कौन थे उमर खैयाम, जिन्हें गूगल ने दी श्रद्धांजलि ?

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आज गूगल ने मशहूर फारसी कवि, गणितज्ञ, दार्शनिक, कवि और खगोलशास्त्री उमर ख़ैय्याम को उनके जन्मदिन पर डूडल बनाया।
18 मई 1048 को उत्तर पूर्वी ईरान में जन्मे उमर खैय्याम कई उल्लेखनीय गणित और विज्ञान की खोज की। उमर ख़ैय्याम (1048–1131) फ़ारसी साहित्यकार, गणितज्ञ एवं ज्योतिर्विद थे। इनका जन्म उत्तर-पूर्वी फ़ारस के निशाबुर (निशापुर) में ग्यागरहीं सदी में एक ख़ेमा बनाने वाले परिवार में हुआ था। इन्होंने इस्लामी ज्योतिष को एक नई पहचान दी और इसके सुधारों के कारण सुल्तान मलिकशाह का पत्रा (तारीख़-ए-मलिकशाही), जलाली संवत या सेल्जुक संवत का आरंभ हुआ। इनकी रुबाईयों (चार पंक्तियों में लिखी एक प्रकार की कविता) को विश्व स्तरीय करने में अंग्रेज़ी कवि एडवर्ड फ़िज़्ज़ेराल्ड का बहुत योगदान रहा है।
ख़ैय्याम ने ज्यामिति बीजगणित की स्थापना की, जिसमें उसने अल्जेब्रिक समीकरणों के ज्यामितीय हल प्रस्तुत किये। इसमें हाइपरबोला तथा वृत्त जैसी ज्यामितीय रचनाओं द्बारा क्यूबिक समीकरण का हल शामिल है। उसने अलजेब्रा में व्यापक द्विघात समीकरण का भी विचार दिया।
ख़ैय्याम का बीजगणित के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान रहा। उन्होंने ‘Treatise on Demonstration of Problems of Algebra’ लिखा। उन्होंने पास्कल त्रिभुज और triangular array of binomial coefficients की खोज की।
खगोलशास्त्र में कार्य करते हुए उमर ख़ैय्याम ने एक सौर वर्ष की दूरी दशमलव के छः स्थानों तक शुद्ध प्राप्त की। इस आधार पर उसने एक नए कैलेंडर का आविष्कार किया। उस समय की ईरानी हुकूमत ने इसे जलाली कैलेंडर के नाम से लागू किया। वर्तमान ईरानी कैलंडर जलाली कैलेंडर का ही एक मानक रूप है। यह सोलर कैलेंडर था जिसमें 33 साल के दिन, सप्ताह, तारीख और लीप वर्ष का पता लगाया जा सकता था। बाद में इसके आधार पर कई कैलेंडर बने।
हरिवंश राय बच्चन भी ईरान के इस बोहेमियन महाकवि के जादू से नहीं बच सके. बच्चन जी की मुलाक़ात उमर ख़ैयाम की रूबाइयो से, फारसी भाषा में नहीं हुई. वह उमर खैयाम से फिट्ज जेराल्ड के अनुदित अंग्रेज़ी रूप के माध्यम से मिले थे। मधुशाला’ उमर खय्याम की रुबाइयों ( चार लाइन की छंद वाली कविताएं) से प्रेरित थी।
उमर ख़ैय्याम‌ इब्न ए सीना, मुहम्मद इब्न ए मूसा अल-ख़वारिज़मी, अल- बैरूनी से काफ़ी प्रभावित थे। उन्होंने संगीत और बीजगणित पर एक किताब ‘Problems of Arithmetic’ लिखी। 04 दिसंबर 1131 को उनका निधन हो गया। उन्हें खैय्याम गार्डन में दफनाया गया
एक दौर वह था जब विज्ञान के क्षेत्र में मुसलमान बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे और एक यह दौर है के जब के मुस्लिम समुदाय शिक्षा में काफ़ी पिछड़े हुए हैं। ना जाने कितने महान दार्शनिक, कवि, गणितज्ञ हुए जो मुसलमान थे और एक सुनहरा दौर था जब पूरी दुनिया में शिक्षा जगत में मुस्लिम विद्वानों का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता था फिर चाहे विज्ञान हो,जीव विज्ञान हो, भूगोल हो,मुस्लिम युवाओं से मेरी अपील है के आप अपने पूर्वजों के इतिहास को पढ़ें और उनके द्वारा किए गए योगदानों का प्रचार प्रसार करें। जिस से धूमिल होता इतिहास फिर से सांस ले सके अगर आप और हम मिल कर वर्तमान युवा पीढी में शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में अलख जगा सकें. यह कर सके तो यह उन महान हस्तियों को श्रदधांजलि होगी।

~खुर्रम मलिक
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