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नज़रिया क्या हैं "तीन तलाक़ बिल" पर मोदी सरकार की मंशा ?

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बीते कुछ दिनों पहले ही लोकसभा सत्र के समक्ष पेश किए गए मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक “तीन तलाक” को 28 दिसम्बर 2017 में ग्रह मंत्री राजनाथ सिंह की नेतृत्व में पेश किया गया जिसको न्यायालय द्वारा असंवैधानिक करार दिए जाने के बावजूद उस को लोकसभा में पेश किया गया ओर पारित कर उसको पास किया गया जिस पर संसदीय कार्यवाही कर नया कानून ला दिया गया।
अब बात ये निकलती है कि तीन तलाक जैसे अधिक संवेदनशील प्रक्रिया को एकल पक्ष से विचार करके उस पर इस तरह के बड़े फैसले दे कानूनी प्रावधानों को बनाना कुछ हजम नही होता है । जब हम एक मंजर टी ओ आई कि रिपोर्ट पर डालते है तो जिसमे बताया गया है की साल 2011 से 16 तक हिन्दू समुदाय में दहेज ओर तलाक के मामले हिन्दू विवाह एक्ट के अनुसार 3,700 है वही एक क्रिश्चियन 398 ओर जबकि मुस्लिम विवाह एक्ट के अनुसार 487 मामलो का आंकड़ा सामने आता है।
जो नवनिर्मित तलाक के कानून पर सवालिया निशान खड़ा करता है और कहता है कि आपने बेबुनियादी तोर पर ते फैसला लिया है ओर एक पूर्व निर्धारित संरचना के तहत आप निरन्तर बढ़ते जा रहे है । ये सब चिंताएं एक धर्म विशेष के साथ ही क्यों इतना सालो में देखने को मिल रही है आपका ये हिन्दू मुस्लिम विरोधी विचार की चरस आप निरन्तर जनमानस में बोते जा रहे हो जिसका नतीजा पिछले सालों में देखने को मिल रहा है।
मुस्लिम समाज के साथ इस तरह से पेश आना जिसको अपने निजेरिये से में केवल यही समझता हूं इसीलिए असमर्थन रखता हूं कि आप मुस्लिम युवाओ को तलाक के आधार पर 3 साल कज सजा के तहत जेल में भरना चाहते है और उनकी पीछे रह गयी परिवार की संख्या को बेसहारा देखना चाहते है । जिस तरह आप बुनियादी चीजो को मेनस्ट्रीम मीडिया से दूर रखने में काम्याब हुए जिसमे शिक्षा स्वास्थ्य , रोजगार , प्रशिक्षण ,और आरक्षण जैसे मुद्दव पर विकास के मुद्दे पर बात कर्म को तैयार नही दिखते है।
इसके उलट अधिकतर युवा इस तरह के सवालों के जावाब के लिए पिछले 3 सालों से इंतजार कर रहा है जहाँ करोड़ो के हिसाब से रोजगार उगाने का दावा किया गया था बल्कि उस वृद्धि दर में गिरावट का अंदाजा लगाया गया है।

अय्यूब मलिक
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