देश में जब भी लोकसभा चुनाव नज़दीक आता है, तो सारी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने वोट को हासिल करने के लिए विभिन्न तबकों और समाज के नेताओं को अपने पाले में करने की कोशिश करते नज़र आते हैं. पिछले कुछ समय से देश में हर चुनाव के नज़दीक यह एक आम सी बात बन चुकी है. 2014 में देश की सत्ता में भाजपा के आ जाने के बाद भाजपा विरोधी विभिन्न पार्टियां अब भाजपा को हराने के एजेंडे पर कार्य कर रही हैं.
मुस्लिम समुदाय के वोटर्स के संबंध में भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों के अंदर यह सामान्य सोच बनी है, कि मुस्लिम वोटर्स भाजपा को हारने वाले दलों को अपना वोट देगा. ऐसी स्थिति में भाजपा विरोधी दल मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुद्दों पर चुनाव पूर्व कोई एजेंडा पेश किये बिना ही उन्हें अपने अपने पाले पर मानकर चलते ये हैं. ऐया बताया जाता है, कि यह स्थिति इसलिए बनी है, क्योंकि अन्य समुदायों की तरह मुस्लिम समुदाय में समाज से सम्बंधित मुद्दों पर कोई आंदोलन खड़ा नहीं हुआ है. जैसा कि गुजरात का पटेल आंदोलन हो या फिर आरक्षण की जाट एवं गुर्जरों का आंदोलन. या फिर अपने मुद्दों पर उठने वाले दलित या स्वर्ण आंदोलन. इन सभी आन्दोलनों के बाद इन समुदायों की मांगों पर सरकारों और राजनीतिक पार्टियों ने अपनी बात रखी.
पर अब स्थिति ऐसी नहीं है, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से अल्पसंख्यक हिस्सेदारी आंदोलन के नाम से एक नया मोर्चा खुला है. आश्चर्य की बात है कि जब तमाम चुनाव विश्लेषक पहले से यह मानकर चल रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट मोटे तौर पर सपा-बसपा गठबंधन को जाएंगे, ऐसे में इस आंदोलन ने मुद्दा आधारित मतदान करने की बात कह कर सबको चौंका दिया है.
आंदोलन के प्रणेता आरटीआइ एक्टिविस्ट सलीम बेग हैं जिन्होंने कुछ अहम सवाल उठाए हैं
- अल्पसंख्यको के सुरक्षा, सम्मान, और भारतीय नागरिक होने के अधिकार सुनिश्चित करने का वचन, कौन राजनैतिक दल देगा और क्या गारंटी होगी कि वह दल अपने उस किये वादे को निभाएगा भी?
- देश के विकास में अल्पसंख्यकों की बराबर की भागीदारी का वादा आज कौन राजनैतिक दल करेगा और उन वादों को निभाने का वचन मायूसी के दौर से गुज़र रहे अल्पसंख्यकों को देकर उनका विश्वास हासिल करने की जुर्रत करेगा?
- देश के सभी संवैधानिक और राजनीतिक प्लेटफॉर्म पर अल्पसंख्यकों की बराबर की भागीदारी/हिस्सेदारी का वादा, अल्पसंख्यकों से आज कौन राजनैतिक दल करेगा और भारतीय संविधान की मूल आत्मा को बल देगा?
इन तीन सवालों के साथ अल्पसंख्यक हिस्सेदारी आंदोलन ने अल्पसंख्यकों से जुड़े कुछ ठोस मुद्दों को वापस हवा दी है जिन पर धूल चढ़ गई थी
- रंगनाथन मिश्र व सच्चर कमेटी के सुझावों पर अमल किया जाये
- लोकसभा व विधानसभा के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों को एस.सी./एस.टी. रिज़र्व सीटों से समाप्त कर एस.सी./एस.टी. बाहुल्य सीटों को रिज़र्व सीट का दर्जा दिया जाये
- वक्फ़ नियम की स्थापना में आने वाली रुकावटों को समाप्त किया जाये
- अनुच्छेद 341 के धर्म के बंधन को समाप्त किया जाये
- सांप्रदायिक हिंसा व आतंकवाद के झूठे आरोपों में लिप्त लोगों के केस वापस लिए जाएँ
- पारंपरिक हुनरमंद दस्तकारों को सरकारी शिक्षा संस्थाओं के समानांतर शिक्षा की सनद दी जाये
- मुस्लिम,दलित व आदिवासियों के खिलाफ होने वाली भीड़ हिंसा के आरोपियों के लिए कड़ा क़ानून बनाया जाये
- मुस्लिम महिलाओं के आर्थिक विकास के लिए कौशल विकास केन्द्रों कीई स्थापना की जाये
- मुस्लिम कंपोनेंट की स्थापना की जाये
- भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों को दिए गए सारे अधिकारों पर पूर्ण अमल किया जाये