पंजाबी भाषा के मशहूर उपन्यासकार नानक सिंह का जन्म 4 जुलाई 1897 में हुआ था, तथा 18 दिसंबर 1971 को उनकी मृत्यु हुई. वह एक लेखक और स्वंत्रता संग्राम सेनानी थे. अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध लिखने की वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा. अपनी साहित्यिक रचनाओं के लिए उन्होंने कई सम्मान प्राप्त किये थे.
वह झेलम जिले (अब पाकिस्तान में) में एक गरीब पंजाबी हिंदू परिवार में पैदा उनका हंस राज रखा गया था, सिख धर्म को अपनाने के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर नानक सिंह कर दिया था। गरीबी के कारण, उन्हें औपचारिक शिक्षा नहीं मिली। उन्होंने कम उम्र में ही अपने लिखना शुर कर दिया था, उन्हों शुरुआत में ऐतिहासिक घटनाओं पर छंद लिखे. बाद में, नानक सिंह ने भक्ति गीत लिखना शुरू कर दिया, जिससे सिखों को गुरुद्वारा सुधार आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया गया। 1 9 18 में, उन्होंने अपनी पहली पुस्तक सतगुरु मेहमा प्रकाशित की जिसमें सिख गुरुओं की प्रशंसा में भजन शामिल थे, इस किताब को उनकी पहली व्यावसायिक सफलता माना जाता है।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
13 अप्रैल 1919 को, ब्रिटिश सैनिकों ने अमृतसर में बैसाखी (पंजाबी नव वर्ष) के अवसर में जलियांवाला बाग़ में 379 शांतिपूर्ण रैली प्रतिभागियों को गोली मारकर हत्या कर दी, जिसे जालियावाला बाग नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है। नानक सिंह रैली में उपस्थित थे जिसमें उनके दो दोस्त मारे गए थे। इस घटना ने नानक सिंह को खूनी वैशाखी (पंजाबी नव वर्ष) नाम से महाकाव्य लिखने के लिए प्रेरित किया, जिसमें कविताओं के ज़रिये ब्रिटिश शासन पर व्यंग किया गया। ब्रिटिश सरकार अपने उत्तेजक लेखन के बारे में बेहद चिंतित हो गई और पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया।
नानक सिंह ने अकाली आंदोलन से जुड़कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। जिसके बाद उन्होंने अकाली अखबार के संपादन का कार्य शुरू किया। ब्रिटिश सरकार ने उनकी गतिविधियों को संज्ञान में लेना शुरू किया और नानक सिंह को गैरकानूनी राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने का आरोप लगाकर लाहौर जेल भेज दिया गया। उन्होंने अपनी दूसरी किताब ज़ख़्मी दिल में “गुरु का बाग मोर्चा” में शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान सिखों पर अंग्रेजों द्वारा उत्पीड़न का वर्णन किया।जेल में रहते हुए नानक सिंह ने उपन्यास लेखन का कार्य भी किया। उन्होंने कई उपन्यास की रचना की. उन्हें 1960 में पंजाब के उच्चतम साहित्यिक पुरस्कार समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
उनके महान ऐतिहासिक उपन्यास, इक मियान दो तलवारन ने उन्हें 1962 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार दिलाया।
सफल लेखक
उन्होंने 1 9 42 में उपन्यास “पावित्र पापी” लिखा, यह उपन्यास बेहद लोकप्रिय हुआ. कई साहित्यकारों ने उनके इस उपन्यास की प्रशंसा की. इस उपन्यास का हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद किया गया. 1968 में प्रसिद्ध फिल्मकार बलराज साहनी ने इसी उपन्यास पर आधारित एक फिल्म “पवित्र पापी” का निर्माण किया. जिसने काफी सफ़लता हासिल की, ज्ञात होकि बलराज साहनी उनके बड़े प्रशंसकों में गिने जाते थे. वर्तमान में इसी उपन्यास को पंजाबी भाषा में 28 वी बार मुद्रित (छापा ) जा रहा है. इससे इस उपन्यास की लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. उनके पोते, नवदीप सिंह सूरी ने पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद (सेंटली सिनर, Saintly Sinner ) के नाम से किया है।
चंडीगढ़ के मशहूर अंग्रेज़ी अखबार “द ट्रिब्यून” के अनुसार – “नानक सिंह तीस से चालीस वर्षों तक भारत में सबसे ज़्यादा बेचे जाने वाले( बेस्ट सेलिंग नॉवेलिस्ट) उपन्यासकार थे। उन्होंने उपन्यासों और लघु कथाओं के संग्रह सहित 50 से अधिक किताबें लिखीं। उन्होंने विभिन्न साहित्यिक शैलियों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पंजाबी कथा में उनका सबसे बड़ा योगदान इसकी धर्मनिरपेक्षता है। उन्होंने समकालीन जीवन से घटनाओं को चित्रित किया, जो रोमांटिक आदर्शवाद के पर्दे से घिरी हुई थीं।
अपने उपन्यास चित्त लाहू (व्हाइट ब्लड) में, नानक सिंह लिखते हैं, “ऐसा लगता है कि हमारे समाज के जीवनकाल में, (खून की ) लाल कणिकाएं गायब हो गई हैं।” 2011 में, नानक सिंह के पोते, दिलराज सिंह सूरी ने चित्त लहु का White Blood शीर्षक से अंग्रेजी में अनुवाद किया। वहीं इस किताब का राशियाँ भाषा में भी अनुवाद किया गया, इस कार्य को महान उपन्यासकार लियो टॉलस्टॉय की पोती नताशा टॉलस्टॉय ने अंजाम दिया. उन्होंने अमृतसर में नानक सिंह के घर का दौरा किया ताकि वे उन्हें अनुवादित उपन्यास की पहली प्रतिलिपि प्रस्तुत कर सकें।
रचनाएं
काव्य
- सीहरी हंस राज
- सतिगुर महिमा
- ज़खमी दिल
कहानी संग्रह
- हंझूआं दे हार
- ठंडीआं छावां
- सध्धरां दे हार
- सुनहिरी जिलद
- वड्डा डाकटर ते होर कहाणीआं
- तास दी आदत
- तसवीर दे दोवें पासे
- भूआ
- सवरग ते उस दे वारस
उपन्यास
- मिध्धे होए फुल्ल
- आसतक नासतक
- आदमखोर
- अध्ध खिड़िआ फुल्ल
- अग्ग दी खेड
- अणसीते ज़ख़म
- बी.ए.पास
- बंजर
- चड़्हदी कला
- छलावा
- चित्तरकार
- चिट्टा लहू
- चौड़ चानण
- धुंदले परछावें
- दूर किनारा
- फौलादी फुल्ल
- फरांस दा डाकू (अनुवाद)
- गगन दमामा बाजिओ
- गंगा जली विच्च शराब
- गरीब दी दुनीआं
- इक मिआन दो तलवारां
- जीवन संगराम
- कागतां दी बेड़ी
- काल चक्कर
- कटी होई पतंग
- कल्लो
- ख़ून दे सोहले
- कोई हरिआ बूट रहिओ री
- लंमा पैंडा
- लव मैरिज
- मंझधार
- मतरेई मां
- मिठ्ठा महुरा
- नासूर
- पाप दी खट्टी
- प्राशचित
- पथ्थर दे खंभ
- पथ्थर कांबा (अनुवाद)
- पतझड़ दे पंछी (अनुवाद)
- पवित्तर पापी
- पिआर दा देवता
- पिआर दी दुनीआं
- प्रेम संगीत
- पुजारी
- रब्ब आपणे असली रूप विच्च
- रजनी
- साड़्हसती
- संगम
- सरापीआं रूहां
- सूलां दी सेज (अनुवाद)
- सुमन कांता
- सुपनिआं दी कबर
- टुट्टे खंभ
- टुट्टी वीणा
- वर नहीं सराप
- विशवासघात
होर
- मेरी दुनीआं
- मेरी जीवन कहाणी (आत्मकथा)
- मेरीआं सदीवी यादां