कुछ लोगों का तर्क है कि मुसलमान गाय से दूरियां बना लें तो वे हराम मौत मरने से बच जायेंगे। मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूं, क्योंकि मुसलमान का लिंचिंग करके मारा जाना इस देश में वोट की खेती बन गया है। अगर मुसलमान गाय के बजाय भैंस का व्यापार करने लगें तो क्या गारंटी है कि भैंस के लाने ले जाने पर गौआतंकी उनकी हत्या नहीं करेंगे ? इसकी गारंटी इसलिये नहीं ली जा सकती क्योंकि भैंसा यमराज का वाहन होता है इसलिये भैंस से भी भावनाओं को जोड़कर मुसलमानों की हत्या करने का बहाना तलाश लिया जायेगा।
जिस राजस्थान में पहलू खान, अकरम, और अब अकबर खान की गाय के नाम पर हत्या हुई है उसी राजस्थान की एक ऑडियो कुछ साल पहले सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। उधर कोई राजस्थान पुलिस का अधिकारी था और इधर दिल्ली से कोई गौरक्षा दल का पदाधिकारी बोल रहा था। गौरक्षा दल का पदाधिकारी कह रहा था कि गाय का सर फलां जगह मिला है इसमें किसका हाथ है? इस पर राजस्थान पुलिस का अधिकारी कह रहा था कि गाय अपने आप मरी थी और उसे कुत्ते खींच कर ले आये थे, पदाधिकारी बोला कि कहीं इसमें किसी का हाथ तो नहीं तो उस अधिकारी ने कहा नहीं, हमने जांच कर ली है इसमें कुत्ते ही गाय को खींच लाये थे। और अगर किसी दूसरे ‘कुत्तो’ की इसमें कोई भूमिका होती तो उनका हश्र भी ऐसा ही कर देता जैसा गाय का हुआ है। फिर उस पुलिस अधिकारी ने जोर का ठहाका लगाया, और फोन काट दिया। वह पुलिस अधिकारी एक पूरे समाज को कुत्ता कह रहा था, विडंबना देखिये उन्हीं के कांधों पर समाज की रक्षा की जिम्मेदारी हैं।
जब गाय के नाम पर हत्या करने वालों को महिमामंडन किया जाता हो, उन्हें फूल मालाऐं पहनाईं जाती हों, उन्हें भगत सिंह कहकर संबोधित किया जाता हो, और अगर कोई गौआतंकी डेंगू की वजह से मर जाये तो उसकी लाश पर तिरंगा ढ़ाप दिया जाता हो ऐसे में लिंचिंग की घटनाओं पर कैसे विराम लग सकता है?
इस देश में 30 – 35 फीसदी ऐसा तबका पैदा हो गया है जो सिर्फ मुसलमानों से नफरत करता है, उसे जीएसटी की मार मंजूर है, उसे नोटबंदी की मार मंजूर है, अच्छे दिन का लॉलीपॉप मंजूर है, बेरोजगारी मंजर है, मंहगाई मंजूर है लेकिन मुसलमान मंजूर नहीं। वह वर्ग सिर्फ ओ सिर्फ मुसलमानो से नफरत करने के लिये ही तैयार किया गया है।
उसे इससे परवाह नहीं कि टीवी चैनल पर बैठकर भारतीय मुसलमानों को गालियां देने वाला तारेक फतेह पाकिस्तानी यानी शत्रू देश का नागरिक है। उसे इसकी भी परवाह नहीं कि मुसलमानो को गालियां बकने वाली तस्लीमा नसरीन वही बंग्लादेशी है जिन्हें भारत से निकालने के लिये मुहिम चलाई जाती हैं। वह खुश है कि क्योंकि तारेक फतेह मुसलमानो को गालियां दे रहा है, इसलिये उस वर्ग को पाकिस्तानी भी मंजूर है।
इज़रायल फिलिस्तीनियों को मारता है तो भारत का वही वर्ग लाशों को विकेट गिरना बताता है, कश्मीर में बाढ़ आती है तो वही वर्ग सोशल मीडिया पर कहता है कि राहत सामग्री में कंडोम भी भेज दिये जायें, ताकि सेना के जवान अपनी ‘प्यास’ बुझा सकें। ऐसा कहकर वह भारतीय सेना का भी अपमान करता है। चूंकि मरने वाले मुसलमान हैं इसलिये सब मंजूर है।
देश के गृहमंत्री कहते हैं कि सबसे खतरनाक मॉबलिंचिंग 84 के सिक्ख दंगे थे, लेकिन वे भूल जाते हैं कि गुजरात 2002 जैसी मॉबलिंचिंग भी तो इसी देश में हुई है। दरअसल मुसलमान मारने का बहाना चाहिये फिर चाहे गाय हो या भैंस कोई न कोई बहाना तलाश कर मार दिया जायेगा, क्योंकि जब फिलिस्तीनियों के मरने पर भारत में जश्न मनाया जा सकता है फिर पहलू अखलाक, पहलू, रकबर के मरने जश्न तो बनता ही है।
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