भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी का 19 मई को 105वां जन्मदिवस है.उनका जन्म 19 मई, 1913 को इल्लुर ग्राम, अनंतपुर ज़िले में हुआ था जो आंध्र प्रदेश में है. आंध्र प्रदेश के कृषक परिवार में जन्मे नीलम संजीव रेड्डी की छवि कवि, अनुभवी राजनेता एवं कुशल प्रशासक के रूप में थी.इनके पिता का नाम नीलम चिनप्पा रेड्डी था जो कांग्रेस पार्टी के काफ़ी पुराने कार्यकर्ता और प्रसिद्ध नेता टी. प्रकाशम के साथी थे.
नीलम संजीव रेड्डी की प्राथमिक शिक्षा ‘थियोसोफिकल हाई स्कूल’ अड़यार, मद्रास में सम्पन्न हुई.आगे की शिक्षा आर्ट्स कॉलेज, अनंतपुर में प्राप्त की.महात्मा गांधी के आह्वान पर जब लाखों युवा पढ़ाई और नौकरी का त्याग कर स्वाधीनता संग्राम में जुड़ रहे थे, तभी नीलम संजीव रेड्डी मात्र 18 वर्ष की उम्र में ही इस आंदोलन में कूद पड़े थे. इन्होंने भी पढ़ाई छोड़ दी थी.
संजीव रेड्डी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया था.यह उस समय आकर्षण का केन्द्र बने, जब उन्होंने विद्यार्थी जीवन में सत्याग्रह किया था. वह युवा कांग्रेस के सदस्य थे. उन्होंने कई राष्ट्रवादी कार्यक्रमों में हिस्सेदारी भी की थी. इस दौरान इन्हें कई बार जेल की सज़ा भी काटनी पड़ी.
राजनीतिक जीवन
बीस वर्ष की उम्र में ही नीलम संजीव रेड्डी काफ़ी सक्रिय हो चुके थे.राज्य की राजनीति में भी एक कुशल प्रशासक के तौर पर इनका प्रभाव अनुभव किया जाने लगा था.भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल होने के बाद उनका राजनीतिक करियर लंबा चला. वह इस दौरान कई अलग अलग पदों पर रहे. जब तेलंगाना को आंध्र में मिला कर आंध्रप्रदेश बनाया गया था, उस समय नीलम संजीव रेड्डी इसके पहले मुख्यमंत्री बने थे. 1956 से 1960 तक. इसके बाद दूसरी बार भी वह ही इस प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए.
इसके बाद वे दो बार लोकसभा के स्पीकर के पद पर रहे. 25 जुलाई 1977 को वह भारत के छठे राष्ट्रपति बने. चार साल के अंदर उन्होंने तीन सरकारें देखीं. उनके राष्ट्रपति काल में मोरारजी देसाई, चरण सिंह और फिर इंदिरा गांधी की सरकार रही. 1982 में उनका कार्यकाल पूरा हुआ. इसके बाद जैल सिंह राष्ट्रपति बने.
नीलम संजीव रेड्डी भारत के ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्हें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होते हुए प्रथम बार विफलता प्राप्त हुई और दूसरी बार उम्मीदवार बनाए जाने पर राष्ट्रपति निर्वाचित हुए.प्रथम बार इन्हें वी. वी. गिरि के कारण बहुत कम अंतर से हार स्वीकार करनी पड़ी थी.तब वे कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए गए थे और अप्रत्याशित रूप से हार गए. दूसरी बार गैर कांग्रेसियों ने इन्हें प्रत्याशी बनाया और यह विजयी हुए.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब वी. वी. गिरि को राष्ट्रपति चुनाव जीतने में सफलता प्रदान कराई, तब यह लगा था कि नीलम संजीव रेड्डी ने एक ऐसा मौक़ा गंवा दिया है, जो अब उनकी ज़िन्दगी में कभी नहीं आएगा. लेकिन राजनीति के पण्डितों के अनुमान और दावे धरे रह गए. उनकी किस्मत ने करवट बदली और नीलम संजीव रेड्डी जैसे हारे हुए योद्धा को विजयी योद्धा के रूप में परिवर्तित कर दिया.वे भारतीय राजनीति के ऐसे अध्याय बनकर सामने आए, जो अनिश्चितता का प्रतिनिधित्व करते नज़र आते हैं.संजीव रेड्डी भारत के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे, जो निर्विरोध निर्वाचित हुए.
अपने विदाई भाषण में उन्होंने कार्यकाल के दौरान रही तीनों सरकारों की आलोचना की और कहा कि वे देश की जनता के हालात सुधारने में पूरी तरह विफल रहे.उन्होंने अपील की कि मजबूत विपक्ष को खड़ा होना चाहिए ताकि सरकार के कुशासन को काबू में किया जा सके.1 जून 1996 को निमोनिया की बीमारी से उनका निधन हो गया.
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