क्या भाजपा की खिचड़ी दलित वोटर्स को रिझा पायेगी?

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5 राज्यों में हुए चुनाव में बीजेपी को जबरदस्त चुनावी पटकनी मिली. बीजेपी के ‘स्ट्रांग पोलिटिकल जोन’ कहे जाने वाले हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में पार्टी को कांग्रेस के हाथों चुनावी हार का सामना करना पड़ा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार अपने रैलियों में ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की बात कहते रहते हैं, लेकिन हिंदी हॉट बेल्ट में बीजेपी की अप्रत्याशित हार ने उन्हें भी सोचने पर विवश कर दिया होगा. इस हार के पीछे लोगों के बीच में कई धारणाएं है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है मध्यप्रदेश में हुए मंदसौर कांड, भीमा कोरेगांव मामला और पिछले चार साल में बढ़ रहे दलितों पर हिंसा भी एक प्रमुख वजह  है.

एनसीआरबी के आंकड़े के अनुसार-

  • 2014 के बाद से दलितों प्रति हुए हिंसा में बढ़ोतरी हुई है.
  • 2013 में दलितों के प्रति 39 हज़ार 408 हिंसक मामले सामने आए थे
  • जबकि 2014 में ये बढ़कर 47 हज़ार 64 हो गए.
  • 2013 में ही दलितों के प्रति क्राइम रेट 19.5 % था. लेकिन 2014 में ये बढ़कर 23.4% हो गया.

5 राज्यों में चुनाव सम्पन्न होने के साथ ही, बीजेपी 2019 में दलित वोटरों को रिझाने के लिए तैयारी में जुट गई है. इसकी बानगी हमें दिल्ली के रामलीला में हुए ‘समरसता रैली’ में दिख सकती है. 6 जनवरी 2019 को दिल्ली के रामलीला में बीजेपी द्वारा ‘भीम महासंगम रैली’ का आयोजन किया गया. इस रैली को ‘समरसता रैली’ का भी नाम दिया गया. जिसकी अध्यक्षता मनोज तिवारी ने किया, और साथ-साथ बीजेपी के दलित नेता सांसद उदित राज भी मौजूद रहे.
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इस चुनावी रैली में 3 लाख दलित परिवारों के घरों से चावल, दाल, मसाले आदि लाकर खिचड़ी बनाई गई और इस रैली में आए सभी लोगों को खिलाया गया. ऐसा बताया जा रहा है कुल मिलाकर 5000 किलो खिचड़ी बनाई गई है जो कि एक वर्ल्ड रिकार्ड भी है. खिचड़ी को बनाने के लिए 20 फिट की व्यास और 6 फुट गहराई वाली कड़ाही का इस्तेमाल किया गया.

दिल्ली बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा- ‘की बीजेपी के इस रैली का ध्येय ‘सामाजिक समरसता’ को बढ़ावा देना है.’

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‘सामाजिक समरसता’ ऐसा विषय है जिसे स्पष्टता से क्रियान्वित करना आज समाज और राष्ट्र की मूलभूत आवश्यकता है. इसके लिए सर्वप्रथम हमें ‘सामाजिक समरसता’ के व्यापक अर्थ को समझना ज़रूरी है. संक्षेप में इसका अर्थ है ‘समाजिक समानता’. यदि इसका व्यापक अर्थ में देखें तो इसका अर्थ है – जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता का जड़ से उन्मूलन कर लोगों में परस्पर प्रेम और सामाजिक सौहार्द बढ़ाना तथा समाज के सभी वर्णों एवं वर्गों के मध्य एकता स्थापित करना.
मनोज तिवारी ने आगे कहा- की “आज इस रैली के माध्यम से हम देश को दिखाना चाहते हैं कि हमारे यहां दलितों के साथ कोई भेद भाव नहीं होता है. आज दलित के घर से चावल-दाल आया है, और दलित ही खिचड़ी बना रहे हैं, और यहाँ सभी वर्ग, वर्ण के लोग उनके हाथों से बनी खिचड़ी को खा रहे हैं. यही तो है सामाजिक समरसता.” बीच में कांग्रेस और राहुल गांधी पर विवादित बयान देते हुए मनोज तिवारी ने कहा- कि “राहुल गांधी चोर है, और उनका खानदान भी चोर है.”

कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी से फ़ोन पर हुए बात में उन्होंने कहा – कि “ये रैली मात्र एक नौटंकी है, और ऐसी रैली करना राजनीतिक विवशता मात्र है.”

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अब आगे देखना यह दिलचस्प होगा कि बीजेपी 2019 से पहले दलित वोटबैंक को साधने के लिए और क्या-क्या पैतरें अपनाती है. इससे पहले बीते 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के नेता अलग-अलग ढंग से दलितों को साधने की कोशिश कर चुके हैं.
मध्यप्रदेश चुनाव तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी चुनाव के दौरान चौहान भी दलितों को लेकर बयान दे चुके हैं कि ‘कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता’. इधर योगी आदित्यनाथ को ‘हनुमान जी’ को दलित बताया जाना और 15 दिसम्बर को अयोध्या में हुए ‘समरसता कुंभ’ के दौरान महर्षि वाल्मीकि को अप्रत्यक्ष रूप से दलित बताना भी एक सियासी गूगली ही मानी जा रही थी.
गौरतलब हो सभी पार्टियों के अंदर दलितों को तरह-तरह से रिझाने के लिए अलग-अलग तरीके से खिचड़ी पक रही है. मगर देखना दिलचस्प होगा कि 2019 में दलित वोटरों को किसकी खिचड़ी ज्यादा पसंद आ रही है.