कोबरा पोस्ट के स्टिंग में नंगे हो चुके न्यूज़ चैनल्स तीन साल से लगातार हिन्दू-मुसलमान का ज़हर कमज़ोर दिमाग़ों में ठूंसते आ रहे हैं, कभी इन न्यूज़ चैनल्स ने शांति, सौहार्द और भाईचारे पर ज़ोर नहीं दिया।
जब इस ज़हर और उन्माद से आवारा भीड़ ब्रेन वाश हो गई तो इसकी परिणीति दंगों के रूप में देश में जगह जगह देखने को मिली, और अब शर्म और बेग़ैरती की बात तो ये है कि शांति, सौहार्द और भाईचारे को खत्म करने की सुपारी लेने वाले यही दलाल खुद के बोये ज़हर की फसल पकने पर सवाल कर रहे हैं.
ख़बरों के इन दलालों और सड़कों पर हिंसा का नंगा नाच नाच रहे दंगाईयों में बारीक सा फ़र्क़ यही है कि ये स्टूडियो में बैठकर दंगों की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं, ओर दंगाई सड़कों पर उसे अमलीजामा पहनाते हैं.
दंगा पीड़ितों के खून और आंसुओं में भीगी कमाई दलाली की रकम से अपने बच्चों की परवरिश करते तुम्हारी अंतरात्मा चीखती तो होगी?
या दंगा पीड़ितों के खून और आंसुओं में भीगी कमाई दलाली के पैसों से हासिल रोटियां तोड़ते तुम्हारे हाथ एक बार तो कांपते ही होंगे ?
देश में जो शुरू हुआ है और शांति, सौहार्द और भाईचारे को खत्म करने के बड़े ज़िम्मेदार तुम सब सुपारी लेने वाले दलाल हो, दंगाईयों का नंबर भी तुम्हारे बाद आता है.
अब भी वक़्त है दलाली बंद कर निष्पक्ष हो जाओ वर्ना इतिहास में इस ढहते लोकतंत्र के सबसे बड़े अपराधियों में तुम्हारा नाम शीर्ष पर होगा.