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सवाल ये है कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और रिलायंस में क्या फ़र्क़ है ?

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ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी यानि बीईआइसी में ब्रिटेन कई सांसदों की हिस्सेदारी थी। बल्कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी अपने कई प्रतिनिधियों को हाउस ऑफ काॅमंस और हाउस ऑफ लॉर्ड्स में भेजने में भी कामयाब रही। बीईआइसी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी थी जिसने धीरे-धीरे ब्रिटेन समेत कई अन्य देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर क़ब्ज़ा कर लिया। रेल, बिजली, पानी, हवा, खनन, ज़मीन सब पर बीईआइसी का मालिकाना हक़ था। एक समय आया जब बीईआइसी सीधे माहारानी विक्टोरिया से लेनदेन करने लगी और अपनी सेना रखने की हक़दार बन गई। इसमें ब्रिटिश सैन्य और प्रशासनिक अधिकारियों को सीधी नियुक्ति मिलने लगी। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार देशवासियों से ज़्यादा बीईआइसी के हितों को लेकर सक्रिय थी। बीईआइसी के हितों की रक्षा के लिए ब्रिटेन ने पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली समेत कई देशों से रिश्ते ख़राब किए। राष्ट्रवाद के नाम पर तमाम युद्ध लड़े गए। मगर असलियत में ये लड़ाईयां देशहित नहीं बीईआइसी के हितों की थीं। बीईआइसी के लिए लड़ते-लड़ते ब्रिटेन कंगला होता गया और कंपनी से जुड़े लोग फलते-फूलते गए। इस दौरान बीईआइसी के अंतरराष्ट्रीय साम्राज्यवादी हितों के लिए ब्रिटेन दो बार विश्व युद्ध में झोंका गया। फिर समय आया जब ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज हमेशा के लिए डूब गया। लेकिन इस से पहले ही बीईआइसी से जुड़े लोगों ने अपने अपने लायक़ धन संपदा सुरक्षित कर ली थी।
आज के हालात में सवाल ये है कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और रिलायंस में क्या फ़र्क़ है? भारत में तमाम बड़े अफसरों की नियुक्ति, सरकार में दख़ल, संसद मे प्रतिनिधित्व, सरकार के लोगों को अपने बोर्ड में जगह देने समेत कौन सा ऐसा काम है जो बीईआइसी ने किया और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ नहीं कर रहा है। आज रिलायंस इंडस्ट्रीज़ का देश के आधे से ज़्यादा संसाधनों पर क़ब्ज़ा है। रिलायंस समूह संचार, रेलवे, सड़क, रक्षा, ऊर्जा, पानी, हवा सब पर क़ाबिज़ है। रिलायंस तय करता है कि भारत किस देश से व्यापार करे, किस से नहीं, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कहां जाएं और कहां नहीं। हर विदेशी डील, हर कूटनीतिक पहल, हर सैन्य फैसले और हर सामाजिक नीति में रिलायंस का दख़ल है।
देश में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के ख़िलाफ ख़बर छप सकती है मगर रिलायंस पर कोई उंगली नहीं उठा सकता । रिलायंस देश में संवैधानोत्तर संस्था है जो हर नियम, हर क़ानून से परे है। आज़ादी के सत्तर साल में रिलायंस देश की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यह हमारी अपनी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी है।
आज़ादी के सत्तर साल में रिलायंस देश की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यह हमारी अपनी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी है।