असदुद्दीन ओवैसी जब जब बोलते हैं तो विवाद होता है,उनका विवादों से साथ पुराना नाता है,लेकिन अभी फिलहाल विवाद हुआ है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को 2013 के दंगों की याद दिलाते हुए खूब लताड़ा है। सपा के सम्भल लोकसभा के सांसद वाले बयान पर दरअसल ये विवाद हुआ है।
हुआ यूँ है कि 15 अगस्त को जब से तालिबानियों ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया था तब से तमाम देशों की इस पर प्रतिक्रिया आ रही है। सम्भल लोकसभा से सांसद शफीकुर्रहमान बर्क़ ने भी इस पर बयान दिया है जिस पर बवाल हो रहा है। बवाल ये हो रहा है कि उन्होंने तालिबानियों की तुलना भारत की आज़ादी के संघर्ष करने वालो से कर दी है।
बस इतना कहना था कि उन पर मुकदमा दर्ज हो गया है वो भी देशद्रोह का मुकदमा, जिससे तालिबानी मुद्दे पर बोलने वाले तमाम नेताओं को एक ही लाइन में रखा जा रहा है। ओवैसी साहब ने इस पर जवाब दे दिया है उनका कहना है कि “उन्होंने क्या कहा मुझे उससे कोई मतलब नहीं. लेकिन, उनके ऊपर गद्दारी का इल्जाम लगा दिया. ,जबकि इस कानून में पंडित नेहरू गांधी, सेठ गोविंद दास इन लोगों ने गद्दारी का चार्ज निकालने की वकालत की थी”
ओवैसी यही नहीं रुके हैं,आगे और भी बोले हैं ,अब उन्होंने सपा सुप्रीमों को भी इस विवाद खींच लिया है उनका कहना है कि जो शख्स अलीगढ़ विश्वविद्यालय को “दहशतगर्दी” का अड्डा कहने वाले को गले लगाता हो और उनकी सरकार में 50 हज़ार मुसलमानों को घर छोड़ना पड़ा हो”
बस इतना सब कुछ बोल कर ओवैसी ने माहौल बना दिया है जिसका लाभ और नुक़सान ज़रूर होगा। क्यूंकि और जगह चुनाव बाद में शुरू होता है लेकिन यूपी में ये गिनती 6 महीना पहले से शुरू हो जाती है। इसलिए अब से जो भी कहा जायेगा उसे गिना ही जाएगा।
बहरहाल… अखिलेश यादव ने इस पर अभो तक कोई टिप्पणी नहीं कि है,और शायद वो करें भी नहीं उसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण हैं ओवैसी को लेकर राह तलाशना। क्यूंकि वो ये समझते हैं कि बिहार में क्या हुआ था और यूपी में भी ऐसा हो तो ये नुक़सान करेगा ही करेगा।