अखिलेश को भारी पड़ रहा है रालोद का गठबंधन?

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अखिलेश यादव और जयन्त चौधरी का गठबंधन इस समय मज़बूत है। 2019 के लोकसभा चुनावों से चला आ रहा ये गठबंधन 2022 में भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। पश्चिमी यूपी में दोबारा से मज़बूत हो चुकी रालोद अखिलेश के साथ मिलकर जाट-मुस्लिम गठजोड़ की बदौलत सत्ता में हिस्सेदारी की ख्वाहिश रखे है। लेकिन फिलहाल यहां एक खटास सी नज़र आ रही है।

जयंत की मांग दरार पैदा कर रही है?

पिछली सर्दियों से चला आ रहा किसान आंदोलन जब अपने उरूज पर था उस वक़्त आंदोलन के सबसे बड़े नेता राकेश टिकैत के बहते हुए आसुओं को सहारा देने चौधरी जयंत पहुंचें थे। उनके पिता अजित सिंह ने पुरानी अदावत को भुला कर किसान आंदोलन को समर्थन देने का ऐलान किया था।

बस फिर क्या था,भाजपाई हो चुका पश्चिमी यूपी का रंग और ढंग बदला हुआ सा नज़र आने लगा था। युवाओं को अपने मुद्दे 2013 की त्रासदी से बड़े लगने लगते हुए से नज़र आ रहे थें किसानों के खिलाफ चलाये जा रहे प्रोपोगेंडा और अभद्रता ने किसानों के लिए सहानभूति पैदा कर दी। इस सहानुभूति का सीधा सा फायदा जयंत चौधरी को मिलता हुआ नजर आने लगा है।

इस घटनाक्रम के कुछ ही दिन बाद चौधरी अजीत के निधन के बाद अकेले से पड़े चौधरी जयंत के लिए पुराने रालोद के नेता और बुज़ुर्गों ने सहारा दिया और आशीर्वाद दिया और फिर से रालोद की तरफ उम्मीदों से देखना शुरू कर दिया। बस यही ही से जयंत चौधरी ने मैदान में अपनी मज़बूती दिखानी शुरू कर दी है। सूत्रों के मुताबिक़ वो अखिलेश यादव से क़रीबन 70 सीटों की मांग कर रहे हैं।

कहाँ फंस गयी है बात?

इन सीटों की मांग गाज़ियाबाद,मेरठ, मुजफ्फरनगर,बिजनोर,हापुड़ से लेकर अमरोहा,बागपत, कैराना,मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और शामली जैसे इलाकों से की जा रही है। वहीं सपाई नेता इस बात को मानने को लेकर असमंजस मे हैं। क्योंकि इस तरह से पश्चिमी यूपी में वो अपनी पकड़ कमज़ोर कर रहे हैं। दूसरी बात ये है कि बागपत लोकसभा की सिवालखास और बड़ौत जैसी अन्य कई सीटों पर बात अटकी सी लग रही है।

वहीं इसके अलावा बिजनोर की सदर सीट नहटौर और चांदपुर की सीटों को लेकर भी पेज फंस गया है। क्योंकि ये बात छुपी हुई नही है कि अखिलेश यादव चांदपुर और नहटौर को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होंगें और बागपत लोकसभा की सिवालखास को भी यूँ ही छोड़ा नहीं जा सकता है ।

इस मामले पर वेस्ट यूपी की ज़मीनी हक़ीक़त से बख़ूबी वाकिफ़ ख़ालिद इक़बाल बताते हैं कि “सिवालखास,सरधना और किठौर जैसी सीटें सपा के लिए 2019 से अब तक मज़बूत रही हैं। उम्मीदवार की हार हुई है या जीत यहां पार्टी को अच्छा वोट मिला ही है। इसके अलावा रालोद बागपत लोकसभा की एक भी सीट छोड़ना नहीं चाहती है,क्योंकि लोकसभा से लेकर जिला पंचायत तक इस सीट पर लोगों ने रालोद का मान रखा है।

आगे वो गठबंधन को लेकर बताते हैं कि “हां ये भी सच है कि रालोद और सपा एक दूसरे के लिए यहां ढाल है,तो समझौता तो होगा ही लेकिन देखना ये है कि कुर्बानी ज़्यादा कौन देगा,क्योंकि इसके बिना पश्चिमी यूपी में गठबंधन आसान नही है”

क्या बन रहे हैं आसार?

पश्चिमी यूपी को अपना मज़बूत स्तम्भ मानते हुए समाजवादी पार्टी यहां बड़ा दांव खेलने वाली है। यूपी में ये चर्चा है कि सितंबर या अक्टूबर माह में अखिलेश यादव मुजफ्फरनगर या मेरठ जैसे बड़े क्षेत्र में रालोद और सपा की संयुक्त रैली करते हुए चौधरी जयंत को उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना सकते हैं।

जिसके बाद राष्ट्रीय लोक दल के समर्थकों में सिर्फ अपने “लाड़ले” युवा चेहरे को उपमुख्यमंत्री बनाना रह जायेगा। वहीं जाट-मुस्लिम समाज को भी गठबंधन यहां दोबारा से साथ लाएगा जिसे ये ऐलान और ज़्यादा मज़बूत करने का काम भी करेगा। क्योंकि भाजपा जैसी मज़बूत पार्टी का तिलिस्म तोड़ने की कोशिश ज़बरदस्त नीतियों के ही बल पर मुमकिन है।

बीते 6 महीनों बाद होने वाले चुनावों से पहले ही माहौल अभी से गर्म हो रहा है। ये सारी चर्चा होना इसी का सबूत है। हालांकि ये भी सच है कि सत्ता पर काबिज़ भाजपा सड़क पर रालोद और सपा से ज़्यादा ऐक्टिव है लेकिन इस बात का फायदा कब किसे मिलने वाला है ये देखना अभी बाकी है।

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