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व्यक्तित्व- हरिवंश राय बच्चन

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हरिवंश राय बच्चन. हिंदी साहित्य के बड़े नाम और हिंदी साहित्य से आम-जन को परिचित कराने वाले कवि. हरिवंश राय बच्चन का आज 110वां जन्मदिन है. हरिवंश हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के लोकप्रिय कवियों मे से एक थे. बॉलीवुड के मशहूर एक्टर अमिताभ बच्चन उनके बेटे हैं. हरिवंश राय का जन्म 27 नवम्बर को  साल 1907 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था. उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. उसके बाद विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे. साहित्य के कारण राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे.
हरिवंश राय बच्चन को सबसे अधिक प्रसिद्धि उनकी रचना ‘मधुशाला’ की वजह से मिली. यह बच्चन की दूसरी रचना थी और 1935 में लिखी गई थी. इसके बाद 1936 में ‘मधुबाला’ और 1937 में ‘मधुकलश’ प्रकाशित हुई. इन तीनों रचनाओं ने हिंदी साहित्य में हालावाद की नींव डाली. जिसकी तर्ज पर कई और कवियों ने भी कविताएं लिखीं. यह वह दौर था जब प्रगतिवाद की नींव पड़ रही थी और छायावाद अपने अंतिम दौर में था.

कभी शराब नहीं पीने वाले हरिवंश राय ने लिखी ‘मधुशाला’

ये तो गौरतलब है कि हरिवंश राय बच्चन कि सबसे प्रसिद्ध कविता ‘मधुशाला’ थी. 1935 में जब ये कविता लिखी तब काफी विवाद भी हुए. तब देश में गांधी का दौर था. अमिताभ बच्चन ‘आजतक’ के एक कार्यक्रम में बताते है कि तब वो इस विवाद के बारे में गाँधी जी से मिले. और गांधी जी ने कविता सुनी और अपनी स्वीकृति दे दी. और सबसे रोचक बात ये थी कि उन्होंने कभी शराब को छुआ भी नहीं.

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ –
‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला.

भांजे को 30,000 में बेच दिया था मकान

साल 1984-85 में डॉ. बच्चन ने अपने इस पैतृक आवास को सिर्फ 30,000 में भांजे रामचंद्र को बेच दिया था. लेकिन आज भी उनके बेटे अमिताभ और परिवार के सदस्य इस घर को देखने वाले आते हैं.
रामचंद्र के 4 बेटों में बंटवारे के बाद मकान का तो जैसे अस्तित्व नहीं के बराबर रह गया. लेकिन डॉ. हरिवंश राय बच्चन के भांजे के बेटे अनूप रामचंदर ने उनके कमरे को आज भी पहले की तरह ही रखा है. उनकी यादगार चीजें संभाल कर रखी हैं.

हरिवंश राय बच्चन ने शुरू करवाई मानदेय की परिपाटी

इलाहाबाद के चर्चित कवि यश मालवीय दैनिक भास्कर में दिए साक्षात्कार में बताते हैं, कि ”पहली काव्य रचना ‘मधुशाला’ के जरिए बच्चन साहब नामी कवि बन गए थे. उन्होंने ही कवियों के लिए मानदेय की परिपाटी की शुरुआत करवाई।”
”पहले कवियों का सम्मेलन तो जरूर होता था, लेकिन उन्हें कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाता था।”
”साल 1954 में इलाहाबाद के पुराने शहर जानसेनगंज में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसमें डॉ. हरिवंश राय बच्चन, गोपीकृष्ण गोपेश और उमाकांत मालवीय सरीखे कई लोकप्रिय कवि बुलाए गए थे।”
”प्रोग्राम शाम को शुरू होना था। सभी कवि सम्मेलन में पहुंचे। हरिवंश राय बच्चन जी ने पहुंचते ही काव्य पाठ करने से मना कर दिया।”
उनका कहना था- ”जब टेंट-माइक वाले को पैसे मिलते हैं तो कवि को क्यों नहीं? जबकि कवियों की वजह से ही महफिल सजती है, वरना कवि सम्मलेन का क्या औचित्य?”
”कवि सम्मेलन खत्म होने के बाद बच्चन साहब को आयोजक मंडल ने 101 रुपए दिए. वहीं, उनके दोस्त कवि गोपीकृष्ण को 51 रुपए और उमाकांत मालवीय को 21 रुपए मानदेय मिला.”

बच्चन साहब के दिल में था इलाहाबाद

इलाहाबाद के जाने-माने कवि यश मालवीय बताते हैं, ”हरिवंश राय बच्चन के हृदय में इलाहाबाद बसता था. अपनी आत्मकथा ‘बसेरे से दूर’ में उन्होंने यहां के लोगों को याद भी किया है.”
”यहां उनका दरबार रानीमंडी स्थित बच्चाजी की कोठी पर लगता था. इसमें धर्मवीर भारती, महादेवी वर्मा, गोपीकृष्ण गोपेश, उमाकांत मालवीय, केशवचंद्र वर्मा, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, जगदीश गुप्त और अज्ञेय जैसे रचनाकार जुटते थे.”
”मैं बाल श्रोता के रूप में उसमें शामिल होता था, कभी-कभी उनके दोनों बेटे अमिताभ और अजिताभ बच्चन भी उसमें आ जाते थे. इसके अलावा महादेवी वर्मा के अशोकनगर स्थित आवास पर भी ये लोग जुटते थे.”

रचनाएं

”बच्चन  ने अपनी ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’, ‘बच्चे प्रत्याशा में होंगे’, ‘नीणों से झांक रहे होंगे’ और ‘पक्षियों पर भाता’ रचनाओं से खूब वाहवाही बटोरी थी.  ”उस दौरान बच्चन साहब की ‘मधुशाला’ से लेकर ‘मधुकलश’, ‘मधुबाला’ जैसी काव्य रचनाएं धूम मचा रही थी.  हरिवंश राय की ‘तेरा हार’, ‘मधुशाला’, ‘आत्म परिचय’, ‘सतरंगिनी’, ‘खादी के फूल’, ‘बंगाल का काव्य’, ‘बुद्ध और नाचघर’, ‘बहुत दिन बीते’, ‘जाल समेटा’, ‘पंत के सौ पत्र’ जैसी कई अन्य प्रमुख रचनाएं हैं.

सम्मान और पुरस्कार

साल 1968 में हरिवंश राय की रचना ‘दो चट्टाने’ को हिन्दी कविता के ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है. इसी साल उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. साल 1976 में भारत सरकार ने साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया.