हमारे देश का संविधान गढ़ने वाले लोग इसे धर्मनिरपेक्ष घोषित कर गए। सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सामंजस्य हमारे देश के मेरुदंड बने रहे। सहिष्णुता हमारा पोषण था और विभिन्न वर्गों के लोगों के बीच पलने वाला परस्पर का सौहार्द्र हमारी मूल पूँजी थी। यह हमारी गौरव गाथा है। व्यापक विविधता के बावजूद स्नेहसिक्त एकता का अखंडित स्वर बरक़रार रखना ही हमारा धर्म भी था और हमारा पुरुषार्थ भी। इस अविच्छिन्न लोकमाला को छिन्न-भिन्न करने वाले नरराक्षस देशविरोधी कह कर पुकारे जाते रहे। हमें उन्हें समाज के अंतिम पायदान पर भी रखना गँवारा नहीं था। हम पूरी तरह उनके खिलाफ थे। आशा है आगे भी रहेंगे और अपनी इस राष्ट्रव्यापी सहिष्णुता को अक्षुण्ण बनाये रखेंगें। भारत की राजनीति के ठेकेदारों के मजबूत कंधों पर भी देश की मौलिक मर्यादा और गरिमा को बचाये रखने की जिम्मेदारी का एक बड़ा ही वजनदार जुआ धर दिया गया था। वह जुआ आज भी है और पहले भी था। फर्क सिर्फ इतना है कि आज यह बहुत भारी हो गया है और सही से नहीं उठाये जाने पर किसी के भी कंधे तोड़ सकता है। आज तक सभी इसे अपने बूते भर खींचते रहे या खींचते रहने की कोशिश में जुटे रहे। आज भी इसे खींचते ही रहना होगा वरना कुचल कर मरने की भी तैयारी दिखानी होगी।
हमारे प्रधानमंत्री ने सबका साथ और सबका विकास की बात कही थी। विकास के एजेंडे की चर्चा की थी। मगर विकास के एजेंडे पर संघ का एजेंडा भारी पड़ता मालूम होता है। धर्मनिरपेक्षता के फूल पर हिंदुत्ववाद का पत्थर पड़ता सा लग रहा है। गोरखपीठ के महंत और बहुत ही कम उम्र के ऊर्जावान सांसद जो अपने भड़काऊ भाषणों के लिए कुख्यात हैं, यूपी की गद्दी को सुशोभित करेंगे। हमें गर्व है कि हम वह देश हैं जहाँ के राजा महाबली और परमप्रतापी क्षत्रिय होते थे और विद्वान अध्येता ब्राह्मण राजा को समुचित परामर्श देने के लिए मंत्री नियुक्त होते थे। हमें गर्व है कि हमने हमेशा से ही फकीरों, साधुओं, संतों और संन्यासियों के चरणों में ताज धर दिया है। हमें गर्व है कि हमने भगवान बुद्ध और महावीर के हाथों में भिक्षापात्र देखा है और सम्राट प्रसेनजित और महाराज अशोक को धर्म की प्रवर्ज्या लेते देखा है। हमें हमारे अकबर महान पर भी गर्व है और उलमा-ए-दीन आलमगीर पर भी।
हमें निश्चित ही हमारे श्री योगी आदित्यनाथ जी पर भी गर्व होना ही चाहिए मगर हमारे योगीजी पर एकसाथ कई प्रश्न खड़े हो जाते हैं जो व्यवहार बुद्धि को पूर्ण भ्रमित कर देते हैं।
योगी जी अवैद्यनाथ जी के उत्तराधिकारी हैं जो राम मंदिर निर्माण आंदोलन की नींव के पत्थर थे। योगीजी उस गोरखपीठ के महंत भी हैं जिसकी कथित संलिप्तता उत्तर प्रदेश के विवादित ढाँचे के विध्वंस और साम्प्रदायिक विद्वेष का वातावरण तैयार करने में भी रही है। योगीजी का मुस्लिम समाज के प्रति रवैया भी सबके साथ और सबके विकास से प्रेरित नहीं लगता। धर्मान्धता की और कट्टरता की मिसाल बताते हुए कुछ लोग उन्हें नकार भी रहे हैं तो कुछ लोग जय श्री राम के नारों से उनका सम्पूर्ण स्वागत भी कर रहे हैं। हिन्दू युवा वाहिनी का प्रत्येक सैनिक संघ के एजेंडे को कार्यरूप देने के लिए ही खड़ा प्रतीत होता है। कट्टर और चरमपंथी हिंदुओं का जो वैचारिक मंडल था उसने राजनैतिक प्रक्षेत्र में मोदी जी को प्रक्षेपित करके सम्पूर्ण हिंदुत्ववाद की ठोस स्थापना करते हुए भारतवर्ष को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने को ही अपना लक्ष्य बनाया हुआ था लेकिन मोदी जी से यह हो न सका। न तो भव्य राम मंदिर की ही स्थापना हुई, न मस्जिद ही तोड़े गए और न ही मुस्लिम पाकिस्तान भेजे गए। उलटे मुस्लिमों के तुष्टीकरण की भी थोड़ी बहुत बात हुई और पीडीपी से गठबंधन भी हुआ।
अब उस विचार मंडल को मोदीजी से ज्यादा योगी जी में विश्वास दिखाई देता है। बहुमत तो अब बढ़ ही गया है। ऊपर मोदी और नीचे योगी हो ही गए हैं। बस्ती की रैली में योगीजी के भाषण में सेकुलरिज्म के खिलाफ उगले जहर से यह आशा भी बँध ही जाती है कि अब कुछ ही दिनों की देर है। देश हिन्दूराष्ट्र घोषित होगा, गाँव-गाँव में श्मसान और कब्रिस्तान बनेंगे, भव्य राम मंदिर बनेगा। इस सबके साथ ही देश में ‘सबका साथ सबका विकास’ की जगह ‘जो हिन्दू हित की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा’ और ‘हिंदुस्तान में रहना होगा तो जय श्री राम कहना होगा’ जैसे पुराने नारे फिर से बुलंद किये जायेंगे।
भारत माता की जय।
: – मणिभूषण सिंह
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