आज भारत के लिए खुशी मनाने का दिन है। नींद में डूबे आतंकियों को मौत के आगोश में सुला देने के लिए भारतीय वायुसेना की जितनी तारीफ की जाए कम है। एक दर्जन हवाई जहाजों से हुई बमों की बारिश ने करोड़ों हिंदुस्तानियों के सिर गर्व से उठा दिए हैं। अमेरिका, रूस, इज़रायल, ब्रिटेन की तारीफ हमेशा इसलिए होती रही है क्योंकि वो खुद पर हुए हमलों का हिसाब-किताब ज़रूर बराबर करते हैं। ऐसा करने में चाहे महीनों लगे या सालों।
तारीफ उस राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी करनी पड़ेगी जो ऐसे फैसले लेने के पीछे होती है। इसी इच्छाशक्ति के लिए दूसरे विश्वयुद्ध में चर्चिल की प्रशंसा हुई, एक वक्त ओबामा-बुश ने तारीफ लूटी, 1971 मे इंदिरा गांधी की तारीफों के पुल बंधे और अब वक्त नरेंद्र मोदी का है। किसी परमाणु शक्ति संपन्न देश में घुसकर एयर स्ट्राइक करना बड़ी हिम्मत का काम है। इसे हिंदी व्याकरण के अनुसार दुस्साहस भी लिखा जा सकता है। जितनी मुझे जानकारी है तो किसी भी परमाणु शक्ति संपन्न देश में किसी दूसरे देश के हवाई जहाज घुसकर इस तरह बम गिरा कर नहीं लौटे हैं।
अब पाकिस्तान के पास सिवाय दुनिया भर में भारत के खिलाफ शिकायत करने, आक्रामक बयान देने या फिर युद्ध छेड़ देने के कोई विकल्प नहीं है। इमरान खान पहले ही ये बात कह चुके कि वो भारत को जवाब देने से पीछे हटेंगे नहीं, तो जिस तरह का दबाव पुलवामा के बाद मोदी पर था वैसा ही बालाकोट के बाद इमरान पर होगा।
इस मौके पर इतना ही लिखना है कि मोदी के लिए दबाव से मुक्त होना आसान था क्योंकि पाकिस्तान के मुकाबले भारत हर तरह से ज़्यादा सक्षम है लेकिन नए नवेले पीएम इमरान खान इस स्थिति को कैसे संभालेंगे ये देखना बहुत दिलचस्प है। उनका सूझबूझ भरा कदम उनका सम्मान बचा लेगा और गफलत में किया गया फैसला दोनों देशों की कई पुश्तों को नुकसान भुगतने को मजबूर करेगा। इस दौरान पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने कह दिया है कि उनको बदला लेने का हक है अगर उन्होंने बदला लिया तो फिर भारत का राजनीतिक नेतृत्व देश के भीतर क्या माहौल बनाएगा ये भी चिंता का विषय है।
पाक विदेश मंत्री की बदले वाली बात व्यवहारिक तौर पर सही हो सकती है लेकिन कायदा तो ये है कि वो भारत का शुक्रिया अदा करें क्योंकि जो वो खुद करने की हिम्मत नहीं रखते वो हमारी सरकार ने कर दिया है।