6 दिसंबर 1992 में जब उन्मादियों की भीड़ ने अयोध्या में जब एक पुरानी इमारत गिरायी थी तो उसमें राम विराजमान थे और उनकी पूजा चल रही थी। इमारत ज़मीदोज़ होती है और उन्मादित भीड़ रामलला के छोटे से विग्रह को उसी कदीम इमारत के मलबे में छोड़ कर भाग जाते हैं। मौके पर तैनात पुलिस के लोग पुजारी की मदद से रामलला को शाम तक मलबा हटाये स्थान पर स्थापित करके उनका एक अस्थायी आशियाना बनाते हैं, जिसे अंग्रेजी अखबार मेकशिफ्ट टेम्पल कहते हैं। तंबू से ढंके इस मंदिर पर अब तंबू की जगह टीन की एक छत लग गयी है। चारों ओर से लोहे की मज़बूत रेलिंग है। राम अब भी वहीं है। पर एक वायदे में मुंतज़िर भी हैं।
वादा था, राम का एक भव्य मंदिर रामजन्मभूमि पर बनाने का। यह वादा था रामजन्मभूमि का आंदोलन चलाने वाले भाजपा के नेताओं का जिन्होंने अक्सर यह नारा लगाया है कि ‘सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएंगे’। भाजपा की अपने दम पर उत्तरप्रदेश में जब पहली सरकार कल्याण सिंह के नेतृत्व में 1991 में बनी थी तो अयोध्या में पूरी कैबिनेट, उसी पुरानी इमारत जिसे ध्वस्त कर के शौर्य का अहसास कुछ को आज भी होता है, में गयी थी और यह सौगंध सामूहिक रूप से मंत्रिमंडल ने लिया था कि ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे।’
6 दिसम्बर 1992 को संविधान की शपथ लेकर, संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए एक इमारत ही ज़मीदोज़ नहीं की गयी बल्कि सामाजिक सद्भाव का तानाबाना भी तोड़ने की कोशिश की गयी। संविधान की शपथ तो उसी दिन टूट गयी थी और अब राम की सौगंध 1991 से आज 2019 तक आते आते, आस्था से राममंदिर बनाने के लिये संभावना की तलाश पर आ पहुंची है। न संविधान के प्रति ली गयी शपथ की रक्षा हो सकी और न राम के सौगंध की मर्यादा बच सकी।
1992 के बाद से होने वाले चुनाव में राममंदिर का एजेंडा अपनी जगह बराबर रहा है। कभी यह आस्था के रूप में तो कभी संकल्प के रूप में, पर आज तक वैचारिक धुंधता की शिकार यह पार्टी और इसके नेता यह तय नहीं कर पाए हैं कि यह काम किस रणनीति से पूरा किया जाय। पिछले 23 साल से यह वादा भाजपा के चुनावी घोषणापत्र जिसे वे संकल्पपत्र कहते हैं में कहीं न कहीं स्थान पाता रहा है। केवल 1999 के चुनावी घोषणापत्र में यह वादा अनुपस्थित था।
1996 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर के निर्माण का वादा प्राथमिकता के आधार पर घोषणापत्र के पृष्ठ 12 पर अंकित था। घोषणापत्र के वादे के अनुसार, ” सत्ता में आने पर भाजपा सरकार अयोध्या में जन्मस्थान पर एक भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी। यह सपना हमारी मातृभूमि के करोड़ो लोगों का है। राम हमारी आत्मा में हैं । ”
1996 के 11 वीं लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और एक त्रिशंकु लोकसभा अस्तित्व में आयी । भाजपा अटल जी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी बनी। लेकिन यह सरकार केवल 13 दिन चली और अटल जी लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाये।
12 वीं लोकसभा के लिये आम चुनाव 1998 में हुए। 1998 के चुनाव के लिये भाजपा ने जो घोषणापत्र जारी किया उसके पृष्ठ 8 पर राममंदिर के निर्माण का उल्लेख किया गया है। घोषणापत्र के अनुसार – ” भाजपा अयोध्या में जन्मस्थान पर जहां एक अस्थायी मंदिर है वहां एक भव्य राममंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगी। श्रीराम भारत की आत्मा में बसे हुए हैं। भाजपा इसके लिये, आपसी बातचीत, वैधानिक और संवैधानिक समाधान के लिये प्रयासरत रहेगी।
घोषणापत्र में आगे कहा गया है
” भाजपा इस बात से आश्वस्त है कि राष्ट्र के उत्थान के लिये हिंदुत्व में राष्ट्र को अनुशासन के साथ पुनर्जीवित कर राष्ट्र निर्माण करने की अपार संभावनाएं हैं। इससे उच्चतम स्तर की देशभक्ति का प्रसार करके दक्षता और क्षमता के उच्च स्तर को प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे ही निष्ठावान विचारों से भाजपा ने रामजन्मभूमि आंदोलन का प्रारंभ अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिये किया है। ”
- 1998 में भी त्रिशंकु लोकसभा बनी रही। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी विभिन्न दलों के सहयोग से 286 स्थानों के बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने जो 13 महीने तक सत्ता में रहे।
- 1998 में बनी एनडीए सरकार लोकसभा में एक वोट से एआईडीएमके और बीएसपी द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण गिर गयी और 1999 में पुनः चुनाव हुए।
- 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का कोई अलग से घोषणापत्र जारी नहीं हुआ था, बल्कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एनडीए ने एक साझा घोषणापत्र जारी किया था जिसमे राममंदिर का कोई उल्लेख नहीं था।
- 1999 में एनडीए सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया और 2004 तक सत्ता में रही।
- 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के घोषणापत्र के साथ भाजपा का एक दृष्टिपत्र निकला जिसे विजन डॉक्युमेंट का नाम दिया गया। एनडीए के घोषणापत्र में राममंदिर के बारे में यह उल्लेख था कि, ” अयोध्या मामले का शीघ्र और सर्वमान्य समाधान ढूंढा जाएगा। ” जब कि भाजपा के दृष्टिपत्र में इस विषय पर पार्टी का अलग दृष्टिकोण था।
दृष्टिपत्र के अनुसार, ” भाजपा अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के लिये प्रतिबद्ध है। मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में राम भारतीय संस्कृति के प्रेरणास्रोत हैं। उनका जन्मस्थान, अयोध्या करोड़ों हिंदुओं के लिये आस्था का केंद्र है। भाजपा इस प्रकरण पर प्रतिबद्ध है कि जो भी अदालती फैसला होगा वह सभी पक्षों के लिये बाध्यकारी होगा।”
2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 138 और कांग्रेस को 145 सीटें मिली। कांग्रेस ने यूपीए के रूप में एक गठबंधन करके 335 सीटों का बहुमत प्राप्त कर के अपनी सरकार बनायी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया। मनमोहन सिंह अप्रत्याशित रूप से यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री बने।
2009 के लोकसभा चुनाव में मंदिर मुद्दा घोषणापत्र के पृष्ठ 48 पर सरक गया, जिसे राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा भाजपा द्वारा अपने अन्य एनडीए सहयोगियों के तुष्टीकरण के रूप में देखा गया।
2009 के घोषणापत्र के अनुसार, ” देश और विदेश के समस्त भारतीयों की यह इच्छा है कि अयोध्या में जहां कभी राम का भव्य मंदिर था, वहां एक नया मंदिर बनाया जाय। भाजपा, आपसी बातचीत और अदालती समाधान सहित अन्य सभी संभावनाओं पर विचार करेगी जिससे अयोध्या में राममंदिर बन सके ।”
लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 22 सीटों का और नुकसान हो गया, तथा उसे 116 सीटें मिलीं। यूपीए की सरकार को दूसरा टर्म मिला और मनमोहन सिंह पुनः दुबारा प्रधानमंत्री बने।
2014 के चुनाव में जो घोषणापत्र जारी हुआ उसे संकल्पपत्र के नाम से प्रचारित किया गया। इस संकल्पपत्र मे राममंदिर के मुद्दे पर केवल दो पंक्तियां लिखी गयीं थीं। वे थीं, ” राम मंदिर : भाजपा संविधान की सीमाओं के अंतर्गत अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के लिए सभी संभावनाओं की खोज करेगी।”
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला। एनडीए की सरकार बनी और नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने।
2019 के संकल्पपत्र में भी 2014 का वही वाक्य ” राम मंदिर : भाजपा संविधान की सीमाओं के अंतर्गत अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के लिए सभी संभावनाओं की खोज करेगी। ” जस का तस रख दिया गया है।
इस प्रकार ‘ अयोध्या में जन्मस्थान पर राम के भव्य मंदिर ‘ का मुद्दा जिसके आधार पर भाजपा आज सत्ता के केंद्र में है 1996 से कभी नीम नीम तो कभी शहद शहद मुद्रा में भाजपा के चुनावी वादों में जगह पाता रहा।
राम मंदिर मुद्दे पर बात करने के पहले यह समझ लें कि यह प्रकरण दो पक्षो के बीच जमीन के टाइटिल सूट का है। इसे उलझाया है राजनीतिक दलों ने। कभी ताला खुलने और शिलान्यास करा कर राम का निकट होने का श्रेय कांग्रेस ने लिया तो कभी एक पुरानी और खंडहरनुमा इमारत जहां रामलला की पूजा होती थी, को पागलों की ध्वस्त करके पाखंड भरे शौर्य का प्रदर्शन करके भाजपा के नेताओं ने। राम और राम के आदर्श से दोनों को कोई सरोकार न तब था और न अब है, सरोकार राम के प्रति आस्था के व्यापार से था, जिसे दोनों ने भुनाया। शुरुआत कांग्रेस ने की और उस आस्था का दोहन अब भाजपा और संघ परिवार कर रहे हैं।
11 साल के राज्य में भाजपा ने एक भी ऐसा सार्थक कदम नहीं उठाया जिससे इस समस्या का समाधान हो सके। 6 दिसंबर 1992 के पहले अगर उन्मादित आस्था ने संविधान की सारी मर्यादाओं को ताख पर रख कर विवादित स्थल को ध्वस्त नहीं किया होता तो बातचीत के रास्ते समाधान की एक संभावना तो थी, भले ही वह क्षीण थी। पर अब केवल अदालत के निर्णय के जो सभी पक्षों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी होगी और कोई मार्ग नहीं है।
अदालती फैसले के अलावा एक अन्य हल के रूप में, आपसी बातचीत का रास्ता भी है। समाधान के इस उपाय का भी उल्लेख भाजपा ने अपने चुनावी वादों में कर रखा है। पर 11 साल में शायद ही कभी कोई मीटिंग सरकार के स्तर पर राममंदिर और बाबरी मस्जिद के पक्षकारों के बीच इसे हल करने के लिये आयोजित नहीं की गयी। चंद्रशेखर जी जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने पीएमओ के तत्वावधान में एक मीटिंग ज़रूर हिन्दू मुस्लिम संतो की बुलायी थी। उसमें कोई फैसला तो नहीं हुआ था पर एक गुफ्तगू तो शुरू हुयी थी। लेकिन 6 दिसंबर 1992 के बाद उभय पक्ष में इतनी खटास आ गयी कि बातचीत का विंदु ही नेपथ्य में चला गया। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से एक मेडिएशन हो रहा है।
राजनीतिक सत्ता के लिये उठाया गये इस मुद्दे ने अयोध्या और राम को विवादित कर पूरे समाज में जो जहर फैला कर बिखराव कर दिया है वह राष्ट्र निर्माण नहीं राष्ट्रभंजन की ओर ले जा रहा है। बेहतर यही होगा कि इस टाइटिल सूट जो केवल एक कानूनी मसले के रूप में है के कानूनी निर्णय को अदालत पर छोड़ कर हम जीवन से जुड़े मुद्दे की ओर लौटें । इस मुद्दे पर की जा रही राजनीति, फैलाये जा रहे उन्माद जानबूझकर तोड़े जा रहे समाजिक सद्भाव की हरकतें अंततः देश, समाज और धर्म सबका अहित करेंगी। राम सबको सद्बुद्धि दें, राम के अवतरण दिवस पर तो आज केवल यही कहा जा सकता है ।