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क्या बिहार में दंगा कराने के लिए तलवारों की सप्लाई की गई थी?

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हाल के दिनों में बिहार में सांप्रदायिक तनाव और दंगे आम बात हो गए हैं. दंगाईयों में जैसे सरकार का नियंत्रण ही न हो. यही वजह है, कि अब सवाल किये जा रहे हैं कि क्या भाजपा के साथ आने के बाद से नितीश कुमार का बिहार सुशासन नहीं जंगलराज की तरह हो गया है.
प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक जबसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल से गठबंधन तोड़ा है, उसके बाद से बिहार में 200 सांप्रदायिक घटनाएं हो चुकी हैं.
सवाल उठ रहा है, कि क्या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब सुसासन बाबु नहीं रहे. लेकिन फ़िलहाल जानते हैं कि ऐसा क्या हुआ हैं कि ये बहस ना केवल शुरू हुई है, बल्कि बहुत तेज़ी से यह चर्चा बिहार समेत पूरे भारत में तेज़ हो गयी है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार – पिछले महीने मार्च में ही ऐसी 30 सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं और ज़्यादातर घटनाएं तब हुईं जब कोई धार्मिक जुलूस मुसलमानों की आबादी वाले इलाके से गुज़रा.
राज्य के ताज़ा में जो सांप्रदायिक घटनाएँ घटित हुई हैं, उनकी शुरुआत भागलपुर से दो हफ़्ते पहले हुई जब केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के पुत्र और भाजपा के पिछले विधानसभा चुनाव में भागलपुर शहर से उम्मीदवार अरिजित शाश्वत ने नव वर्ष के पूर्व संध्या पर एक जुलूस निकाला.
ज्ञात होकि इस जुलूस के बारे में पिता-पुत्र ने माना कि ज़िला प्रशासन से उन्हें परमिट नहीं मिला था. लेकिन शाश्वत ने अपने तय कार्यक्रम से इस यात्रा को निकाला.
सरकारी वक़ील के मुताबिक़ इस जुलूस में चल रहे डीजे को एक चिप दिया गया, जिसमें उत्तेजक भड़काऊ नारे थे जिसके कारण माहौल ख़राब हुआ और एक बार फिर संप्रदायिक तनाव बढ़ा. यह गाने बेहद ही असभ्य थे.
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NDTV के अनुसार – बिहार में रामनवमी के दौरान जो कुछ भी देखने को मिला उससे एक साज़िश और तैयारी की बू आम लोगों को भी महसूस हो रही है. जैसे लोग जितनी बड़ी संख्या में तलवार, हॉकी स्टिक लेकर निकले वो बिहार की भगवान राम को पूजा करने की संस्कृति नहीं रही.
उसके अलावा सवाल ये था कि इतनी बड़ी संख्या में लोग रामनवमी का जुलूस कैसे निकालने लगे. लेकिन रविवार से घटना होने लगी. ख़ासकर औरंगाबाद शहर में. वहां प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद सोमवार को एक ही  समुदाय के लोगों की दुकान में आग लगायी गयी.
जनसत्ता के अनुसार – पिछले पांच साल के आंकड़ों की बात करें तो 2012 में 50 ऐसी घटनाएं हुई थीं. 2013 में ये आंकड़ा 112 था. 2014 में यह 110 रहा, 2015 में ये आंकड़ा बढ़कर 155 हो गया. 2016 में इसमें जबर्दस्त इजाफा देखने को मिला और बिहार में साम्प्रदायिक तनाव की घटनाएं बढ़कर 230 हो गईं. जबकि 2017 में धार्मिक टकराव की 270 घटनाएं हुईं। ये आंकड़ा पांच साल में सबसे ज्यादा है.
बिहार पुलिस मुख्यालय के सूत्रों के मुताबिक, रामनवमी जुलूस में परंपरागत हथियारों का प्रदर्शन होता रहा है. लेकिन इस साल रामनवमी के दौरान युवा बड़ी संख्या में नयी-नयी तलवारें चमकाते दिखे थे. पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि क्या किसी विशेष समूह द्वारा इन तलवारों की सप्लाई की गई थी.