब दिया जा सके.
दो उदाहरण हैं
1-“क्या हम शाम को मूवी चल सकते हैं”
हम्म, ठीक है, कोशिश करूँगा, जल्दी आने की, काम ज़्यादा है.”
2-“क्या हम शाम को मूवी चलें?आ जाओगे टाइम पर?”
“नहीं, मीटिंग है ऑफिस में, लेट हो जाऊंगा तो चिढ़ोगी स्टार्टिंग की निकल गयी. कल चलते हैं.”
जब पुरुष का मस्तिष्क ‘सकना’ टाइप के कन्फ्यूज़िंग शब्द सुनता है तो उत्तर भी कन्फ्यूज़िंग देता है. अब पहली स्थिति में उम्मीद तो दिला दी थी. तैयार होकर बैठने की मेहनत अलग जाती, टाइम अलग वेस्ट होता और पति के आने पर घमासान अलग. कभी भी किसी पुरुष को कहते नहीं सुना होगा-“क्या तुम मुझसे प्यार कर सकती हो या मुझसे शादी कर सकती हो?” वे हमेशा स्पष्ट होते हैं, डू यू लव मी, मुझसे शादी करोगी? तो स्पष्ट सवाल की ही अपेक्षा भी करते हैं.
- लास्ट बट नॉट लीस्ट, अगर वह आपके साथ खड़ा है ज़िन्दगी के इस सफर में, आपका साथ दे रहा है यह सबसे ज़रूरी बात है. आप इसलिये साथ नहीं हैं कि बुढापे में अकेले न पड़ जाओ न इसलिये कि इन प्यारे प्यारे बच्चों के फ्यूचर का सवाल है, बस इसलिये साथ हैं कि दोनों ने एक दूसरे का साथ चुना है, आख़िर तक निभाने को.