हमेशा से भारत के पाले में रहने वाला मालदीव भी अब चीन के करीब आता दिख रहा है. राजनयिक रिश्तों से लेकर हर मुद्दे पर चीन भारत के साथ खड़ा नजर आया है. पिछले दिनों जब हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी और भारत के सुरक्षा हालात पर मालदीव ने चिंता जताई थी. भारत की विदेश नीति के लिहाज से इससे शुब संकेत नही मन जा रहा है.
मालदीव ने किया व्यापार समझौता
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मालदीव की अब्दुल यामीन सरकार ने अपने विपक्ष और अपने नागरिकों को विश्वास में लिए बिना ही चीन की राजधानी बीजिंग के साथ ‘स्वतंत्र व्यापार समझौता’ (FTA) कर लिया है. मालदीव ने बिना किसी बहस के इस समझौते पर डील फाइनल कर दी. मालदीव की संसद ने 1,000 पन्नों के एफटीए समझौते पर बुधवार को महज 30 मिनट में सत्ताधारी दल के 30 सदस्यों की मौजूदगी में मुहर लगा दी, जबकि संसद में कुुल 85 सदस्य हैं. इसके बाद विपक्ष ने सरकार को निशाने पर ले लिया है.
भारत के लिए क्यों है खतरे कि घंटी
दरअसल चीन एशिया का बॉस बनना चाहता है और चीन कि विस्तारवादी नीति किसी से छुपी नहीं है. इसी नीति के तहत चीन छोटे देशों को पहले साधता है. चीन और मालदीव के बीच कारोबार संतुलन हमेशा से चीन के पक्ष में रहा है. अंदेशा है कि एफटीए से घाटा आगे भी बढ़ता जाएगा. मालदीव में भी श्रीलंका की तरह कर्ज संकट पैदा हो सकता है. और चीन के गिरफ्त में आ जाएगा.
चीन मालदीव में अपनी नौसेना के लिए बेस बनाना चाहता है जिससे भारत की चिंता बढ़ सकती है. मालदीव चीन के समुद्री सिल्क रूट में पार्टनर बनने को राजी हो गया है. जाल में फंसाकर अगर चीन वहां अपना बेस बनाने में कामयाब होता है तो यह भारत के लिए संकट वाली स्थिति होगी। क्योंकि चीनी पनडुब्बियां भारत के बेहद पास आ जायेगी. और चीन को भारत के खिलाफ एक और रास्ता मिल जाएगा.