खोजी पत्रकारिता चोरी नहीं है, यह चोरी उजागर करने का एक नेक माध्यम है

Share

राफेल मामले ( Rafale Scam case )  में प्रशांत भूषण  की पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) में आज 6 मार्च को सुनवायी होनी थी। नियत समय पर सुनवायी शुरू भी हुयी। प्रशांत भूषण ने अपना पक्ष रखते हुए अंग्रेजी अखबार द हिन्दू ( The hindu )  में छपे एक लेख का हवाला दिया और यह कहा कि भारतीय समझौता दल की बातचीत के समानांतर प्रधानमंत्री कार्यालय ( PMO ) की भी एक बातचीत चल रही थी। पीएमओ द्वारा समानांतर चल रही बातचीत में क्या मुद्दे हैं और क्या क्या मसले उठे हैं यह भारतीय समझौता दल की जानकारी में नहीं है। गुपचुप रूप से चल रहे पीएमओ की बातचीत से आईएनटी ( INT ) द्वारा की जा रही समझौता शर्तो में परेशानी खड़ी हो सकती है अतः समझौता दल के प्रमुख ने रक्षा सचिव और रक्षा मंत्री को बातचीत की इस समस्या से अवगत कराते हुए यह अनुरोध किया कि अगर पीएमओ द्वारा कोई समानांतर बातचीत चल रही है तो, उसे ही चलने दिया जाय। पर तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने यह लिख कर कि पीएमओ हो सकता है इस सौदे पर हो रही आईएनटी की बातचीत की मॉनिटरिंग कर रहा हो, यह पत्रावली वापस कर दिया।
द हिन्दू ने उसी फाइल से जुड़े कुछ दस्तावेज और नोट और ऑर्डरशीट की फ़ोटो अपने अखबार में कई किश्तों में खबरों के साथ छापी। प्रशांत भूषण ने उन्ही दस्तावेजों को अदालत में प्रस्तुत करने के लिये अदालत से सरकार को निर्देश देने के लिये अनुरोध किया। तब सरकार के अटॉर्नी  जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि द हिन्दू में प्रकाशित दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चुराए गए थे। और यह भी कहा कि इस पर दी ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट का मुकदमा चल सकता है। लेकिन अटॉर्नी जनरल ने यह नहीं कहा कि वे दस्तावेज जो द हिन्दू में छपे थे वे फर्ज़ी हैं और गलत हैं। इसपर सरकार मौन है।
सरकारी दफ्तरों में फाइलों के रखरखाव की भी एक संहिता होती है। कौन सी फाइल किस अफसर तक जाती है और लौट कर कब कहां वापस आती है इन सबका ज़िक्र ऑफिस मैनुअल में हैं। कौन सी फाइल कितने समय तक रखी जायेगी और कितने समय के बाद नष्ट होगी। नष्ट करने का निर्णय कौन अधिकारी लेगा आदि आदि सभी बातें ऑफिस मैनुअल या रूल्स ऑफ बिजनेस में लिखा रहता है। राफेल से जुड़ी फाइलें निश्चित ही गोपनीय और महत्वपूर्ण होंगी। उनका मूवमेंट, फाइलों की मूवमेंट स्लिप से पता चल सकता है। अभी यह नहीं पता है कि कौन कौन सी और कितनी फाइलें चोरी हुयी हैं और इनके चोरी होने से किसे लाभ पहुंच सकता है ? इस चोरी पर तो सवाल उठेगा ही। आज ये फाइलें गायब हैं कल रक्षा से जुड़े और महत्वपूर्ण दस्तावेज भी चोरी हो सकते हैं या चुराये जा सकते हैं। साउथ ब्लॉक से दस्तावेज चोरी हो जाना एक बड़ी घटना है। सरकार के लिये यह निश्चित रूप से यह एक चिंताजनक प्रकरण होगा।
राफेल मामले में जब द हिन्दू ने खबर छापी तो वे ये दस्तावेज भी छपे थे। तब रक्षामंत्री ने यह आरोप लगाया था कि हिन्दू ने दुर्भावना से अधूरा दस्तावेज जिसमे रक्षामंत्री की नोटिंग छुपा ली गयी थी, छापा था, और उन्होंने पूरा दस्तावेज जिसमे रक्षा मंत्री की नोटिंग भी थी को सदन में सार्वजनिक रूप से दिखाया । इसकी भी खबर दूसरे दिन अखबारों और न्यूज़ वेबसाइटों पर छपी थी। इसका सीधा अर्थ यह है कि रक्षामंत्री के सदन में प्रस्तुत करने तक वे दस्तावेज सरकार के पास थे और रक्षामंत्री को ये दस्तावेज उनके मंत्रालय ने ही उपलब्ध कराए होंगे। दस्तावेज कभी भी किसी मंत्री या प्रधानमंत्री के पास नहीं रहते हैं । या तो वे मंत्रालय में रखे जाते हैं या पीएमओ के यहां अगर पीएमओ ने उन दस्तावेजों को किन्ही कारण से मंगाया है तो।  इसका मतलब यह हुआ कि दस्तावेजों की चोरी उस दिन, जब सदन में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिखाया था, के बाद ही हुयी होगी।
उधर पूर्व रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर का एक ऑडियो टेप सोशल मीडिया पर घूम रहा था, जिनमे उन्होंने कहा था कि फाइलें उनके शयन कक्ष में हैं। उक्त ऑडियो टेप के सत्यता की जांच आज तक तो हुयी नहीं, और हुयी भी हो तो आज तक कुछ पता भी नहीं चला। यह गम्भीर मामला है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सुप्रीमकोर्ट ने राफेल सौदा मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा कि वह ऐसे किसी भी पूरक हलफनामों अथवा अन्य दस्तावेजों पर गौर नहीं करेगा जो उसके समक्ष दखिल नहीं किए गए हैं। अदालत में क्या हुआ इसे अब पढिये।
प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा- जब प्राथमिकी दायर करने और जांच के लिए याचिका दाखिल की गईं तब राफेल पर महत्वपूर्ण तथ्यों को दबाया गया। अगर तथ्यों को दबाया नहीं गया होता तो सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदा मामले में प्राथमीकि और जांच संबंधी याचिका को खारिज नहीं किया होता।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि अधिवक्ता प्रशांत भूषण जिन दस्तावेजों पर भरोसा कर रहे हैं, वे रक्षा मंत्रालय से चुराए गए हैं. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने राफेल सौदे पर जिन दस्तावेजों पर भरोसा किया है वे गोपनीय हैं और आधिकारिक गोपनीयता कानून का उल्लंघन हैं। राफेल सौदे से जुड़े दस्तावेजों की चोरी होने के मामले की जांच चल रही है।
अटॉर्नी जनरल ने कहा, राफेल सौदे से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने वाला सरकारी गोपनीयता कानून के तहत और अदालत की अवमानना का दोषी है।
तब चीफ जस्टिस ने अटॉर्नी जनरल से लंच के बाद यह बताने को कहा कि राफेल सौदे से जुड़े दस्तावेजों के चोरी होने पर क्या कार्रवाई की गई ?
चीफ जस्टिस ने कहा कि प्रशांत भूषण को सुनने का यह अर्थ नहीं है कि उच्चतम न्यायालय राफेल सौदे के दस्तावेजों को रिकॉर्ड में ले रहा है।
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि राफेल पर ‘द हिंदू’ की आज की रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय में सुनवाई को प्रभावित करने के समान है जो अपने आप में अदालत की अवमानना है।
अटॉर्नी जनरल ने राफेल पर पुनर्विचार याचिका और गलत बयानी संबधी आवेदन खारिज करने का अनुरोध करते हुये कहा कि ये चोरी किए गए दस्तावेजों पर आधारित है.

इस संबंध में कानूनी दृष्टिकोण इस प्रकार है।

  • अगर कोई दस्तावेज जो तथ्यपूर्ण और वास्तविक हों, पर चुरा कर ही प्राप्त किये गए हों और उन्हें अदालत में पस्तुत किया गया हो तो भी यदि अदालत उक्त मुक़दमे के संदर्भ में उन्हें प्रासंगिक समझती है तो उन्हें अदालत सुबूत के रूप में स्वीकार करने पर संज्ञान ले सकती है।
  • अगर वे दस्तावेज ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के अंतर्गत क्लासिफाइड दस्तावेज के रूप में चिह्नित हैं तो उनकी गोपनीयता भंग करने वालों पर इस अधिनियम के अंतर्गत कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
  • चोरी आईपीसी के अंतर्गत एक दंडनीय और संज्ञेय अपराध है। उसकी अलग से मुक़दमा दर्ज कर तफ्तीश होगी और जिसकी लापरवाही से चोरी हुयी है उसके लापरवाही की अलग विभागीय जांच होगी।
  • अगर उक्त लापरवाही, विभागीय जांच से चोरी में संलिप्तता और षड़यंत्र तक पहुंच जाती है तो फिर यह आपराधिक मामला बनता है और इसकी उसी चोरी के साथ दर्ज एफआईआर के अनुसार जांच होगी।
  • अगर प्रस्तुत किया गया दस्तावेज फर्जी है तो यह अदालत की अवमानना है और उक्त फ़र्ज़ी दस्तावेज दायर करने वाले व्यक्ति के खिलाफ अदालत जो समझे वह कार्यवाही कर सकती है।

जब द हिन्दू के प्रधान संपादक एन राम से यह पूछा गया कि उन्हें यह दस्तावेज कहां से मिले तो उन्होनें कहा,

” मीडिया अपनी खबरों के लिये प्राप्त दस्तावेजों का स्रोत बताने के लिये बाध्य नहीं है। अखबार और मीडिया किसी भी दस्तावेज का स्रोत बताने के लिये कि वह उन्हें कहां से मिला है, बाध्य नहीं है। उन्हें अपने श्रोत को बताने के लिये धरती पर ऐसा कोई है जो उन्हें बाध्य कर सके । ”

वे आगे कहते हैं कि,

” आप उन्हें चुराया हुआ कह सकते हैं। हमारा इससे कोई सरोकार नहीं है। हमसे कोई भी कोई सूचना उगलवा नहीं सकता है। लेकिन दस्तावेज और उससे जुड़ी खबरें खुद ही सच बयान कर रही हैं।”

उनका बयान आगे पढ़ें,

” राफेल से जुड़े ये सारे दस्तावेज जनहित में ही छापे गये हैं। द हिन्दू अखबार से कोई भी इन गोपनीय दस्तावेजों की प्राप्ति का स्रोत नही पता कर सकता है।

पत्रकार कृष्ण कांत ने इस संदर्भ में एक बड़ी मार्के की बात कही है जिसे मैं यहां उद्धृत कर रहा हूँ। उनके अनुसार,

” जहां तक दस्तावेज चोरी की बात है तो इतिहास में जितने घोटाले सामने आए हैं, वे सब पिछले दरवाजे से ही आये हैं। कोई सरकार अपना घोटाला खुद नहीं बताती। पत्रकार अपने आधिकारिक सूत्रों से सूचनाएं बाहर लाते हैं और जनता को पता चलता है कि कौन बोफोर्स चोर है, कौन कोयला चोर है, कौन कफन चोर है और कौन राफेल चोर. इस बार शायद ये पैंतरे काम न आएं। ”
आगे वे लिखते हैं,
” एक और दिलचस्प बात है कि राफेल घोटाले के सारे तथ्य अब जनता के सामने हैं, लेकिन हिंदी मीडिया इन तथ्यों के सार्वजनिक होने के बाद भी अपने पाठकों तक नहीं पहुंचा रहा है. हिंदी मीडिया सिर्फ वही सूचनाएं अपने पाठकों तक पहुंचाता है जिसे सरकार चाहती है या जो सरकार के फायदे में है.।”
अब यह देखना है कि सरकार जो इन दस्तावेजों की चोरी की बात सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार कर चुकी है, वह अब क्या करती है। मुझे लगता है कि कहीं ऐसा न हो कि गायब फाइलों के दस्तावेज कुछ दिन में ही सोशल मीडिया और कुछ अखबारों में छपने लगें। इस दौरान ए गर्दमगरदा में कुछ भी नामुमकिन नहीं है। रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण को राफेल फाइलों की चोरी की जांच होने और जिम्मेदारी तय होने तक त्यागपत्र दे देना चाहिये। राफेल जैसे मामले जिसमे सीधे प्रधानमंत्री पर आरोप है, कोई भी अफसर चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो बिना पीएम की मर्ज़ी के कुछ भी नहीं कर सकता है।

© विजय शंकर सिंह
Exit mobile version