सूट-बूट की सरकार से शुरूआत करने वाली मोदी सरकार पांच साल बीतते-बीतते बड़े लोगों की सरकार हो गई है। बड़े लोगों की चिन्ता में जेटली जी दुबले हुए जा रहे हैं। महीनों जजों की कुर्सी ख़ाली रही मगर सरकार अपने अहं की लड़ाई लड़ती रही। आम लोग इंसाफ़ के लिए भटकते रहे। प्रतिष्ठा धूल मिट्टी में मिलती रही। तब भारत के ब्लॉग मंत्री सह वित्त मंत्री को ख़्याल नहीं आया। वे इस वक्त बजट बनाने की स्थिति में नहीं हैं मगर बड़े लोगों के लिए ब्लॉग लिख रहे हैं।
सीबीआई में एक प्रकोष्ठ है। बैंकिंग एंड सिक्योरिटी फ्राड सेल (BSFC)। इस सेल के एस पी थे सुधांशु धर मिश्रा। सुधांशु ने 22 जनवरी को बैंक फ्राड मामले में चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन के वी एन धूत के ख़िलाफ़ एफ आई आर दर्ज कराते हैं। 23 जनवरी को उनका ट्रांसफ़र रांची कर दिया जाता है।
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के बाद सीबीआई जो सफाई देती है वो और भी गंभीर है। एजेंसी का कहना है कि सर्च से संबंधित सूचनाएं लीक गईं इसलिए उनका तबादला किया गया। कमाल है। अगर ऐसा हुआ तो उस सूचना से फायदा किसे हुआ है, किसे लीक की गईं थीं सूचनाएं। अब उस एस पी को ही आरोपी बना दिया गया है। अगर सीबीआई का एस पी गुप्त सूचनाएं लीक करे तो क्या सिर्फ तबादले की कार्रवाई होनी चाहिए? किसकी आंखों में धूल झोंकने का खेल खेला जा रहा है? किसकी आंखों में चमक पैदा करने के लिए तबादले का खेल खेला जा रहा है? सीबीआई कहती है कि उसके खिलाफ जांच हो रही है मगर यह जवाब नहीं दे सकी कि एस पी मिश्रा ने किसकी अनुमति से एफ आई आर की?
एस पी मिश्रा के तबादले के दो दिन बाद यानी 25 जनवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली एफ आई आर में दर्ज़ आरोपियों के बचाव में ब्लॉग लिखते हैं। सीबीआई की आलोचना करते हैं। बताते हैं कि यह जांच का रोमांचवाद है जो कहीं नहीं पहुंचता है। इस तरह से केस मुकदमा करने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा चली जाती है। उनका समय और पैसा बर्बाद होता है। आरोपियों में चंदा कोचर और उनके पति के ही नाम नहीं हैं। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के सीईओ ज़रीन दारुवाला, टाटा कैपिटल के प्रमुख राजीव सबरवाल, गोल्डमैन शैश इंडिया के चेयरमैन सॉन्जॉय चटर्जी, बैंकिंक सेक्टर के डॉन माने जाने वाले के वी कामथ के नाम हैं।
जिस दिन जेटली जी ने ब्लॉग लिखा, उसी दिन एक और ख़बर आई। दिल्ली के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और 33 विधायकों पर 111 मुकदमे दर्ज किए गए थे, जिनमें से 64 रिजेक्ट हो गए हैं। जेटली के ब्लॉग को आप इन पर लागू कर देखिए। क्या इनका वक्त, पैसा बर्बाद नहीं हुआ? इनकी प्रतिष्ठा बर्बाद नहीं हुई? क्या तब जेटली को नहीं पता होगा कि यह सब क्या हो रहा है, क्यों राजनीति के चक्कर में फर्ज़ी और फालतू केस कर विधायकों और एक सरकार को काम करने से रोका जा रहा है?
29 मार्च 2018 को इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर की थी कि वीडियोकॉन के मालिक वी एन धूत ICICI की चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की कंपनी में करोड़ों रुपये जमा करते हैं। उसके छह महीने बाद नियमों को ताक पर रखकर धूत को बैंक से 3250 करोड़ का लोन मिल जाता है। वीडियोकॉन 2810 करोड़ नहीं चुकाता है और बैंक 2017 इसे NPA घोषित कर देता है। इस केस में के वी कामथ का नाम भी जोड़ दिया जाता है जो BRICS में भारत के प्रतिनिधि हैं। इंडियन एक्सप्रेस के दीप्तिमान तिवारी और मनोज सी जी ने 27 जनवरी को यह रिपोर्ट की थी। क्या पता इसी तरह NPA के मामले में और भी बड़े लोगों को बचाया जा रहा हो?
आज के इंडियन एक्सप्रेस में सीमा चिश्ती की ख़बर देखिएगा। सांप्रदायिक हिंसा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में साहसिक फैसला देने वाले जस्टिस एस मुरलीधर का तबादला करने का प्रयास हुआ है जिसे रोका गया है। सुप्रीम कोर्ट की कोलिजियम में दो दो बार इस पर चर्चा हुई मगर कोलिजियम के कुछ सदस्यों के कारण उनका तबादला रूक गया है। सीमा चिश्ती को सूत्रों ने यह सब बताया है। दिसंबर और जनवरी में दो दो बार हाई कोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर के तबादले पर चर्चा हुई मगर जस्टिस लोकुर और जस्टिस सिकरी के कारण तबादला रुक गया।
जस्टिस मुरलीधर ने कथित माओवादी लिंक के आरोप में गिरफ्तार गौतम नवलखा को राहत दी थी। 1986 में मेरठ के करीब हाशिमपुरा हत्याकांड मामले में फैसला दिया। जस्टिस मुरलीधर उस बेंच में भी शामिल थे जिसने सज्जन कुमार को सज़ा सुनाई। पिछले साल रिज़र्व बैंक के स्वतंत्र निदेशक और संघ से जुड़े एस गुरुमूर्ति ने जस्टिस मुरलीधर की आलोचना की थी। जस्टिस मुरलीधर ने गुरुमूर्ति के खिलाफ अवमानना की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। 11 दिसंबर को इस मामले की चेंबर में सुनवाई थी। उसके बाद जस्टिस मुरलीधर के तबादले का पहला प्रयास हुआ।
आज के टेलिग्राफ में एक ख़बर है। लोक जनशक्ति पार्टी के नेता पशुपति कुमार पारस ने मीडिया से कहा है कि 3 मार्च को बिहार में एन डी ए की रैली हो रही है क्योंकि 6 से 10 मार्च के बीच चुनाव आयोग आचार संहिता लगा देगा। चुनाव आयोग कब क्या करेगा, इसकी जानकारी सरकार के सहयोगी दलों को भी है। क्या आपको यह सब ठीक लग रहा है? बड़े लोगों का नाम लेने पर सीबीआई के एस पी का तबादला हो जा रहा है, वित्त मंत्री उनके लिए ब्लॉग लिखते हैं, संघ से जुड़े व्यक्ति के खिलाफ मामला शुरू करने से हाई कोर्ट के जज के तबादले का प्रयास होता है। फिर भी आप कहते हैं कि भारत में कुछ अच्छा नहीं हो रहा है।
क्या यह अच्छा नहीं हो रहा है कि सरकार की सुविधा के लिए सारी संस्थाएं तहस-नहस की जा रही हैं? आपकी चुनी हुई सरकार जैसा मौज चाहती है, मौज कर रही है। यही तो अच्छे दिन हैं। तभी तो आप न व्यंग्य समझ पा रहे हैं और न तथ्य। किसी सरकार के लिए इससे अधिक पोज़िटिव न्यूज़ क्या हो सकती है। सब कुछ आंखों के सामने बर्बाद हो रहा है और आप कह रहे हैं कि भारत विश्व गुरु बन रहा है।