नज़रिया – मोदी अपने कार्यकाल के सबसे कमज़ोर दौर में आ चुके हैं

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पिछले चैबीस घंटों के घटनाक्रम आने वाले देश की राजनीति में भूचाल ला सकते हैं. एक के बाद एक तीन घटनायें ऐसी हुई है जिसकी आंच से मोदी आसानी से निकल नहीं पायेंगे.
सबसे पहले अरुण शौरी ने राफ़ेल पर मोदी को अकेले ज़िम्मेदार ठहराया है. कल की प्रेस कांफ़्रेंस में प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और यशंवत सिंहा का सीधा इशारा था कि मोदी और अनिल अंबानी के बीच में और कोई नहीं था और राफ़ेल की डील बदलने का फ़ैसला अकेले मोदी का ही था. न एयरफ़ोर्स, न कैबिनेट और न ही रक्षा मंत्री राफ़ेल डील को बदले जाने और अनिल अंबानी की एंट्री के बारे में कुछ भी जानते थे.
पूर्व रिज़र्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने संसदीय समिति को दिये अपने लिखित बयान में सीधे प्रधानमंत्री की तरफ़ इशारा किया है कि उन्होने बड़े घोटालेबाजों के नाम प्रधानमंत्री कार्यालय भेजे थे पर कोई कार्यवाही नहीं हुई. मेहुल चौकसी की प्रधानमंत्री निवास में मौजूदगी सब देख चुके है और मोदी के उससे निजी संबंध भी जब मोदी ने सार्वजनिक तौर पर कहा था “मेहुल भाई यहां बैठे हैं”.
अब लंदन से विजय माल्या का बयान आया है कि भारत छोड़ने से पहले वो जेटली से मिले थे और कर्ज को निबटाने का प्रस्ताव दिया था.
इन तीन कहानियों में हर दिन नयी परते उधड़ेंगी और मोदी की राजनीतिक स्थिति को लगातार कमज़ोर करेंगी.
आर्थिक मोर्चे और तेल की कीमते कम करने में सरकार पूरी तरह से विफ़ल है और इससे निकल पाना अब मुश्किल हो गया है. विदेश नीति का खोखलापन अब साफ़ तौरपर नज़र आने लगा है. भ्रष्टाचार से सीधे और व्यक्तिगत आरोपों के बाद मोदी का राजनीतिक कद हर दिन कम होता जायेगा.

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