उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के खाने में चूहा मिला। यह घटना 3 दिसम्बर मंगलवार की है , मिड डे मील पकाते समय चूहा खाने में गिर गया था। जब तक यह बात सामने आती कि खाने में चूहा गिरा हुआ है, तब तक बच्चे और स्टाफ़ खाना खा चुके थे। इस लापरवाही की वजह से 9 बच्चे बीमार हो गए जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया। फिलहाल बच्चों की हालात नाजुक बनी हुई है। साथ में एक शिक्षक भी अस्पताल में भर्ती हैं।
इस घटना के सामने आते ही जिला अधिकारी सेल्वी कुमारी ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए SDM और ब्लॉक शिक्षा अधिकारी को मौके पर जांच के आदेश दिए। जांच में पाया गया कि स्कूल में खाना हापुड़ की जन कल्याण सेवा समिति के द्वारा परोसा जाता है। इस लापरवाही पर स्कूल के प्रिंसिपल का कहना है कि जांच के बाद ही पता चलेगा की लापरवाही किसकी थी।
मामले के सामने आते ही राज्य के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने कहा – ‘प्राथमिक जांच में पाया गया कि वहाँ पर NGO के द्वारा खाना दिया जाता है। उस NGO को ब्लैकलिस्ट में डाल दिया गया है, व FIR दर्ज कर ली गयी है। आगे की कार्यवाही जाँच पूरी होने पर की जाएगी।’
सबसे ज्यादा जनसँख्या वाले राज्य उत्तरप्रदेश में मिड डे मील को लेकर पहले भी प्रश्न खड़े होते रहे हैं। इससे पहले मिर्ज़ापुर के प्राथमिक विद्यालय मिड डे मील के तहत नमक रोटी परोसी गयी थी। तब भी उत्तरप्रदेश सरकार की बहुत आलोचना हुई थी।
भारत में मिड डे मील की स्थिति
मिड-डे मील की सरकारी वेबसाइट के वार्षिक आंकड़ों के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष में 11.93 करोड़ बच्चों का एडमिशन विभिन्न स्कूलों में हुआ, लेकिन इनमें से 9.036 बच्चों को ही मिड-डे मील उपलब्ध करवाया जा रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष में कुल 11.93 करोड़ बच्चों ने स्कूल में एडमिशन लिया, लेकिन मिड-डे मील के लिए बजट आवंटित करने वाली संस्था पीएबी (प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड) ने इसे दरकिनार करते हुए करीब 9.58 करोड़ बच्चों को मिड-डे मील का आवंटन किया है। यानि करीब 2.40 करोड़ बच्चों के मिड-डे मील का बजट अप्रूव ही नहीं हुआ है।
बच्चों को मिड-डे मील मुहैया कराने में सबसे नाकामयाब पांच राज्यों में सबसे पहला स्थान उत्तरप्रदेश का है, जहाँ पर सिर्फ 57.08 % नामित बच्चों को मिड-डे मील मिल रहा है। इसके बाद क्रमशः बिहार, 59.39% और झारखंड, 61.45% आते हैं।
क्या है मिड-डे मील योजना?
मिड-डे मील योजना भारत में 15 अगस्त 1995 से शुरू है। यह योजना भारत सरकार और राज्यों को सरकार सयुंक्त प्रयास से संचालित होती है। पहले इस योजना के तहत बच्चों के अभिभावकों को अनाज उपलब्ध करवाया जाता था, लेकिन 2004 से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार प्राथमिक विद्यालयों में पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराने की योजना की शुरुआत हुई। योजना के सफल होने पर इसमें वक्त वक्त पर सुधार हुए व इस योजना का विस्तार किया गया।
इस योजना के तहत बच्चों को मध्यावकाश के दौरान स्वादिष्ट व गर्म भोजन दिए जाने का प्रावधान है। विद्यालयों में उपलब्ध कराए जा रहे भोजन के लिए कुछ निर्देश भी जारी किये गए हैं, जिनके अनुसार प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराए जा रहे भोजन में कैलोरी की मात्रा क्रमशः कम से कम 450 कैलोरी ऊर्जा व प्रोटीन 12 ग्राम होना चाहिए। उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कम से कम 700 कैलोरी ऊर्जा व 20 ग्राम प्रोटीन अनिवार्य रूप से उपलब्ध होना चाहिए।