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आखिर मुसलमान कब तक इस तरह के भड़काऊ बयानबहादुरों के जाल में फंसे रहेंगे ?

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दिसम्बर के शुरू होते ही ये दो पंक्तियाँ कई लोगों की वाल पर दिखीं- ” बाबरी मस्जिद हम शर्मिंदा हैं
तेरे क़ातिल अब तक ज़िंदा हैं “.
मेरी समझ से बाहर है कि ये जो ‘शर्मिंदा’ लोग हैं ये चाहते क्या हैं। बाबरी मस्जिद तोड़ने वालों ने बेशक देश के सीने पर एक ऐसा ज़ख्म दिया है जिसका भरना आसान नहीं है। हिन्दू मुस्लिम के बीच की खाई इस एक इमारत के गिरने से इतनी गहरी होती चली गई कि जिसका फ़ायदा उठा कर सांप्रदायिक ताकतें दिन ब दिन मज़बूत होती गई और धर्म का मुद्दा देश की राजनीति के केंद्र में आ गया।
इसलिए बाबरी की लड़ाई तो ज़रूरी है , लेकिन इस तरह की भड़काऊ बातें और दो कौड़ी की शायरी कर के ये लोग उस खाई को और चौड़ी ही कर रहे हैं जो साम्प्रदायिक ताकतों के लिए खाद पानी का काम करती है। जो लोग बाबरी के नाम पर किसी शांतिपूर्ण प्रदर्शन में जाने के लिए अपना एक दिन का काम तक नहीं छोड़ सकते , वही बाबरी के कातिलों के ”जिंदा” होने पर शर्मिंदा हैं।
आखिर मुसलमान कब तक इस तरह के भड़काऊ बयानबहादुरों के जाल में फंसे रहेंगे। शायर, मुशायरों में अदब के नाम पर बाबरी का मर्सिया पढ़ कर , मोदी और बीजेपी को गालियाँ बक कर और चुटकुले सुना कर लाखों कमा कर निकल जाते हैं, और ऐसे मुशायरे उर्दू अदब के ताबूत में एक कील और ठोंक जाते हैं , लेकिन मुस्लिम नौजवान ऐसे जमूरों को अपना रोल मॉडल मानने लगते हैं।
हाँ बाबरी अहम है , बाबरी की लिए लड़ाई भी लड़नी होगी ,और लोग लड़ भी रहे हैं , लेकिन वो लड़ाई क़ानूनी लड़ाई ही होगी , बाक़ी बाबरी के नाम पर अपनी रोटी सेंकने वालों और उसकी गिरी हुई ईंटों से अपने पक्के मकान बनाने वालों को पहचानिए और उन से बचिए।
बाबरी मस्जिद न सिर्फ एक इबाबतगाह है बल्कि वह भारतीय लोकतंत्र, संविधान, न्यायपालिका तथा समतामूलक समाज के बतौर भारत का सर्वोच्च प्रतिनिधित्वकर्ता स्थल भी है। बाबरी नहीं तो ये सारे शब्द बेईमानी होंगे। विश्व जब भी हमारी तरफ देखेगा तो उसे बाबरी विध्वंस दिखाई देगा जो कि एक कलंक की तरह हमारा पीछा तब तक करता रहेगा जब तक की न्याय पूर्णतय: स्थापित न हो जाए। न्याय क्या होगा? न्याय यही कि छह दिसंबर 1992 से पहले की स्थिती बहाल की जाए।
यही न्याय है, वरना कल को कोई भी समूह या संगठन भीड़ लेकर आपका घर तोड़ सकता है और वहां कब्जा जमा कर बैठ जाएगा, क्योंकि वे संख्या में भारी होंगे और ताकतवर भी। बाबरी विध्वंस किसी एक धर्म के धार्मिक स्थल को तोड़ने का मामला नहीं है, यह भारतीय सभ्यता में निहित बंधुत्व, अपनत्व और वासुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत के विध्वंस का मामला है। मुझे पूरा विश्वास है भारतीय न्यायिक प्रणाली पर, वह ज़रूर बाबरी मस्जिद के साथ हुए अन्याय पर न्याय करेगी।