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दसवी बार जीतकर रिकॉर्ड बनाया इस विधायक ने

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गुजरात विधानसभा चुनाव में परिणाम कुछ आ गये कुछ आ रहे हैं. इन परिणामों में एक चेहरा ऐसा भी है जो लगतार  9वीं बार विधायक जीते हैं नाम है  मोहन सिंह
 
मोहन सिंह कांग्रेस के है और नो वीं बार जीते है छोटाउदेपुर  से, जो की आदिवासी बाहुल इलाका है. मझे की बात ये है की इस पर वो आज तक भाजपा को टिकने ही नही दे रहे हैं.

गुजरात – छोटाउदेपुर
परिणाम घोषित
अभ्यर्थी दल का नाम मत
मोहनसिंह छोटुभाई राठवा इंडियन नेशनल कांग्रेस 75141
जशुभाई भीलूभाई राठवा भारतीय जनता पार्टी 74048
अर्जुनभाई वेरसिंगभाई राठवा आम आदमी पार्टी 4551
राठवा रमेशभाई गोपाभाई निर्दलीय 3592
इनमें से कोई नहीं इनमें से कोई नहीं 5870
पिछली बार दिनांक 18/12/2017 को 17:27 बजे अद्यतित किया गया

गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस को बड़ी उम्मीद आदिवासी बेल्ट से थी, जहां वो पारंपरिक रूप से मज़बूत रहती है. राहुल गांधी ने कसर पूरी करने के लिए छोटू वसावा से हाथ भी मिला लिया है. लेकिन चुनाव से पहले अमित शाह ने आदिवासी घरों में खाना खाया है. फिर प्रधानमंत्री मोदी का ‘विकास’ का दावा भी है, जिसकी राह आदिवासी हमेशा से देखते रहे हैं.
छोटा उदयपुर ऐसे ही आदिवासी बेल्ट का हिस्सा है. बहुत पिछड़ा इलाका है लेकिन घरों की दीवारों पर की जाने वाली पिथौड़ा पेंटिंग और सांखेड़ा फर्नीचर के लिए प्रसिद्ध है. एक और बात है. छोटा उदयपुर सीट से एक ऐसे प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं जो 9 बार विधायकी जीत चुके हैं – कांग्रेस के मोहन सिंह राठवा.
2002 छोड़ दें तो छोटा उदयपुर में कांग्रेस अंगद के पांव की तरह जमी हुई है. उसी साल ज़िले से कांग्रेस का सफाया हुआ था और मोहन सिंह राठवा भी हारे थे. दोष गोधरा गांड और फिर हुए दंगे के बाद जन्मे धार्मिक ध्रुवीकरण को दिया गया. लेकिन उसके बाद से फिर जीत रहे हैं.
शंकर सिंह वाघेला ने जब कांग्रेस छोड़ दी तो राठवा को ही नेता प्रतिपक्ष बनाया गया. इस चुनाव में भाजपा ने जित्तू राठवा के लिए प्रचार करते हुए बार-बार पूछा कि इतने साल से मोहनसिंह राठवा जीतते आए हैं, लेकिन उन्होंने किया क्या? जित्तू दो साल पहले बीजेपी के जिला अध्यक्ष बने थे. छवि भी इनकी अच्छी बताई जाती थी, लेकिन जीत नहीं पाए.
छोटा उदयपुर आदिवासी इलाका है. आदिवासी आज भी कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक हैं. कांग्रेस की स्थिति इसीलिए यहां बेहतर थी. फिर 45 साल से राजनीति कर रहे राठवा की अपनी पकड़ से भी असर पड़ता है.
“हूं छू विकास” के तमाम दावों के बावजूद ये इलाका बहुत पिछड़ा है. कई इलाकों में नेटवर्क भी नहीं है. लोग गाड़ियों की छतों पर सवार करते मिल जाते हैं. सरकार के समझे जाने वाले काम नहीं हुए हैं तो लोग भाजपा से खफा हैं.
इलाके में संखेड़ा फर्नीचर और पिथौड़ा पेंटिंग बनाने वालों पर जीएसटी की तगड़ी मार पड़ी है. इनकी मांग थी कि जीएसटी से छूट मिले या दरें कम हों. वोट देते वक्त इन लोगों ने अपनी लकलीफों को याद किया होगा.

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