भारतीय राजनीति में वैसे तो बहुत निराले काम होते हैं मगर राजनीति की डेब्यू की उम्र नहीं होती है और न ही रिटायरमेंट की, इसी वजह से 70 के पार वाले नेता खुद को “एक्सपीरियंस” है कह कर अहमियत दिलाते रहते हैं,और टिकट भी पा ही लेते हैं,लेकिन “रिटायर” नहीं होते हैं। क्यों ? इसका जवाब ढूंढने के लिए रिसर्च होनी चाहिए।
बहरहाल अभी अभी एक खबर आई है जिसने बहुत सो को चौंका दिया है,हुआ ये है कि बंगाल की आसनसोल लोकसभा से लगातार दो बार सांसद और पिछले महीने तक केंद्रीय मंत्रालय में मंत्री रहे बाबुल सुप्रियो ने राजनीति से संन्यास ले लिया है,जी हां अपनी मर्ज़ी से, महज़ 50 वर्षीय बाबुल (Babul Supriyo) ने ये फैसला ले कर सबको चौंका दिया है।
कैसे लिया सन्यास?
अच्छा सवाल है ,अब जवाब सुन लीजिए। फेसबुक पर एक पोस्ट लिख कर ,उन्होनें अपनी संसदीय सीट से और राजनीति से अलविदा कह दिया है,सोशल मीडिया का ज़माना है तो वो क्यों पीछे रहें।
क्या लिखा है उन्होंने पढ़ लीजिये- “मैं उनका आभारी हूं कि उन्होंने मुझे कई मायनों में प्रेरित किया है। मैं उनके प्यार को कभी नहीं भूलूंगा।” 2014 में बीजेपी में शामिल होने के बाद दो बार आसनसोल से सांसद बने बाबुल ने आगे लिखा, ”सवाल उठेगा कि मैंने राजनीति क्यों छोड़ी? मंत्रालय के जाने से इनका कोई लेना देना है क्या? हां वह है- कुछ लोगों के पास होना चाहिए! चिंता नहीं करना चाहते हैं तो अगर वह सवाल का जवाब देगी तो सही होगा- इससे मुझे भी शांति मिलेगी।”
क्यों है ये चौंकाने वाला?
दरअसल बीते कुछ महीनों में बंगाल चुनाव का परिणाम और नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्रिमंडल में भारी फेरबदल हुआ है। पहले बंगाल चुनावों में भारी भरकम तैयारियां और ज़ोर शोर के बावजूद भाजपा चुनाव हार गई और बाबुल सुप्रियो खुद भी विधानसभा चुनाव हार गए ( हां इसलिए क्योंकि सांसद रहते हुए ही उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा था)जिसके बाद पार्टी के भीतर बहुत सारे सवाल उठने लगे।
दूसरी बात,मंत्रिमंडल में फ़ेरबदल के बाद कई “माननीय” जी को अपनी गद्दी गंवानी पड़ी और इस्तीफा देना पड़ा,बाबुल सुप्रियो उन्हीं में से एक थे। अब इस्तीफे के बाद से ही कई बार उनके तृणमूल कांग्रेस जॉइन करने की खबरें आ रही थी। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ और वो हुआ जो किसी ने नहीं सोचा था।
क्या है इस रिटायरमेंट के मायने?
असल में बाबुल सुप्रियो को बहुत शोर शराबे के साथ पार्टी में लाया गया था, क्यूंकि भाजपा के सबसे बड़े विरोधी पार्टी तृणमूल के ख़िलाफ़ उनको चेहरा रखा जाना था।
बाबुल सुप्रियो सेलिब्रिटी थे, उनका नाम जाना पहचाना था और जनता में लोकप्रिय भी थे,भाजपा इसी बात को भुनाना चाहती थी और ऐसा हुआ भी था।
बाबुल ने भी खूब मेहनत की और लोकसभा चुनाव जीत गए, पार्टी ने चुनावों के मद्देनजर उन्हें मंत्री (राज्य मंत्री) बना दिया ताकि बंगाल में एक मैसेज जाए। जो चुनावों में माहौल बना सके।
लेकिन इसके उलट हुआ भाजपा बुरी तरह हारी,लेकिन वो मंत्री बने रहें।अब आया दूसरा चुनाव और बाबुल फिर से जीत कर लोकसभा पहुंच गए,लेकिन बंगाल में 2021 फिर से भाजपा हारी।
अब जब हार हुई तो सवाल तो उठने ही थे,और उसमें बाबुल सुप्रियो की कुर्सी चली गयी तभी से एक अजीब सी एक शांति थी,अब असका ये परिणाम आया है।