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मेरी दाढ़ी है, टोपी पहनता हूँ और आप जैसा ही इंसान हूँ

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मैं मुसलमान हूँ,उतना ही इंसान हूँ जितने आप है,उसी हाड़ और मांस का हूँ जिसके आप है..
हाँ मैं कुर्ता पहनता हूँ,हाँ मैं दाढ़ी रखता हूँ,लेकिन आपसे अलग नही हूँ,ज़रा भी नही हूँ…मैं दंगों में मरा हूँ,फिर भी यही डटा हूँ,
लेकिन आप समझते नही है,हां थोड़ा सा आपसे अलग खाता हूँ,जो मैं खाता हूँ आप नही खाते…मगर आप मानते ही नही…
लेकिन मैं इस बात का एहतराम करता हूँ और उसे नही खाता,जो आपकी “मां” है…मगर आप मानते ही नही है..
मगर आप मानते ही नही है,आप मुझे ‘अफवाह’ ही मे मार देते है,खत्म कर देते है,और मैं मर जाता हूँ…बार बार मर जाता हूँ…

लेकिन खत्म नही होता,क्या करूँ इसी मिट्टी में रचा हूँ,बसा हूँ,पला हूँ इससे अलग नही हो सकता…यही का हूँ,यही से हूँ…
हां मगर डर जाता हूँ,”भीड़” से,सहम जाता हूँ,लेकिन आप ही मे से बहुत से मेरे साथ खड़े होते है…तभी मैं यहां ‘महफूज़’ हूँ…
लेकिन आप समझते नही है,आप मुझे घूरते है,मेरी दाढ़ी को घूरते है,मेरे कुर्ते को घूरते है,और मुझ पर “शक” करते है…
क्यों करते है आप मुझ पर शक मैं तो “कलाम” हूँ ,देश के लिए मिसाइल बनाता हूँ,मैं तो “हमीद” हूँ ,देश के लिए शहीद हो जाता हूँ,मगर आप फिर भी ‘शक’ करते है…

आप बार बार मुझसे ‘सबूत’ मांगते है,बार मुझसे पूछते है मेरी “देशभक्ति”,और मैं बार बार बता देता हूँ,आप शायद भूल जातें है,इसलिए पूछते है..
आप मुझ पर शक क्यों करते है,आप क्यों भूल जाते है 70 साल पहले में यहां का हो चुका हूँ,आप क्यों नही मानते है…
मैं आज़ादी के सत्तर साल बाद भारत में रहना वाला ‘मुसलमान’ हूँ,जो आज भी बहुत पीछे हूँ,कमज़ोर हूँ,और फिर भी यही का हूँ,यही से हूँ,हमेशा से हूँ और हमेशा रहूंगा, मगर आप समझते ही नही है,
मैं आप ही के बीच का हूँ,हां मैं मुसलमान हूँ,हाँ मैं दिखने मे अलग हूँ,रहने में,खाने में ,पीने में आदत मैं अलग हूँ,लेकिन हूँ आप जैसे हाड़ मांस का… यक़ीन मानिये…
#वंदे_ईश्वरम
#yes_i_am_muslim….

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