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पटना विश्वविद्यालय के सौ साल पूरे, छात्रों ने विवि के नायकों को याद किया

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पटना विश्विद्यालय के सौवें वर्ष पूरे होने पर पटना यूनिवर्सिटी के छात्र और शहर वासियों द्वारा मानव श्रृंखला का आयोजन किया गया। यह मानव श्रृंखला पटना विश्वविद्यालय के प्रांगण के बाहर आयोजित किया गया। दरअसल मानव श्रृंखला आयोजित करने का मक़सद पटना यूनिवर्सिटी के उन नायकों को याद व श्रद्धांजलि अर्पित करना था जिन्होंने पटना यूनिवर्सिटी को ऑक्सफ़ोर्ड ऑफ बिहार बनाने में योगदान दिया था । मानव श्रृंखला के अलावा पैम्फलेट वितरण कर लोगों को पटना यूनिवर्सिटी के गौरवशाली इतिहास से रूबरू कराने की कोशिश की गई ।
इस कार्यक्रम के आयोजन में प्रमुख भूमिका मोहम्मद उमर अशरफ़, मोहम्मद इंतेख़ाब आलम, अरक़म ज़मान व उनके साथियों ने निभाई । मोहम्मद इंतेख़ाब आलम ने  सवालिया लहज़े में कहा कि BHU के लिए मदन मोहन मालवीय याद किये जाते हैं, AMU के लिए सर सैयद अहमद खान तो पटना यूनिवर्सिटी के लिए इसके स्थापना से लेकर इस फलने-फूलने तक योगदान देने वाले महानुभावों को याद क्यों नहीं किया जाता है ।
सरकार के रवैये से नाराज़ आगे इन्होंने कहा कि मौजूदा और इससे पहले की बिहार सरकार का जो रवैय्या है उसे देख के कर तो ये अनुमान नही लगाया जा सकता कि कभी वो इन्हे श्रधांजली देंगे। उन्हों ने आगे बताया कि पटना विश्विद्यालय का बिहार और भारत के राजनीति में एक अहम रोल रहा है और इससे कई जाने माने लोगों ने शिक्षा प्राप्त की है जिनमे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, तत्कालीन भारत सरकार के संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद, बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिन्हा इत्यादि।
इस कार्यक्रम में सक्रिय किरदार निभाने वाले उमर अशरफ़ ने संक्षेप में पटना यूनिवर्सिटी का इतिहास बताते हुए कहा कि-

  • 1896 तक बिहार में मेडिकल, इंजिऩरिंग की पढ़ाई का कोई भी संस्थान नही था और कलकत्ता के मेडिकल और इंजिऩरिंग कालेज मे बिहार के छात्रों को स्कौलरशिप नही मिलता था।
  • शिक्षा और सरकारी नौकरीयों मे बहाली के मामलों पर बिहारी लोगों से बहुत ही नाइंसाफ़ी की जाती थी।
  • इस तरह के बरताव से तंग आ कर महेश नारायण, अनुग्रह नारायण सिंह, नंद किशोर लाल, राय बहादुर, कृष्ण सहाय, गुरु प्रसाद सेन, सच्चिदानंद सिन्हा, मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन, अली ईमाम, मज़हरुल हक़ और हसन इमाम ‘बिहार’ को बंगाल से अलग कराने के काम मे लग गए।
  • जिसके बाद 22 मार्च 1912 को बिहार वजुद मे आया।

मज़ाहिरुल हक ने पटना यूनिवर्सिटी बनाने का बीड़ा उठाया था-

बिहार और उड़ीसा के लिए युनिवर्सिटी की सबसे पहली मांग मौलाना मज़हरुल हक़ ने 1912 मे की थी, उनका मानना था के बिहार और उड़ीसा का अपना एक अलग युनिवर्सिटी होना चाहिये फिर इस बात का समर्थन सचिदानंद सिन्हा ने भी किया।

पटना युनिवर्सिटी बिल को लेकर 1916 से 1917 के बीच लम्बी जद्दोजेहद हुई। 1916 में कांग्रेस के लखनऊ सेशन में पटना युनिवर्सिटी बिल को ले कर बात हुई. इंपीरियल विधान परिषद मे 5 सितम्बर 1917 को इस बिल को पेश किया गया जिसमे वहां मौजुद लोगों से राय मांगी गई, 12 सितम्बर 1917 को इस बिल पर चर्चा हुई और मौलाना मज़हरुल हक़ द्वारा दिए गए समर्थन के कारण 13 सितम्बर 1917 को इस बिल को पास कर दिया गया।

जहां राजेंद्र प्रासाद चाहते थे के पटना में क्षेत्रीय युनिवर्सिटी बने जहां लोकल भाषा में पढ़ाई हो वहीं सैयद सुल्तान अहमद पटना के युनिवर्सिटी को विश्वस्तरीय बनवाना चाहते थे और बात सुल्तान अहमद की मानी गई।
शायद इसी बात को लेकर 1916 मे बड़ी तादाद मे छात्र पटना मे यूनिवर्सिटी बनाने का विरोध कर रहे थे तब सैयद सुल्तान अहमद ने छात्रों से बात की और उन्हे संतुष्ट किया और इस तरह पटना यूनिवर्सिटी के बनने का रास्ता खुल गया। पटना यूनिवर्सिटी एक्ट 1 अक्तुबर 1917 को पास हुआ और इस तरह पटना युनिवर्सिटी की स्थापना हुई।

भारतीय मूल के पहले वीसी थे सुल्तान अहमद

पटना यूनिवर्सिटी के पहले भारतीय मूल के वायस चांसलर सैयद सुल्तान अहमद बने.वह 15 अक्तुबर 1923 से लेकर 11 नवम्बर 1930 तक इस पद पर बने रहे। उनके दौर में ही पटना यूनिवर्सिटी में पटना साइंस कॉलेज, पटना मेडिकल कॉलेज और बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज वजूद मे आया जो उनकी सबसे बड़ी उप्लब्धी थी।
ख़्वाजा मुहम्मद नूर भारतीय मूल के दूसरे वाईस चांसलर बने जो 23 अगस्त 1933 से 22 अगस्त 1936 तक इस पद पर बने रहे वहीं, पटना युनिवर्सिटी को स्थापित करने में अपना बड़ा किरदार अदा करने वाले सच्चिदानंद सिन्हा 23 अगस्त 1936 से 31 दिसम्बर 1944 तक इसके वाईस चांसलर रहे उनके बाद सी.पी.एन. सिंह 1 जनवरी 1945 को पटना युनिवर्सिटी के वाईस चांसलर बने और भारत की आज़ादी के बाद भी 20 जुन 1949 तक इस पद पर बने रहे। सी.पी.एन सिंह ने ही पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स की शुरुआत पटना युनिवर्सिटी मे की।
पटना युनिवर्सिटी को वजुद मे लाने मे अपना अहम रोल अदा करने वाले मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन ने 1921 से 1933 के बीच बिहार के शिक्षा मंत्री रहते हुए पटना युनिवर्सिटी के कई बिलडिंग और हॉस्टल का निर्मान करवाया, चाहे वो बी.एन कॉलेज की नई ईमारत हो या फिर उसका तीन मंज़िला हास्टल, साईंस कॉलेज की नई ईमारत हो या फिर उसका दो मंज़िला उसका हास्टल, इक़बाल हास्टल भी उन्ही की देन है। रानी घाट के पास मौजुद पोस्ट ग्रेजुएट हास्टल भी उन्होने बनवाया साथ ही पटना ट्रेनिंग कॉलेज की ईमारत उन्ही की देन है। इसी दौरान कई बिहार के कई देसी राजा महराजा और नवाबो ने ज़मीन और पैसा डोनेट किया जिसके बाद पटना युनिवर्सिटी की बिलडिंग और दफ़्तर खुले।
पूर्व का ऑक्सफ़ोर्ड कहलाने वाला पटना युनिवर्सिटी 100 साल का हो चुका है ज़रुरत इस बात की है इसे स्थापित करने वाले को याद किया जाय। इस अवसर पर अजीत सिंह, परवेज़ आलम, सन्नी चौहान, ज़िशान शफ़ीक़, अयाज़ुल हक़, अभीषेक राज, कौसर रज़ा, शम्स वाजिद, रजनीश कुमार, मशकुर अहमद, शहनावाज़ सहीत पचास से अधिक की संख्या में छात्रों ने उपस्थिति दर्ज कराई, और कहा कि हम इन्हें हमे

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