बीहड़ों की रानी “फूलन देवी”,जो सासंद भी बनी

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मध्य प्रदेश के बीहड़ों की रानी फूलन देवी एक ऐसी व्यक्तित्व वाली महिला थीं, जिसने दुनिया के अत्याचार और समाज की कुप्रथाओं को झेला। उनके हिस्से नफरत और सहानुभूति दोनों आईं। फूलन देवी ने जिन परिस्थितियों में 22 लोगों की हत्या की, वो किसी से छिपी नहीं है। बाल विवाह, रेप और गैंगरेप जैसे भयानक अपराधों का शिकार होने के बाद उन्होंने जो बदले की इबारत लिखी, उसे आज भी बेहमई कांड के नाम से जाना जाता है।

चाचा के खिलाफ

बुंदेलखंड के जालौन में गांव घूरा का 10 अगस्त 1963 को फूलन देवी का जन्‍म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था।
एक बार जब फूलन की मां ने उसे बताया कि उनके चाचा ने उनकी जमीन हड़प ली, तो दस साल की उम्र में फूलन अपने चाचा से ही भिड़ गईं। जमीन के लिए धरना दे दिया। जिसके बाद चचेरे भाई ने सर पर ईंट मार दी। पर इस गुस्से की सजा उसके घर वालों ने भी उसे दी। और दस साल की उम्र में उनकी शादी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दी गई।


दस साल की उम्र में शादी हो जाने पर अधेड़ पति की दरिंदगी से तंग आकर ससुराल से वह भाग निकलींं। जब फूलन के भाइयों ने वापस उन्हें अपने ससुराल भेजना चाहा, तब तक उनके पति ने दूसरी शादी कर ली थी। उनके पति और उसकी बीवी ने फूलन को काफी बेईजत करके घर से निकाल दिया।

जब डकैतों के गिरोह में हो गईं शामिल

धीरे-धीरे उनका उठना बैठना कुछ ऐसे लोगों से होने लगा, जिनका वास्ता डाकुओं से था। फिर फूलन उनके साथ घूमने लगीं। लेकिन फूलन ने कभी यह बात साफ नहीं की, कि वह अपनी मर्जी से बाबू गुर्जर और विक्रम मल्लाह के गिरोह शामिल हुईं थी या उन्हें यह लोग उठा कर ले गए थे।

जब फूलन पर आया गिरोह के दो लोगों का दिल

सरदार बाबू गुज्जर फूलन पर मोहित हो गया था। इस बात को लेकर विक्रम मल्लाह ने बाबू गुर्जर की हत्या कर दी। और गिरोह का सरदार बन बैठा। इसी दौरान श्रीराम ठाकुर के गैंग ने फूलन देवी का अपहरण करके बेहमई गांव में कई दिन तक उनके साथ दुष्कर्म किया और उनपर खूब अत्‍याचार किया।

उसी गांव में जाकर फूलन ने अपने साथ हुए इस दुष्कर्म का बदला लिया। फूलन ने अपनी साथी डकैतों के साथ मिलकर 14 फरवरी 1981 को करीब 22 लोगों को लाइन से खड़ा करके गोली मार दी। इसके बाद इस अपराध की बेहमई कांड के नाम से जाना गया और फूलन देवी को देश दुनिया में बैंडिट क्वीन के नाम से मशहूर हुईं।

हालांकि बेहमई कांड के बाद इसका जातिगत बदला लेने के लिए औरैया (तत्कालीन इटावा का हिस्‍सा) जिले में अस्‍ता गांव के पास मल्‍लाहों के एक गांव पर हमला बोल दिया। इस हमले में इस गुट ने गांव फूलन के दर्जन भर से अधिक मल्‍लाह बिरादरी के लोगों की जान ले ली थी।

जब फूलन देवी ने किया आत्मसमर्पण

उस समय भिंड के एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी ने फूलन देवी से आत्मसमर्पण करवाने का बीड़ा उठाया था। और फूलन देवी आत्मसमर्पण के लिए राजी भी हो गईं, पर फूलन के विश्वासपात्र साथी मुस्तकीम के भाई पर उस समय 10 हजार रुपए का इनाम था। चूंकि चंबल के डीआईजी एमडी शर्मा डकैतों के समर्पण के खिलाफ थे। इसलिए उन्होंने मुस्तकिम के भाई का एनकाउंटर करवा दिया। लेकिन वह मरा नहीं। जब यह बात फूलन देवी के कानों तक पहुंची, तो उसने समर्पण करने से इंकार कर दिया।

राजेंद्र चतुर्वेदी इस बात से बहुत परेशान हुए। उन्होंने तुरंत अपने बेटे को फूलन देवी के पास बतौर जमानत भेज दिया और कहा, अगर यकीन करो तो सरेंडर कर दो। इस घटना के कई महीने बाद फूलन ने भिंड में आकर सरेंडर कर दिया।

जेल से निकलने के बाद शुरू हुआ संसद का सफर

जेल से निकलने के बाद फूलन देवी ने मिर्जापुर-भदोही से समाजवादी पार्टी के टिकट चुनाव में खड़ी हुईं और जनता ने उन्हें अपने जनप्रतिनिधि के रूप ने चुना भी। 1999 में समाजवादी पार्टी से ही दोबारा उन्हें टिकट मिला, इस बार उन्होंने लगभग एक लाख वोटों से भारतीय जनता पार्टी के वीरेंद्र सिंह को दोबारा शिकस्त दी। उनके राजनीतिक जीवन में वह अपनी सहजता और सर्वसुलभता के लिए जानी जाती थीं। इसी कारण आज भी उनका नाम लोगों की जुबान पर बहुत सम्मान से आता है।

25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा ने की हत्या

25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा फूलन देवी से मिलने उनके बंगले पर आया। फूलन के आगे उसने कहा कि वह फूलन के संगठन ‘एकलव्य सेना’ से जुड़ना चाहता है। उसके बाद उसने फूलन के घर की खीर खाई। घर से निकलते ही उसने गेट पर फूलन को गोली मार दी। शेर सिंह राणा ने कहा कि मैंने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है। फूलन देवी की हत्या के लिए शेरसिंह को आरोपी मानते हुए, दिल्ली की एक अदालत ने 14 अगस्त 2014 के दिन उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।