“सनसेट क्लब” राजपाल प्रकाशन से आया ये उपन्यास उन तीन बूढें दोस्तों की दोस्तों की दास्तां जो हर शाम में वहां आतें थे और फिन भर की बातों को दुनिया से अलग बेठें एक दूसरे से बयान करतें थे।
लेकिन इस बात को किस तरह शब्दों की खूबसूरती में उकेरते हुए लिखा जा सकता है ये सिर्फ “खुशवंत सिंह” ही जानते है क्योंकि यहां उन्होंने जो लिखा है वो सिर्फ एक उपन्यास नही है एक “बयान” है।
जैसा कि खुशवन्त सिंह के बारे में हमेशा ही मशहूर रहा कि उन्होंने “टैबू” समझे जाने वाले,या खुले तौर पर उस पर बात न किये जाने वाले मुद्दे “सेक्स”,”औरतें” और इनसे जुड़े हर एक मुद्दों पर लिखते रहें है ऐसा ही कुछ इस उपन्यास में मौजूद भी है।
जहां तीन बूढें अपनी जवानी की कहानियों को दोहरातें नज़र आतें है। लेकिन इसी में हर एक चीज़ को बयान करने की खूबसूरती को बरकरार रखने की कला को खुशवंत सिंह ने “राजनीति”,”सत्ता”,”विपक्ष” से लेकर आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं को तीन बूढ़े “शर्मा” ,”बूटा सिंह” और “बेग” के ज़रिए बताया है,इस किताब को पढ कर आपको सब कुछ अपने आप से जोड़ता हुआ नजर आएगा जो खुशवन्त सिंह के कद की ही बात है।
कहानी जनवरी से शुरू होकर अगली जनवरी पर खत्म होती है और अंत मे पहले “बैग” की मौत और बाद में “शर्मा” की मौत से “बूढ़ा बिंच” सुनॉ पड़ जाता है और “बूटा” सिंह वहां अकेले रह जातें है,बस इसी के बीच की बहुत रोचक और हंसाती और “गलत” कही जाने वाली कहानी है “सनसेट क्लब” थोड़ा हल्का फुल्का सा पढ़ने के लिए एक अच्छा उपन्यास है।