द्रविण मुनेत्र कसगम (DMK) दक्षिण भारत मे एक प्रमुख राजनीतिक दल के तौर पर जानी जाती है। इसका गठन 17 सितंबर 1949 में “जस्टिस पार्टी” और “द्रविण कसगम” से अलग होकर किया गया था। DMK की स्थापना सी एन अन्नादुरई ने की थी। इस पार्टी का दक्षिण में तमिलनाडु और पंडुचेरी कि राजनीति पर एक बड़ा प्रभाव है।
भारत की आज़दी के बाद तमिलनाडु में कांग्रेस की स्थिति मजबूत थी, लेकिन बाद में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के उभरने के कारण कांग्रेस कमजोर होती गई और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम का प्रभाव क्षेत्रीय राजनीति में बढ़ता गया।
वर्तमान में तमिलनाडु में डीएमके (DMK) की सरकार है। जिसका नेतृत्व एमके स्टालिन (M K STALIN) कर रहे हैं। डीएमके, सी एन अन्नादुराई (C.N. ANNADURAI) और पेरियार ईवी रामास्वामी ( periyar e v ramasvami) के सिद्धांतों का पालन करती है। ये सिद्धांत सामाजिक लोकतंत्र और सामाजिक न्याय पर आधारित है।
अन्नादुराई थे डीएमके के पहले महासचिव:
साल 1949 में जस्टिस पार्टी से अलग होकर सी एन अन्नादुराई ने डीएमके बनाई थी, हालांकि 1944 में अन्नादुराई ने जस्टिस पार्टी में रहते हुए इसे द्रविण समाज के लिए एक कल्पना के तौर पर उठाया था। लेकिन 1949 में विचारधारा में मत भेद के चलते डीएमके का गठन किया गया था। शुरुआत में अन्नादुराई डीएमके के महासचिव बने। वहीं 1967 से 68 तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी रहे।
1967 में अन्नादुराई के नेतृत्व में डीएमके पहली ऐसी पार्टी बनी थी जो राज्य स्तर के चुनाव में स्प्ष्ट बहुमत से जीती हो। 1969 में अन्नादुराई की मृत्यु के बाद डीएमके कमान एम करुणानिधि ने संभाली थी। 1969 से 2018 तक करुणानिधि पांच बार मुख्यमंत्री रहें, लेकिन डीएमके के पहले अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने अन्नादुराई का ही अनुसरण किया। 2018 में करुणानिधि की मृत्यु के बाद तमिलनाडु में डीएमके की कमान उनके बेटे एम.के. स्टालिन ने संभाली।
लगातार पांच बार सत्ता में रही थी डीएमके:
स्टालिन 2009-11 तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके है, लेकिन पिता की मृत्यु के बाद उन्हें डीएमके का अध्यक्ष चुन लिया गया। डीएमके 2019 के लोकसभा चुनाव में 24 सीटों के साथ देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। वहीं तमिलनाडु के पांच विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल किया है और आज भी वर्तमान में तमिलनाडु में सत्तारूढ़ पार्टी बनी हुई है। पार्टी के प्रधान कार्यालय को अन्ना अरिवलयम कहा जाता है।
डीएमके सामाजिक विचारधारा वाली पार्टी है, इसकी और भी शाखाएं हैं। छात्र शाखा के तौर पर डीएमके मनावर अनिक, युवा शाखा इगिनार अनिक और महिला शाखा के रूप में डीएमके मगलिर अनिक है। डीएमके की सीटों का आंकड़ा देखा जाए तो, लोकसभा में 24 सीटें, राज्यसभा में 10 सीटें, वहीं राज्य स्तर पर तमिलनाडु में 125 और पंडुचेरी में 6 सीटें हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में डीएमके की 1 सीट है।
इन पार्टियों के साथ रहा है गठबंधन:
डीएमके ने अपने अभी तक के कार्यकाल में 7 बार गठबंधन किया है। ये गठबंधन 4 पार्टियों के साथ केंद्र स्तर पर किया गया है। भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस के साथ पहला गठबंधन साल 1971 के आम चुनावों में किया गया था। इस दौरन इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थी। 1977 में जनता पार्टी से गठबंधन हुआ और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने । 1980 में एक बार फिर कोंग्रेस से डीएमके का गठबंधन हुआ और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी।
फिर 2004 और 2009 में भी यही सरकार रिपीट हुई लेकिन इस बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे। 1989 और 1996 में लगातार दो बार जनता दल के साथ गठबंधन में आई थी, इस समय वी.पी. सिंह, देवेगौड़ा और आई.के. गुजराल सत्ता में आए थे। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में डीएमके ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में आई थी।
हिंदी विरोधी आंदोलन में थी महत्वपूर्ण भूमिका:
DMK को हिंदी और हिन्दू विरोधी पार्टी कही जाती है। इसका गुप्त सम्बन्ध श्रीलंका के अलगाववादी संगठन लिट्टे से भी माना जाता है। कहा जाता है कि यही डीएमके के नेता लिट्टे की सहायता भी करते हैं, लेकिन इस बात की कोई पुष्टि नहीं है। हिंदी विरोधी आंदोलन में महत्वपूर्ण प्रभावी भूमिका निभाने के लिए डीएमके का कद दक्षिण की राजधानी में बढ़ता गया।
डीएमके संस्थापक अन्नादुराई ने 1940 के दशक में हिंदी विरोधी आंदोलन में भाग लिया था। जुलाई 1953 में डीएमके सरकार द्वारा प्रस्तावित नाम कल्लाकुडी का नाम बदलकर डालमियापुरम कर दिया गया था। जिसके विरोध में आंदोलन छिड़ गया था। डीएमके का कहना था कि शहर का नाम बदलकर डालमियापुरम कर देना, उत्तर भारत द्वारा दक्षिण भारत के शोषण का प्रतीक है। इसके बाद डीएमके सदस्य डालमियापुराम रेवले स्टेशन के बोर्ड से हिंदी नाम मिटाकर पटरियों पर लेट गए.
हालांकि, पुलिस के साथ हुए विवाद में कई डीएमके सदस्यों की जान चली गयी। वहीं करुणानिधि और कन्नदासन को गिरफ्तार कर लिया गया। 1950 में डीएमके ने द्रविण नाडु की मांग के साथ हिंदी विरोधी नीतियों को जारी रखा। इसके बाद 26 जनवरी 1956 में अन्नादुराई, पेरियार और राजाजी ने तमिल संस्कृति अकादमी के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करते हुए आधिकारिक तौर पर अंग्रेज़ी भाषा को जारी रखने का समर्थन किया था।
21 सितंबर 1957 को डीएमके ने हिंदी को दक्षिण भारत मे थोपने के विरोध में एक हिंदी विरोधी सम्मेलन का आयोजन किया गया। वहीं 13 अक्टूबर 1957 को “हिंदी विरोधी दिवस” के रूप में मनाया। 1967 में डीएमके ने दो भाषा नीति का समर्थन किया था, हालांकि पड़ोसी राज्यो में त्रि-भाषा सूत्र को अपनाया गया था। इसके तहत कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल में छात्रों को क्षेत्रीय भाषा के साथ साथ, हिंदी और अंग्रेज़ी सिखाई जाती थी।
डीएमके ने शुरू किया था स्वाभिमान विवाह अधिनियम:
देश में पहली बार अगर किसी ने स्वाभिमान विवाह को मान्यता दी थी, तो वो डीएमके (DMK) के महासचिव अन्नादुराई थे। ये स्वाभिमान विवाह अभियान पेरियार के दिमाग की उपज माना जाता है। दरअसल, पेरियार ईवी रामास्वामी पारंपरिक विवाह को केवल एक वित्तिय व्यवस्था मानते थे। इस व्यवस्था में दहेज देने के कारण एक पक्ष कर्ज में डूब जाता था।
पेरियार के अनुसार स्वाभिमान विवाह अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करता है। वहीं अरेंज मैरिज को लव मैरिज से प्रतिस्थपित करने का काम भी करता है। इस स्वाभिमान विवाह में अध्यक्षता के लिए पुजारियों की संख्या शून्य के समान होती है, और इस तरह शादी (विवाह) में ब्राह्मणों की आवयश्कता नहीं होती।