समाज का वो तबक़ा जो खुद को बड़े फख्र से शाकाहारी कहता हे, उसको चाहिए के मुसलमानो पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आगे आये. क्यों की कुछ लोग खुद को शाकाहारी साबित करने के लिए एक के बाद एक मुस्लिम समुदाय के किसानों और दूध का व्यापार करने वाले, और कभी-कभी तो मासूमों की भी हत्या से गुरेज़ नहीं कर रहे हैं! जो खुद हिन्दू समाज के लिए चिंता का विषय होना चाहिए.
ये बात किसी से छुपी हुए नहीं हे के ऐसे आतंकी लोगों को ट्रैंनिंग दी जा रही हे. और उनके दिमाग में मुसलमानो के खिलाफ ज़हर भरा जाता हे. कुछ ही वक़्त गुज़रा है, की अखबारों में कुछ संगठनों की ट्रेनिंग की तस्वीरें आई थी. जब उनसे पूछा गया,की यह ट्रेनिंग क्यों दी जा रही है. तो उन्होंने कहा था कि आतंकवाद से निपटने और धर्म रक्षा के लिए ये ट्रेनिंग दी जा रही है. हिन्दू धर्म के विद्वानों को, पंडितों को ऐसे लोगों से खुद को अलग करना होगा. अगर नहीं करते हैं तो यह माना जाएगा की धर्म के बुद्धिजीवियों का आतंकियों को छुपा समर्थन है.
हम जानते हैं कि समाज में कुछ लोग बुरे तो बहुत अच्छे लोग भी होते हैं. लेकिन उस समाज के अच्छे लोग अगर इन बुरे की हरकतों पर खामोश बैठे रहते हैं तो ये उन आतंकियों की ताक़त को बढ़ावा देती हे. ये सच हे के जिस प्रकार से मुसलमानों ने आतंकी हमलों का विरोध किया है, उसका १०% भी हिन्दू समाज के बुद्धिजीवियों ने उनके भगवा संगठनों के लोगों द्वारा किये गए मासूम मुसलमानों की हत्या पर विरोध दर्ज नहीं किया है. और यही वजह हे के मासूम मुसलमानों की हत्या रुक नहीं रही!
हिन्दू समाज को अब खुलकर बोलना होगा| इन्साफ भी यही है: खुद को शाकाहारी कहने वाले समाज की पॉलिसी भी यही होनी चाहिए कि वो मासूमों की हत्या के खिलाफ आवाज़ उठाये. श्री श्री रविशंकर या रामदेव बाबा, अगर खुद को शुद्ध शाकाहारी समझते हें तो मुस्लिमों के विरुद्ध हो रहे जानलेवा हमलों पर खामोश क्यों हैं? उन्हें चाहिए कि आगे आकर इन घटनाओं का वैसा ही विरोध दर्ज कराएं, जैसा मुस्लिम खुलेआम आतंकवादी घटनाओं और आतंकवाद के विरुद्ध बोलते हैं.
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