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निपाह वायरस – कारण, लक्षण व उपाय

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जैसे जैसे देश औद्योगिकरण और विज्ञान में तरक्की कर रहा है वैसे वैसे नई बीमारियां भी सामने आती जा रही है हाल में निपाह नाम का एक वायरस अस्तित्व में आया है जिसने सबको इसे लेकर चिंता में डाल दिया है क्योंकि आते के साथ ही यह 10 से ज़्यादा लोगो को अपना शिकार बना चुका है।
केरल के पोरम्बार इलाके के एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत का कारण निपाह वायरस को बताया जा रहा है जिसको लेकर केरल की सरकार घबराहट में आ गई और एक विशेषज्ञों की टीम को जांच के लिए भेज दिया।
निपाह वायरस एक जुनेटिक वायरस है जो जानवरो से इंसानों में फैलता है यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है सुअरों में यह गंभीर बीमारी का कारण बनता है।
WHO की रिपोर्ट के मुताबिक निपाह वायरस इंफेक्शन टेरोपस जीनस नामक एक खास नस्ल के चमकादड से मिला है 1995 में इसके लक्षण सुअरों मैं 2004 में बांग्लादेश के एक व्यक्ति में देखने को मिले थे।
जिस पेड़ पर चमकादड़ रहते है उसके फलों को दूषित करते है वो फल जानवर या व्यक्ति के खाने से निपाह वायरस इंफेक्शन होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार चमकादड़बके मूत्र या लार से दूषित फल या सब्जी संक्रमण का सबसे संभावित स्त्रोत है।
लेकिन केरल के पोरम्बार गांव में चमकादड़ व सुअरों के  खून की जांच में निपाह वायरस नही पाये गया इसके बाद यह गुत्थी और उलझ गई कि यह वायरस आया कहा से।
वर्तमान समय मे निपाह वायरस के संक्रमण के लिए कोई दवाई या टिका नहीं है गंभीर श्वसन व तांत्रिक संबंधी जटिलताओं का इलाज करने के लिए गहन सहायक देखभाल की सिफारिश की जाती है।

लक्षण :-

मनुष्य में एनआईवी संक्रमण एन्सेफलाइटिस से जुड़ा हुआ है इसमें पीड़ित के मस्तिष्क में सूजन रहती है, मरीज की सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है।मन बेचैन रहता है, बुखार, उल्टी,  चक्कर आना ,बदली चेतना,  सर दर्द व मानसिक भ्रम पैदा होने जैसी स्तिथि होती है। निपाह का रोगी 24 से 48 घंटो के भीतर कोमा में जा सकता है।
कुछ मामलों में मरीज के फेफड़ों और श्वास नलीयों में इंफेक्शन भी देखा गया है, इससे मरीज की मौत भी ही सकती है।

बचाव :- 

इस वायरस का अभी तक कोई सटीक उपचार नहीं है इसकी कुछ एलोपैथी दवाइयां है रीवाबाएरीन जो अधिक कारगर सिद्ध नही हुई है यह एक छूत की बीमारी है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है।
इससे बचने के लिए अगर नज़दीक में कोई वायरस से पीड़ित व्यक्ति है तो उससे दूरी बनाए रखें, सुअर व चमकादड़ के संपर्क में न आएं।
कच्चे खजूर का रस न पिएं व नीचे गिरे हुए फल न खाएं। फलों को धोकर खाएं, ताज़ा एकत्रित रस को इस्तेमाल से पहले उबाल लेना चाहिए।
इससे बचाव का सबसे कारगर तरीका लोगो मे इसको लेकर जागरूकता बढ़ाना , उन्हें  इसको लेकर शिक्षित करना है ताकि संक्रमण को कम किया जा सके।

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