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क्या मायने हैं, राहुल के अध्यक्ष होने के ?

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Asad Shaikh

राहुल गाँधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद का नामांकन भर दिया है और उनके नजरिये से अच्छी बात ये है की किसी और ने नामांकन नही भरा है | खैर भरता भी और कोंन नामांकन अकेले ही लड़ेंगे और अकेले जीतना भी तय हो गया है | मगर राहुल ने तो जेसे काँटों का ताज अपने सिर पर पहन लिया है ये क्यूंकि कांग्रेस का अध्यक्ष बनना है और वो भी “2014” की हार के बाद उत्तर प्रदेश की हार के बाद और सिर्फ और सिर्फ छह राज्यों में बची कांग्रेस किसी एक अदद जीत पर खुश हो रही है तब और उस स्थिति में कांग्रेस का “अध्यक्ष” बनना बहुत मुश्किल और ज़िम्मेदारी का काम है लेकिन राहुल के लिए सिर्फ ये बीती हुई हार नही है कांग्रेस बल्कि अब का गुजरात चुनाव और वोटिंग के बाद तय हो चूका हिमाचल का चुनाव भी है |
लेकिन क्या “युवा” राहुल इन चीज़ों को सम्भाल पाएंगे? क्या इस अध्यक्ष पद की अहमियत को समझ पाएंगे और ये जान पाएंगे की उनका मुकाबला अपने दम पर प्रचंड बहुमत लाने वाले नरेंद्र मोदी से है? सवाल का जवाब देना बहुत जल्दी होगी लेकिन जिस तरह का रवय्या ऐसा लगता नही है या कांग्रेस ऐसा चाहती भी नही है क्यूंकि जब भी कांग्रेस हारती है तो उसका ठीकरा राहुल पर फोड़ने से बचती रही है इस चीज़ पर गौर करना भी अहम होगा |
कांग्रेस के लिए गुजरात का चुनाव बहुत बड़ा है लेकिन भाजपा के लिए उससे भी बड़ा है क्यूंकि वो वहां पर 22 साल से काबिज़ है और शायद राहुल और कांग्रेस इस चीज़ को समझ भी रहें है और इसलिए अपना चुनाव प्रचार अटैकिंग कर रहें है | लेकिन इस स्थिति को थोडा सा अलग से सोचें यानी इस बात पर गौर करें की 18 दिसम्बर को कांग्रेस हार जाएँ तो ? तब ही राहुल गाँधी की असल परीक्षा होगी क्यूंकि नेता वो होता है जो अगर जीत का नेता होता है तो हार का भी नेता होता है और राहुल को सबसे पहले यही सीखना चाहिए,अखिलेश यादव से जो बड़ी हार के बावजूद भी सपा के “नेता” है लेकिन क्या राहुल इस चीज़ को समझ पाएंगे ?
ये भी गौर करने की बात होगी ही की केसे राहुल हार को समझ पाएंगे? लेकिन जिस तरह हार मुमकिन है ठीक उसी तरह जीत भी मुमकिन है तो राहुल गाँधी के लिए ये बहुत बड़ी बात होगी राहुल गाँधी अगर गुजरात “फतह” कर पातें है तो सच में ये चुनाव राहुल गाँधी के लिए ये राष्ट्रीय तौर पर बड़े नेता बनने का मौका होगा और आगे आने वाले तमाम राज्यों के चुनावों के लिए और सबसे अहम आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एक मैदान तैयार भी कर पाएंगे क्यूंकि राहुल के उपाध्यक्ष होतें हुए ही कांग्रेस 2014 का आम चुनाव हारी है तो तो राहुल गांधी शायद अब 2019 की स्थिति और अहमियत को समझ पायें और ये समझें की आने वाला लोकसभा चुनाव क्यूँ अहम है लेकिन ये सब राहुल इर्द गिर्द ही घूमता है और क्यूंकि अब राहुल का अध्यक्ष होना तय है तो ये भी तय है की अब राहुल गाँधी बच कर नही निकल सकतें है आब उनका सीधा मुकाबला नरेंद्र मोदी से है और ये भी तय है की आने वाला चुनाव भाजपा और कांग्रेस की ही इर्द गिर्द ग़ुम रहा है |
मगर अभी तो सारी चीज़ें गुजरात पर टिकी है और कांग्रेस इस बात को समझती भी है और इसलिए इस वक़्त और इस बीच में कांग्रेस के नये अध्यक्ष का नामांकन भी कराया है तो भाजपा के लिए सब कुछ सामने सम्भालना आसान नही नजर आ रहा है क्यूंकि राहुल का जिस तरह मुकाबला सीधा भाजपा से हो रहा है तो ये भी बात सामने आ रही है की गुजरात चुनाव में टक्कर आमने सामने की है और राहुल गाँधी के लिए ये बड़ी चुनोती है बस अब देखना ये है की राहुल गाँधी किस तरह इस चीज़ को समझते है और आगे की रणनीति पर करते है और देश में नई राजनीति की शुरुआत करतें है | मगर तब तक सिर्फ चुनावों का ही मामला है जो केसे और वेसे का ही मामला हो सकता है |

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