देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की पुण्यतिथि 28 फरवरी को मनाई जाती है.लगातार दो कार्यकालों तक भारत के राष्ट्रपति पद का दायित्व संभालने वाले वे एकमात्र शख्स हैं. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया और कई बार जेल भी गये.संविधान की रूपरेखा तैयार करने में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. विडंबना है कि उनके नाम पर न तो कोई दिवस है और न ही उनके नाम पर कोई संस्थान.
बाबू राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के भोजपुर क्षेत्र में जीरादेई नाम के गाँव में हुआ था जो अब सिवान ज़िले में है. उनकी प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिला स्कूल से हुई थीं.महज 13 वर्ष की उम्र में उनकी शादी राजवंशी देवी से हो गयी थी. 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की और फिर कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर लॉ के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. वे हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली एवं फारसी भाषा से पूरी तरह परिचित थे.
उन्होंने एक वकील के रूप में अपने करियर की शुरुआत की. गोपाल कृष्ण गोखले से हुई एक मुलाकात के बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए बेचैन हो गए. महात्मा गांधी राजेंद्र प्रसाद की योग्यता और व्यवहार से काफ़ी प्रभावित हुए थे
राजेंद्र प्रसाद गांधीजी के मुख्य शिष्यों में से एक थे.
साल 1934 में जब बिहार में आए भूकंप और बाढ़ के दौरान रिलीफ फंड जमा करने की बारी आई तो उन्होंने जी-जान लगा दी. बताया जाता है तब उन्होंने फंड के लिए 38 लाख रुपये जुटाए. यह पैसे वायसराय के फंड से तीन गुना ज्यादा था. जबकि इससे पहले वे दो साल तक जेल में रहे थे.
बिहार भूकंप-बाढ़ पीड़ितों के लिए किए गये इस कार्य ने उन्हें एक राजनेता के तौर स्थापित कर दिया. साल 1934 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर उन्हें अध्यक्ष चुन लिया गया.
भारत की आजादी से पहले 2 दिसंबर 1946 को वे अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री बने.आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने के साथ राजेंद्र बाबू देश को देश का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया. वर्ष 1957 में वह दोबारा राष्ट्रपति चुने गए. इस तरह राष्ट्रपति पद के लिए दो बार चुने जाने वाले वह एकमात्र शख्सियत बने. 12 साल तक पद पर बने रहने के बाद 1962 में राष्ट्रपति पद से हटे.
प्रसाद भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के महान नेता थे और भारतीय संविधान के शिल्पकार भी. राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उन्होंने कई देशों की सद्भावना यात्रा की. उन्होंने एटमी युग में शांति बनाए रखने पर जोर दिया दिया था. साल 1962 में राजेंद्र बाबू को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया.
राजेंद्र प्रसाद दमा के मरीज़ थे जिसकी वजह से वे काफ़ी परेशान रहते थे. जुलाई 1961 में राजेंद्र प्रसाद गंभीर रूप से बीमार पड़ गए. डॉक्टरों ने कहा कि अब वह नहीं बचेंगे,मगर एक महीने बाद ही वे ठीक हो गए. राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने पटना के सदाक़त आश्रम में अपना जीवन गुज़ारा, उस समय उनको मात्र 1100 रुपये पेंशन मिलती थी.28 फरवरी,1963 को सदाकत आश्रम में ही उनकी मृत्यु हुई.
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को लिखने का काफ़ी शौक था, उन्होंने अपनी आत्मकथा समेत ‘बापू के कदमों में’, ‘इण्डिया डिवाइडेड’, ‘सत्याग्रह ऐट चम्पारण’, ‘गांधीजी की देन’, ‘भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र’ जैसी किताबें भी लिखी हैं.